head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): मनुष्य के सूक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्र क्या हैं ?, मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर,अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा एवं सहस्रार चक्रों का विवरण , कुंडलिनी शक्ति एक महाविज्ञान

Friday, December 13, 2019

मनुष्य के सूक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्र क्या हैं ?, मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर,अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा एवं सहस्रार चक्रों का विवरण , कुंडलिनी शक्ति एक महाविज्ञान

  ●मानव शरीर में स्थित षट् चक्र अथवा सप्त चक्र क्या हैं ●   क्या भीतर अन्धेरा है ? नहीं प्रकाश का ज्योतिपुंज अपने भीतर विद्यमान है और एक पूरा संसार ही अपने भीतर बिराजमान है।
मानव देह रहस्यों से आवृत है।इसका रहस्य इतना गहरा है , जितना कि ब्रह्माण्ड का रहस्य ।योग के अनुसार इसके विभिन्न केन्द्रों के माध्यम से विराट एवं ब्रह्माण्ड की झलक झाँकी पाई जा सकती है।

सामान्यतः योग शास्त्रों में व अन्य आध्यात्मिक शास्त्रों में अक्सर  षट् चक्रों के बारे में पढ़कर मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि ये चक्र क्या हैं और कुंडलिनी शक्ति क्या है ? कैसे इनकी साधना होती है ? एवं योग में इनका क्या महत्व है ?

मानवीय काया के भीतर कुछ ऐसे मर्मस्थान सुरक्षित हैं, जो गुह्य आध्यात्मिक शक्तियों के केंद्र कहे जा सकते हैं ।इन शक्तिकेन्द्रों का जागरण मनुष्य को अपरिमित शक्ति भंडार का स्वामी बना देने में समर्थ है।इन मर्मस्थलों में से मेरुदंड या रीढ़ का स्थान प्रमुख है।

यह मेरुदंड तैंतीस अस्थिखंडों के जुड़ने से बना है , जिनका संबंध तैंतीस कोटि देवी-देवताओं की शक्ति से माना जाता रहा है।चिकित्सकीय दृष्टि से मेरुदंड के सर्वाइकल, डोर्सल, लंबर, सेक्रल, इत्यादि भाग होते हैं और ये तैंतीस अस्थिखंड उन भागों में विभक्त माने जाते हैं ।
                  आध्यात्मिक साधना के पथ पर अग्रसर होने वाले 
साधक यदि इन चक्रों के बारे में थोड़ी जानकारी कर लें तो उन्हें  आध्यात्मिक साधनाओं का महत्व पता चलता है।आत्मा और उसके साथ जुड़े हुए परमात्मा को देखने के लिए अंतर्दृष्टि की आवश्यकता है ।श्रुति कहती है - "अपने आप को जानो और अमृतत्व में विलीन हो जाओ"।उसी को ऋषियों ने दोहराया है और तत्वज्ञानिओं ने उसे ही सारी उपलब्धियों का सार कहा है।

सामान्यतः हमारी बुद्धि भौतिक जगत के तीन आयामों तक ही सिमट कर रह जाती है।मानसिक पवित्रता, प्रखरता एवं हृदय की विशालता का विस्तार शुरु होते ही चौथे आयाम का बोध होने लगता है। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने योग साधनाओं एवं तपश्चर्या के बल पर चेतना के विविध आयामों का बोध किया था।
स्वर्ग, मुक्ति, सिद्धि, शान्ति, आदि विभूतियों की खोज में कहीं अन्यत्र जाने की जरूरत नहीं है सब हमारे अन्दर ही है।

          कठोपनिषद् 3/12 में----
 दृश्यते त्वग्रयया बुद्धया सूक्ष्मदर्शिभिः  अर्थात अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास और परमात्मा का दर्शन सूक्ष्म बुद्धि वाले विज्ञजनों को सूक्ष्म बुद्धि से ही होता है।
                  
