ध्यान मन का स्नान है, ध्यान से मन का परिष्कार व परिशोधन होता है।किसी भी विषय पर मन को टिकाकर जब मन स्थिर होने लगे, तो उसमें मन का गहराई से एकाग्र होना ही ध्यान है।ध्यान एक विलक्षण व समग्र प्रक्रिया है।शिखर पर आरोहण है- ध्यान ।
महर्षि पतंजलि अपने योग दर्शन में स्पष्ट रीति से समझाते हैं कि योग की यथार्थता- सार्थकता ध्यान में ही फलित होती है।ध्यान की प्रगाढ़ता में चित्त दर्पण की भाँति स्वच्छ हो जाता है ।योग के अभ्यास से निरुद्ध चित्त उस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा की अनुभूति करते हुए , स्वयं में ही संतुष्ट रहता है।
महर्षि पतंजलि कहते हैं कि आध्यात्मिक जीवन के लिए चित्त को संस्कारों से मुक्त होना ही चाहिए ।इस शुद्धिकरण के लिए भी एक प्रक्रिया है, वह है-- पवित्र भाव, पवित्र विचार, पवित्र दृश्य अथवा पवित्र व्यक्तित्व के ध्यान की ।
ध्यान का अभ्यास करते- करते धीरे- धीरे चित्त को निर्विचार अवस्था प्राप्त होती है।इस तरह ध्यान मन का पुनर्निर्माण है, पुनर्संरचना है अर्थात अब हमें नकारात्मता स्वीकार नही अस्तित्व हमें जो भी शुभ दे रहा है उसे हम ग्रहण करें और हम भी अस्तित्व को कुछ शुभ दें।यही ध्यान का मुख्य आधार है।
ध्यान के बारे में तीन बातें हैं- धारणा, ध्यान,समाधि इन तीनों को मिलाकर कहते हैं, संयम।धारणा हमारे व्यक्तित्व में एक तरह का बीजारोपण है इसमें हम अपनी मनोभूमि, चित्तभूमि में एक कल्पना, एक भाव रखते हैं और इसके लिए वातावरण जुटाते हैं, धीरे-धीरे वह हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बनने लगता है।अपने अनुरूप हमारे चित्त को ढालने लगता है।
ध्यान की गहन व चरम अवस्था में ही अनेक महापुरुषों ने परमात्मा की अनुभूति की। ध्यानी व ध्यानसिद्ध व्यक्ति की दृष्टि जिधर पड़ जाती है, वहीं आनंद का साम्राज्य छा जाता है।उनके आभामंडल में प्रवेश करते ही हमको असीम आनंद व शांति का अनुभव होता है ।
●●●ध्यान के लाभ ●●●
हमारे जीवन में एक लय है और इसी लय में हमारे जीवन का सौन्दर्य है ।जीवन की लय ही जीवन का कवच है। प्रकृति उसको अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है।यदि जीवन की इस लय में असंतुलन होता है, इसमें व्यतिक्रम आता है तो ध्यान इस व्यतिक्रम की पुनर्स्थापना करता है।ध्यान द्वारा हम इस जीवन की लय में पुनः संतुलन स्थापित करते हैं ।
हमारे जीवन में स्थूल के साथ सूक्ष्म, सूक्ष्म के साथ अतिसूक्ष्म तत्व पिरोए हुए हैं ।ध्यान इसी तल पर लय बिठाता है, हमें संवेदनशील बनाता है, हमें चैतन्य बनाता है।शरीर का स्वस्थ होना और मन का स्वच्छ होना जीवन को लयपूर्ण बनाता है।ध्यान द्वारा स्थिर एवं शान्त स्थिति में पवित्र धारणाओं के पुष्प मुस्कराते हैं ।
