"ओउम् ही जग का सार है
ओउम् परमात्मा का नाम, मंत्रों का अधिपति है।यही वह स्वरूप है जिसका सृष्टि के प्रारम्भ के लिए उद्भव हुआ ।ओउम् का स्वरूप तीन अक्षरों से बना है- त्रिअक्षरमय (अ उ म्) ओंकार साक्षात परमात्मब्रह्म का वाचक हो जाता है।ओउम् में 'अकार' विष्णु का वाचक है, ' उकार' महेश्वर का और 'मकार' ब्रह्मा का वाचक है--
ओंकारस्य तस्य नादश्च प्राणौ भूत्वा चराचरे।
सृष्टा धर्ताऽपहर्ता यस् तस्मै सर्वात्मने नमः ।।
ओंकार का नाद विश्व में,
जड़ चेतन के प्राणों संग।
ब्रह्मा विष्णु और शिव होकर,
सबकी आत्मा की तरंग ।।
मन्त्र तो कई हैं, पर ओउम् अक्षर ब्रह्म है, यह परमाक्षर है।ओउम् को परमात्मा के समान मान्यता प्राप्त है ।यह नाद का रूप है।सृष्टि का प्रारम्भ इसी प्रणव नाद से हुआ है।मन्त्र में असीम शक्ति व सामर्थ्य सन्निहित है।मंत्र जपकर्ता की प्राणरक्षा करता है।इष्ट से एकाकार होने का व तादात्म्य स्थापित करने का माध्यम भी वही है।
श्री मद्भगवद्गीता में भगवान् कृष्ण कहते हैं--
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञ दान तपः क्रिया।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्म वादिनाम्।।
अर्थात वैदिक सिद्धांतों को मानने वाले पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तप रूप क्रियाएँ 'ओउम्' इस परमात्मा के नाम का उच्चारण करके प्रारम्भ होतीं हैं ।
ओउम् जिसको प्रणव भी कहते हैं-- शास्त्र इसे ब्रह्म की शक्ति से समन्वित मानते हैं ।सम्पूर्ण वेद जिस पद का कथन करते हैं, सम्पूर्ण तपस्याएँ जिस लक्ष्य का बोध कराती हैं वह परमपद ओउम् ही है।शब्द में संव्याप्त शक्ति को समझने के लिए ही उसके प्रतिनिधिस्वरूप " ओउम् " की महत्ता अनेक शास्त्रों में गाई गई है।
महर्षि पतंजलि ने उस परमात्मा का वाचक प्रणव ओउम् को माना है और कहा है कि ओउम् मंत्र का जप सभी प्रकार की सिद्धियों और मुक्ति का प्रदाता है।महाभारत में महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि जिस प्रकार किसी व्यक्ति का नाम लेकर पुकारने से वह प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार परमात्मा भी अपने प्रिय नाम " ओउम् " के उच्चारण से प्रसन्न हो जाते हैं ।
वेद की जितनी ऋचाएँ हैं, वे सब ' ओउम् ' का उच्चारण किए बिना फल नहीं देतीं ।वेदवादी ओउम् का उच्चारण करके ही वेदपाठ, यज्ञ, दान, तप आदि शास्त्र विहित क्रियाओं में प्रवृत्त होते हैं ।ओउम् का सबसे पहले उच्चारण इसलिए किया जाता है; क्योंकि सबसे पहले प्रणव ( ओउम्) प्रकट हुआ है उस प्रणव की तीन मात्राएँ हैं ।उन मात्राओं से त्रिपदा गायत्री प्रकट हुई है और त्रिपदा गायत्री से ऋक्, साम, यजुः----यह वेदत्रयी प्रकट हुई है।इस दृष्टि से ओउम् सबका मूल है और इसी के अन्तर्गत गायत्री भी है तथा सभी वेद भी हैं ।
वस्तुतः ओंकार साधना प्राणयोग ही है।ओउम् के उच्चारण से हम गहरी व लयपूर्ण श्वास लेने का अभ्यास भी कर सकते हैं ।गहरी व लयपूर्ण श्वसन पद्धति का अभ्यास करने वालों के लिए प्राणायाम का मार्ग प्रशस्त है।योग साधक जब नियमित और निरंतरता से ओउम् साधना करते हैं, तो यह भी महत्वपूर्ण प्राणायाम ही है।
उपनिषद् की शब्दावली में--- "प्राणौ वै ब्रह्मः।"अर्थात प्राण ही ब्रह्म है।
योगाचार्यों के अनुसार ' ओउम्' उच्चारण ऐसा अभ्यास है , जो ध्वनि व स्पंदन के माध्यम से पीनियल ग्रन्थि पर प्रभाव डालता है ।ओउम् के उच्चारण से प्राणऊर्जा का अभिवर्द्धन तथा मन सजग व सशक्त बनता है।हमारी साँसों को लेने की प्रक्रिया जितनी लम्बी होगी, उतनी ही हमारे मन की गति ऊर्ध्वगामी हो सकेगी।ध्यान व प्राणायाम की प्रक्रिया से पूर्व ओंकार का, भावपूर्ण उच्चारण करने से मन शान्त हो जाता है।
ओंकार का जप करने से तनाव के दौरान सक्रिय एड्रेनलीन हाॅर्मोन नियंत्रित होता है और मस्तिष्क में अल्फा तरंगों में वृद्धि होती है, जो मस्तिष्क की शान्त अवस्था का परिचायक है ।ओउम् के उच्चारण से निकली तरंगें, शरीर की तरंगों से मिलकर शरीरको शक्तिशाली बनाती हैं, मन को एकाग्र करती हैं ।ओउम् के जप से श्वसन क्रिया में सुधार होते ही पूरे शरीर में प्राणवायु का समुचित संचार होने लगता है।