        ●●● सात चक्रों का संक्षिप्त विवरण ●●●

योग के अनुसार शरीर में ऐसे एक सौ आठ ( 108) केंद्र हैं, जो स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर को जोड़ते हैं ।इनमें से छः या सात प्रमुख  केंद्र हैं जिन्हें षट् चक्र या सप्त चक्र कहा जाता है ।
वस्तुतः शरीर में स्थित सूक्ष्म चक्र संस्थान अर्थात षट् चक्र आणविक विद्युत भंडारों को अंतरिक्ष में संव्याप्त असंख्य शक्ति धाराओं के साथ सम्बन्ध जोड़ने वाले ट्रांसफार्मरों की तरह काम करते हैं ।

वस्तुतः ये चक्र चेतना के सप्त आयामीय सूक्ष्म केंद्र हैं ।जिनमें एक से बढकर एक उच्च स्तरीय विभूतियाँ व ज्ञान भंडार भरे पड़े हैं ।चक्रों की यह विलक्षण एवं विशिष्ट क्षमता प्रकाशमय ऊर्जा के रूप में विद्यमान है, जिसे विभिन्न रंगों के रूप में अनुभव किया जा सकता है ।इन्हें शक्ति केंद्र भी कहा जाता है।मानवीय शरीर में स्थित चक्रों का क्रम नीचे से ऊपर की ओर इस प्रकार है--
मूलाधार चक्र 
स्वाधिष्ठान चक्र 
मणिपूर चक्र 
अनाहत चक्र 
विशुद्धि चक्र 
आज्ञा  चक्र 
सहस्रार चक्र 

 1● मूलाधार चक्र--- मूलाधार को अंग्रेजी में 'रूट चक्र' के नाम से संबोधित किया गया है।जिसका स्थान जननेन्द्रिय से नीचे है ।चार पंखड़ियों वाले , कमल की आकृति वाले इस चक्र का रंग किरमिजी होता है और सोने जैसी पीली चमक दृष्टिगोचर होती है।इसमें प्रवाहित वज्र नाड़ी के रूप में कामदेव की शक्ति क्रियाशील रहती है , जिसका रंग गहरा लाल है।यदि काममूलक इस ऊर्जा शक्ति को साधना द्वारा ऊर्ध्वगामी बनाया जा सके तो यह चक्र करोड़ों सूर्यों के सदृश दैदीप्यमान हो उठता है।इस चक्र के जागरण से वाणी में ओजस्विता आती है , निरोग जीवन के आनन्द की अनुभूति होती है और साधक का व्यक्तित्व बहुआयामी बन जाता है ।

2 ● स्वाधिष्ठान चक्र-- स्वाधिष्ठान चक्र को अंग्रेजी में  'स्पलीन चक्र' कहा जाता है ।इसका स्थान जननेन्द्रिय से ऊपर है ।छः पंखडी वाले इस चक्र की आकृति कमल जैसी है और रंग सिंदूरी है ।इस चक्र की आभा नीले रंग की होने के कारण इसे भगवान विष्णु  का वैकुण्ठधाम कहा जाता है ।इस चक्र के ऊर्ध्वगामी होने से साधक साधना-पथ में तीव्र गति से अग्रसर होने लगता है ।व्यक्तित्व विकास के नए आयाम खुलने लगते हैं ।

3 ● मणिपूर चक्र--- तीसरे चक्र मणिपूर को 'नेवल चक्र' की संज्ञा दी गई है ।यह दस पंखड़ियों वाला पीले रंग का प्रकाश है ।इस चक्र के जागरण होने पर व्यक्ति में स्नेह, सहयोग, सहकार जैसे सद्भावों की वृद्धि होती है जिससे मनुष्य में दैवीय गुण जाग्रत होने लगते हैं ।

