head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): "देवहूति"-- मनु एवं शतरूपा की पुत्री, महर्षि कर्दम की पत्नी, देवहूति के गर्भ से कपिल मुनि अवतरित, महामुनि कपिल द्वारा महर्षि कर्दम को उपदेश,कपिल मुनि द्वारा देवहूति को मोक्षप्राप्ति हेतु उपदेश, देवहूति को योगमार्ग द्वारा परमपद की प्राप्ति ।

Thursday, October 8, 2020

"देवहूति"-- मनु एवं शतरूपा की पुत्री, महर्षि कर्दम की पत्नी, देवहूति के गर्भ से कपिल मुनि अवतरित, महामुनि कपिल द्वारा महर्षि कर्दम को उपदेश,कपिल मुनि द्वारा देवहूति को मोक्षप्राप्ति हेतु उपदेश, देवहूति को योगमार्ग द्वारा परमपद की प्राप्ति ।

             ●●●●● देवहूति  ●●●●●
●● मनु एवं शतरूपा की पुत्री एवं महर्षि कर्दम की पत्नी ●●

देवहूति, मनु एवं शतरूपा की पुत्री थीं ।देवहूति का विवाह महर्षि कर्दम के साथ हुआ था ।प्रकृति के सुरम्य वातावरण में महर्षि कर्दम का आश्रम था ।उनकी पत्नी देवहूति भी अपने पति के साथ ही रहतीं थीं ।देवहूति, अत्यन्त राजसी सुख-सुविधाओं  में पली-बढ़ी थीं , इसके बावजूद भी वे आश्रम में तपोनिष्ठ जीवन जीते हुए अपने पति के पदचिन्हों पर चलने यथासंभव प्रयास किया करतीं थीं ।

    जब महर्षि कर्दम संन्यास धर्म में दीक्षित होने का विचार करने लगे ।उनके इस विचार को जानकर देवहूति उनसे बोलीं---"स्वामी ! आप आत्मकल्याण के लिए गृहत्याग कर वन में जाना चाहते हैं, मैं आपके मार्ग में बाधक नहीं बनना चाहती , परन्तु मेरी एक छोटी सी प्रार्थना है कि आपके वन चले जाने पर मुझे आत्मकल्याण का मार्ग बताने वाला एक ब्रह्मज्ञानी पुत्र चाहिए और वह मुझे प्रभुभक्ति का मार्ग बताए , ऐसी मेरी अभिलाषा है।

     देवहूति के विनम्र एवं वैराग्ययुक्त वचनों को सुनकर महर्षि ने कहा ----- " हे राजपुत्री ! तुम चिंतित मत हो ।तुम्हारे माध्यम से भगवान जगदीश्वर शीघ्र ही अवतरित होंगे और तुम्हें ब्रह्मज्ञान का उपदेश देकर तुम्हारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेंगे ।"

  ●देवहूति के कोख से भगवान 'कपिल' के रूप में अवतरित●

समयानुसार देवहूति के गर्भ से भगवान मधुसूदन प्रकट हुए और सब दिशाओं में जय-जयकार की ध्वनि गुंजायमान होने लगी ।उसी समय मरीचि आदि ऋषियों के साथ ब्रह्मा जी कर्दम ऋषि के आश्रम में पहुँचे। ब्रह्मा जी देवहूति से बोले -- " देवहूति ! तुम्हारी कोख से साक्षात् पूर्णपुरुष ने अवतार लिया है ।इनके केशकलाप सुवर्ण के समान कपिलवर्ण होने के कारण यह जगत में कपिल नाम से विख्यात होंगे ।यह सिद्ध-मुनियों में अग्रगण्य होंगे और सांख्यशास्त्र का प्रचार करेंगे। 

भगवान का नामकरण करने के बाद ब्रह्मा जी अपने लोक को चले गए । महर्षि कर्दम ने अपने यहाँ पुत्र रूप में अवतीर्ण हुए भगवान कपिल की अनेक प्रकार से स्तुति की और उनसे संन्यास धर्म को स्वीकार करने की आज्ञा माँगी । 

●महामुनि कपिल द्वारा महर्षिकर्दम को मोक्षप्राप्ति हेतु उपदेश●

जब महर्षि कर्दम ने महामुनि कपिल से संन्यास धर्म को स्वीकार करने की आज्ञा माँगी , तब महामुनि कपिल बोले -- " हे प्रजापते ! आप अब सभी प्रकार के ऋणानुबंधनों से मुक्त हो गए हैं ।अतः आप अब संन्यास ग्रहण कर सकते हैं ।यद्यपि आपके लिए घर में भी मुक्ति की प्राप्ति कठिन नहीं है, परन्तु आप परब्रह्म का निरंतर स्मरण करते हुए अपने समस्त कर्मों को उन्हें अर्पण कर मोक्षप्राप्ति निमित्त उपासना में लगे रहना -- यही मोक्ष का सर्वश्रेष्ठ उपाय है ।