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आंद्रे ने अपनी कृति योगा-- सेल्फ टाॅट में कहा है कि अकेले 'ओउम्' मंत्र का यदि नित्य नियमित रूप से जप किया जाए तो इसका मन और शरीर पर सुनिश्चित रूप से आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है।
अन्य प्रयोग- परीक्षणों में पाया गया है कि पद्मासन या सुखासन में बैठकर गहरे श्वास लेते हुए जब ओउम् का उच्चारण किया जाता है, तो प्राकृतिक रूप से ऊँ की दीर्घ ध्वनि स्वरयंत्र को प्रकंपित करते हुए निकलती है।यह मधुर भी हो सकती है और भारी भी।
इसके अतिरिक्त मस्तिष्क के ऊपरी भाग में भी इस कंपन की अनुभूति की जा सकती है।
ओंकार रूपा शान्ति स्वरूपा
ब्रह्म नाद तुम्हें शत शत वन्दन ।
ओंकार रूपा शक्ति स्वरूपा
ब्रह्म नाद तुम्हें शत शत वन्दन ।।
मंत्रजप का प्रभाव सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम एवं वेगस नर्व पर भी पड़ता है ।जप के समय श्वसन तंत्र की मांसपेशियोंमें शिथिलता आ जाती है , फलतः उनमें भी नवजीवन आ जाता है।प्रयोग- परीक्षणों में पाया गया है कि ऊँ के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनितरंगों से पेट व वक्षस्थल के अन्दर स्थित कोमल अंग- अवयवों की भी अच्छी तरह से मालिश हो जाती है।
ऊँ के जप से जप कर्ता के चारों ओर शान्त वातावरण का निर्माण होता है।इससे श्वास- प्रश्वास की दर कम हो जाती है, जिससे अनेक भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ योगशास्त्रों में बताए गए हैं ।इसके द्वारा स्वयं का अस्तित्व व बाह्य वातावरण दोनों प्रभावित होते हैं ।ऊँ जप से शरीर में स्थित सूक्ष्म चक्र भी प्रभावित होते हैं ।
ऊँ का जाप करते हुए, प्रभु का स्मरण करते हुए, निरंतर उन्हीं का ध्यान करते हुए ब्राह्मी चेतना से जुड़ सकते हैं ।योग शास्त्र बताते हैं कि यदि कोई साधक बारह वर्षों तक परमात्मा को स्मरण करते हुए, भावविह्लल हो प्रतिदिन बारह हजार 'ओउम्' मंत्र का जप करे तो वह 'परमहंस' बन जाता है।
अपनी साँसों पर थोड़ा भी ध्यान देने से हमारे अन्दर बहुत परिवर्तन आ सकता है।विद्यार्थियों के लिए भ्रामरी प्राणायाम अति उपयोगी है उससे स्मृति क्षमता, स्थिरता व एकाग्रता बढ़ती है साथ- साथ ओउम् का अभ्यास छिपी हुई मानसिक क्षमताओं को उभारने में सहयोग करता है ।
वस्तुतः ओउम् का जप बिना किसी बाधा के कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है।ओउम् साधना साँसों की लयबद्धता और तालबद्धता में सहायक है।श्वास की लय से जीवन ध्यान का संगीत एवं समाधि की सरगम झंकृत होने लगती है।
हमारे मुख से निकला प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है और इस कंपन से लोगों में अदृश्य प्रेरणाएँ जाग्रत होती हैं ।अतः प्रणव अर्थात ओंकार का जप अत्यन्त ही प्रभावशाली यौगिक अभ्यास है।नाम जप में होने वाली पुनरावृत्ति के पीछे युधिष्ठिर और प्रहलाद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया का संकेत है।एक को पढ़ लेने पर सारी पढ़ाई पूरी हो जाती है।
सभी वैदिक ग्रन्थ, शास्त्र इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि सृष्टि की उत्पत्ति के मूल में 'ओंकार' ध्वनि ही है।वैज्ञानिक सिद्धांत भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं ।
जब धार तुम्हारी बहती है
सृष्टि को लय सी मिलती है।
ओंकार रूपा शान्ति स्वरूपा
ब्रह्म नाद तुम्हें शत शत वन्दन ।।
स्पष्ट है कि ओउम् जप से एक ओर जहाँ आध्यात्मिक विभूतियाँ जीवन में प्रकट होती हैं, वहीं सामान्य जन अपनी चिंता, अवसाद और कुंठा में इसका अतिशय लाभ उठा सकते हैं ।ओउम् ही परम लक्ष्य और परम साध्य है।
श्वास- श्वास पर ओउम् की पूजा
ओउम् हमेशा जपें
स्वस्थ हमेशा रहें
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
"ओउम्"
"ओउम" 🙏
ReplyDeleteसादर अभिवादन आपका , ढेर सारी शुभकामनाएं 💐
अत्यंत ही महत्वपूर्ण ब्लाग, ईश्वर कृपा आप पर बनी रहे 🙏