4 ● अनाहत चक्र---  चौथे चक्र अनाहत चक्र को अंग्रेजी में 'हार्ट चक्र' के नाम से जाना जाता है जिसका रंग सोने जैसा पीला होता है ।इन प्रकाशमय तरंगों के प्रकाशित होने से व्यक्ति भय और त्रास से त्राण पाता है । इस चक्र के जागरण से अनेक चमत्कारिक विभूतियाँ प्राप्त हो सकती हैं ।बारह पंखड़ियों वाले यह चक्र हृदय  स्थान में स्थित होता है ।

5 ● विशुद्धि चक्र--- पाँचवा चक्र विशुद्धि चक्र है, जो गले में स्थित होता है ।अंग्रेजी में इसे थ्रोट चक्र कहा जाता है ।सोलह पंखड़ियों वाले इस चक्र में हरे रंग की प्रकाश-तरंगों की बहुलता होती है ।इस चक्र के जागरण पर व्यक्ति के जीवन क्रम में समस्वरता, सरलता जैसे सहज-स्वाभाविक गुणों का विकास होने लगता है।

6 ● आज्ञा चक्र--- छठा चक्र आज्ञा चक्र है, जिसे अंग्रेजी में 'ब्रो चक्र' कहा जाता है ।इसे ही दिव्य चक्र, तीसरी आँख , ज्ञान केंद्र आदि नामों से भी जाना जाता है । मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक की पंखड़ियों का जोड़ पचास होता है। पचास इड़ा के एवं पचास पिंगला के तथा अष्टधा प्रकृति के आठ मिलकर  एक सौ आठ बनते हैं ।
 
                      इस चक्र के जागरण पर सत्प्रवृत्तियाँ विकसित होती चली जाती हैं ।आज्ञा चक्र का पूर्ण विकास होने पर दिव्य दृष्टि का वरदान मिलता है , जो मनुष्य को नीर-क्षीर विवेक बुद्धि की विभूतियों से वासंती पुष्पाहार की तरह लाद देती है।यही वह संपदा है , जो मनुष्य को श्रेयपथ की ओर अग्रसर करती है और मोक्ष प्रदान करती है।

7 ● सहस्रार चक्र--- सातवें चक्र सहस्रार को अंग्रेजी में 'क्राउन चक्र' कहा जाता है ।योग ग्रन्थों में इस चक्र को सभी चक्रों का समन्वित स्वरूप बताया गया है ।इसका रंग श्वेत माना जाता है ।इसमें षट्चक्रों के सभी रंगों का समावेश होता है ।जिस प्रकार सूर्य के सम्मिलित प्रकाश का रंग श्वेत है, उसी तरह सहस्रार से उद्भूत प्रकाश-तरंगें श्वेत हैं ।

थियोसोफिकल सोसायटी , लंदन के विख्यात गुह्य विज्ञानी चार्ल्स वैब्स्टर लेडबीटर के अनुसार मूलाधार की अपेक्षा सहस्रार चक्र में दो सौ पचास गुनी अधिक शक्तियाँ सन्निहित होती हैं ।सहस्रार में 972 ( नौ सौ बहत्तर ) पंखडियाँ हैं, जो हजार के सन्निकट होने के कारण सहस्रार कहलाती हैं ।यहीं से प्राणचेतना के स्फुलिंग सहस्त्रों की संख्या में उठते रहते हैं ।विरलों का ही यह चक्र जाग्रत होता है।
 
शिव शक्ति का , आत्मा-परमात्मा का मिलन स्थल यही है ।इसका दर्शन परिष्कृत एवं सूक्ष्म बुद्धि से ही संभव हो पाता है ।व्यक्तित्व विकास का यही उच्च सोपान है।भारतीय आध्यात्म शास्त्रों, साधना ग्रन्थों, उपनिषदों एवं तंत्रशास्त्रों में सहस्रार चक्र की महिमा- महत्ता का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, साथ ही साथ उसकी उच्चस्तरीय आध्यात्मिक उपलब्धियों का उल्लेख किया गया है।

  चक्रों की सात संख्या होने पर भी  षट् चक्र इसलिए कहे जाते हैं; क्योंकि हमारे स्थूल शरीर की सीमा रेखा आज्ञा चक्र तक ही सीमित है और स्रहसार चक्र के जागने पर व्यक्ति शरीर के दायरे से पार चला जाता है।षट् चक्र एक प्रकार की सूक्ष्म ग्रन्थियाँ हैं जो सुषुम्ना में स्थित तीन नाड़ियों में सबसे भीतर ब्रह्म नाड़ी के मार्ग में बनी हुई हैं ।अलग- अलग चक्रों की अलग-अलग प्रकृति होती है और इनके माध्यम से विभिन्न ऊर्जा स्तरों से सम्बन्ध साधा जा सकता है।

        ●●● कुंडलिनी शक्ति एक महाविज्ञान ●●●

वस्तुतः चक्र- बेधन और कुंडलिनी जागरण अत्यन्त गूढ़ प्रक्रिया है।सुपात्र शिष्य और समर्थ गुरू के संयोग से ही यह प्रक्रिया सम्पन्न होती है।उपनिषदों, पुराणों और योगग्रन्थों में इसकी विशद विवेचना हुई है।षट् चक्रों का वेधन करते हुए कुंडलिनी तक पहुँचना और उसे जाग्रत करके आत्मोन्नति के मार्ग में लगा देना, यह एक महाविज्ञान है।

षट् चक्रों के बेधन और कुंडलिनी के जागरण से ब्रह्मरंध्र में ईश्वरीय दिव्यशक्ति के दर्शन होते हैं और महत्वपूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। मूलाधार से सहस्रार तक की यात्रा को ही महायात्रा कहते हैं ।सहस्रार को न्यूक्लियस कहते हैं ।आत्मसाक्षात्कार की ब्रह्म साक्षात्कार की प्रक्रिया यहीं सम्पन्न होती है।विरले ही होते हैं जिनमें सहस्रार पूर्णरूपेण जाग्रत होता है।।भगवान् बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, शंकर आदि ऋषियों का सहस्रार जाग्रत था।

इन चक्रों में ऊर्जा होती है यदि यह ऊर्जा स्वस्थ, सकारात्मक व क्रियाशील है तो इसका सकारात्मक लाभ व्यक्ति को मिलता है।
सामान्य व्यक्ति भी अपने सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रों की ऊर्जा का सामान्य लाभ ले सकता है और अपने जीवन में विशेष ढंग से आगे बढ़ पाता है।जब चक्रों में साधक अपने ध्यान को केन्द्रित करता है तो उसे वहाँ विशिष्ट कोण निकले हुए दिखाई देते हैं, जैसे पुष्प में पंखडियाँ होती हैं ।

                      आज ऐसी तकनीकें विकसित हो गईं हैं, जिनके माध्यम से हमारे ऊर्जा शरीर का प्रतिबिम्ब भी लिया जा सकता है   और शरीर में प्रवाहित ऊर्जा के स्वरूप व आकार- प्रकार को भी देखा जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के ग्रह नक्षत्रों का हमारे शरीर से सूक्ष्म सम्बन्ध होता है।इसी कारण ये हमारे जीवन व व्यक्तित्व को प्रभावित कर पाते हैं ।

जब कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है तो वह सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से ऊर्ध्व गमन करती हुई आगे बढ़ती है और अंततः आज्ञा चक्र को पार करके सहस्रार में शिव मिलन के लिए जा पहुँचती है।

कस्तूरी वाला हिरन तब तक अतृत्व ही फिरता रहेगा , जब तक कि अपने ही नाभिकेन्द्र में कस्तूरी की सुगन्ध सन्निहित होने पर विश्वास नहीं करेगा ।

यह बहुत विस्तृत विषय है --
यहाँ चक्रों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास है।
सादर धन्यवाद ।


3 comments:

  1. है तो थोड़ा गूढ़ विषय लेकिन बहुत अच्छे से समझाया है आपने , धन्यवाद आदरणीया 🙏

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