महर्षि कर्दम ने कपिलमुनि को वचनों को श्रद्धा के साथ सुना और अत्यन्त प्रसन्न हुए और उनकी प्रदक्षिणा कर  मोक्षप्राप्ति हेतु वन में उपासना करने चले गए ।कर्दम ऋषि के वन में चले जाने पर महामुनि कपिल अपनी माता का हित करने की इच्छा कुछ दिन तक अपने पिता के आश्रम में ही रहे ।

●कपिल मुनि द्वारा मातादेवहूति को मोक्षप्राप्ति हेतु उपदेश●

एक दिन देवहूति महामुनि कपिल से बोलीं--- " आप शरणागतों के रक्षक और भक्तों के संसार रूप वृक्ष को छेदन करने में कुठार के समान हैं । हे भगवन ! आप मुझे मुक्ति का मार्ग बताइए ।"  माता देवहूति का प्रश्न सुनकर कपिल मुनि प्रसन्न हुए और मुस्कराते हुए बोले -- " हे माता ! इस आत्मा के बंधन और मुक्ति का कारण चित्त ही है ।यह चित्त विविधभोगों में आसक्त होने पर बंधन का कारण होता है और वहीं चित्त ईश्वर के प्रति समर्पित होने पर मोक्ष प्राप्ति करा सकता है।

कपिल मुनि बोले -- "माता !  सत्पुरुषों के संग को शास्त्रों में मोक्ष का द्वार कहा गया है । अतः हे माता ! आपको सत्पुरुषों का ही संग करना चाहिए । साधुओं के सत्संग से ही ईश्वर के प्रभाव का यथार्थ ज्ञान कराने वाली और अंतःकरण को सुख देने वाली कथाएँ सुनने को मिलती हैं , जिनके श्रवण से भगवान में श्रद्धा और भक्ति दृढ़ होती है ।उस भक्ति से लौकिक और पारलौकिक , दोनों सुखों के प्रति वैराग्य उत्पन्न होता है और फिर वैराग्य से बढ़े हुए ज्ञान व भक्ति के द्वारा व्यक्ति इसी शरीर में अंतर्यामी परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।

अपने पुत्र के उपदेश को सुनकर देवहूति के अज्ञान का परदा हट गया और वह श्रद्धा के साथ कपिल मुनि की स्तुति करने लगीं ।भगवान कपिल उनकी स्तुति सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और स्नेहपूर्ण 
वाणी से इस प्रकार बोले --- " हे माता ! यदि आप मेरे बताए हुए इस मार्ग पर चलेंगी तो बहुत शीघ्र ही जीवनमुक्ति रूप श्रेष्ठ फल को प्राप्त करेंगी ।हे जननी ! ब्रह्म ज्ञानियों द्वारा सेवनीय मेरे इस अनुशासन पर आप विश्वास रखें  ।मेरे बताए मार्ग का अनुसरण करने से आप संसार के बंधनों से मुक्त होकर जन्म-मरण रहित स्वरूप को प्राप्त होंगी ।मेरे इस मत को न जानने वाले लोग मृत्यरूप संसार में बार-बार आते हैं ।" 

●●● देवहूति को योगमार्ग द्वारा परमपद की प्राप्ति ●●●

अपनी माता को मोक्षप्राप्ति के लिए श्रेष्ठ योग मार्ग का उपदेश देकर महामुनि कपिल अपनी माता से विदा लेकर चल दिए ।देवहूति भी अपने पुत्र के बताए हुए योगमार्ग से अपने चित्त को एकाग्र करके अपने पति के आश्रम में तपस्या करते हुए समय व्यतीत करने लगीं और शीघ्र ही अंतर्यामी, नित्य, मुक्त एवं ब्रह्म रूप भगवान के साथ एकत्व को प्राप्त हो गईं ।देवहूति ने योग साधना द्वारा परमपद को प्राप्त किया ।

मनुष्य जीवन का यही उद्देश्य होना चाहिए कि इस संसार के कर्तव्यों का भली-भाँति निर्वहन करते हुए अपने चित्त को एकाग्र करके परमेश्वर का स्मरण करते रहें और परमेश्वर की अनुभूति रूप प्रसाद प्राप्त करें ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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