ध्यान द्वारा मन को एकाग्र करने पर ही इसकी सामर्थ्य को जाना जा सकता है। ध्यान से हमारी नकारात्मता सकारात्मकता में परिवर्तित होने लगती है ।ध्यान का नियमित अभ्यास जीवनी शक्ति को बढ़ाता है। ध्यान के अभ्यास से अंतःवृत्तियों एवं अंतःशक्तियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।ध्यान से हमारी मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है ।
ध्यान के नियमित अभ्यास से हम हर पल आनंदित होते चले जाते हैं ; जैसे- जैसे हमारा आनन्द सघन होता चला जाता है ,वैसे - वैसे हमारा ध्यान भी विकसित होता चला जाता है।ध्यान के अभ्यास से ही आध्यात्म के सत्य का निष्कर्ष पाया जा सकता है।
●●●ध्यान कैसे सधे●●●
ध्यान में मन न लगना एक समस्या होती है।अधिकांश लोग यह कहते हैं कि ध्यान में मन स्थिर नहीं होता ।ध्यान से शरीर में जो ऊर्जा उत्पन्न होती है, उसे आत्मसात् करना होता है।यदि ऐसा नहीं कर पाते तो लोग निराश होकर ध्यान करना छोड़ देते हैं ।
कबीर कहते हैं कि- " जिन खोजा तिन पाइयाँ "
ईसा कहते हैं--- द्वार खटखटाओ, वह खुलेगा।
यही तो साधना है जो सरल भी और जटिल भी, निर्भर करता है साधक की मनोभूमि पर।स्वयं से पूछें-- क्या हम ध्यान साधना के पथिक बनने के लिए तैयार हैं ?
यदि हमारा मन ध्यान साधना का पथिक बनने के लिए तैयार है तो अंतर्यात्रा के द्वार में स्वागत के वन्दनवार सजे हैं- बस चलते जाना है अंतर्यात्रा की अंतर्धारा के साथ ।
ध्यान के लिए मन का स्थिर व शान्त होना व शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है ।अभ्यास भी जरूरी है ध्यान सधने के लिए ।
ध्यान की शुरुआत होती है।महर्षि पतंजलि कहते हैं-- स्थिरं सुखं आसनम्। स्थिर होकर सुखपूर्वक बैठ सको वह आसन है।
शरीर के स्थिर हो जाने पर धीरे- धीरे हमारा मन स्थिर होने लगता
है, मन में परिवर्तन आने लगता है, फिर हम ध्यान के द्वारा अपनी दिशा तय कर सकते हैं ।मन का टिकना कठिन है , लेकिन मन की दिशा तय होना उससे भी ज्यादा कठिन है।ध्यान के साथ- साथ स्वांस पर भी हम ध्यान दें तो ध्यान जल्दी सधने लगता है।
जिन्हें ध्यान का लाभ लेना है उन्हें अपने भोजन पर भी ध्यान देना चाहिए, उनका भोजन सुपाच्य, हल्का और पौष्टिक होना चाहिए ।हम जितना पौष्टिक भोजन लेंगे उतनी ही ध्यान की गति तीव्र व सुगम हो जाएगी।
ध्यान का लाभ लेने वाले को अकारण व अनावश्यक नहीं बोलना चाहिए ।अधिक देर तक मोबाइल फोन पर बात नहीं करनी चाहिए एवं तेज स्वर का संगीत श्रवण नहीं करना चाहिए ।व्यक्ति की आधे से अधिक शक्ति वाणी का प्रयोग करने में व्यर्थ हो जाती है।इसलिए ध्यान साधक को जितना संभव हो उतना मौन रहना चाहिए ।
ध्यान से ही आत्म साक्षात्कार संभव है।ध्यान से ही आध्यात्मिक
जीवन श्रेष्ठ बनता है।ध्यान से ही परमात्मा की अनुभूति हो सकती है।
नित- नित प्रभु तेरा ध्यान करूँ
जीवन को सफल बनाऊँ
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
अत्यंत ही उपयोगी और समझकर जीवन में उतारने योग्य पोस्ट
ReplyDeleteआपको सादर अभिवादन व धन्यवाद
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण