●●● प्रार्थना जीवन का शिखर●●●
हृदय की पुकार है प्रार्थना । भक्त और भगवान् का मिलन है प्रार्थना ।प्रार्थना वह है , जिसमें व्यक्ति हृदय की गहराई से श्रद्धा और विश्वास के भाव के साथ भगवान् से संवाद स्थापित करता है।प्रार्थना एक लयबद्धता है, जो हमारे भीतर घटित होती है, इसी लयबद्धता में हम विराट की ओर उन्मुख होते हैं ।
"पुकार सुनलो दया के सागर तुम्हारे चरणों में आ गए हैं"
हमारे विश्व के सभी धर्मों में एकमात्र जो समानता है, वह है-- प्रार्थना ।हर धर्म किसी न किसी रूप में भगवान् से प्रार्थना करने को कहता है।प्रार्थना भगवान् की सत्ता से जुड़ने का एक सरल मार्ग है, जिसे कर पाना सभी के लिए संभव है।
"सब एक हों, सब नेक हों चाहे धर्म उनके अनेक हों
हे जगत के मालिक जगत में शान्ति की धारा बहा"
श्रद्धा से सत्य प्रकट होता है और प्रार्थना के माध्यम से हम सत्य स्वरूप परमात्मा की ओर बढ़ते हैं ।प्रार्थना में जब शरीर, मन व वाणी तीनों अपने आराध्य देव की सेवा में एक रूप होते हैं, तब वह सीधी 'परमात्मा' तक पहुँचती है।प्रार्थना तो परम प्रेम है, जीवन का शिखर है जो किसी के लिए और कभी भी की जा सकती है।प्रार्थना की वास्तविक अनुभूति तो तब होती है , जब प्रार्थना ही हमारा आनन्द बन जाती है।
जब हम 'आचार्य शंकर' की स्तुतियाँ देखेंगे, उनका स्रोतों का गायन सुनेंगे , तो पाएँगे कि अत्यन्त निष्कपट, सरल शिशु का हृदय पुकार रहा है।श्री कृष्ण भक्त 'मीरा' का जीवन भी प्रार्थना का स्रोत था ।वे पद- कविताओं के माध्यम से अपने अंतस् की पुकार भगवान् के पास निरंतर भेजती थीं ।'श्री भक्त प्रह्लाद' की भक्ति अविरल प्रवाहित रहती थी इसी भक्ति के वश में होकर भगवान् भी हर पल उनके साथ रहते थे।'ध्रुव' ने प्रार्थना की शक्ति से ही भगवान् के साक्षात् दर्शन किए ।अनेक ऐसे भक्त हुए हैं जिन्होंने अपने हृदय की पुकार से भगवान् की अनुभूति का एहसास किया।
"ध्रुव ने जब घोर तपस्या की वन में आ दरश दिखाया है
प्रहलाद ने जप कर नारायण तुम्हें नृसिंह रूप में पाया है "
प्रार्थना के लिए हमारे शास्त्रों में अनेक श्लोक, मंत्र, स्तुतियाँ व पाठ हैं ।हिन्दी, अवधी व अन्य भाषाओं में भी विभिन्न देवी - देवताओं से प्रार्थना हेतु चालीसा, आरती व गीत हैं ।अन्य धर्मों की भी अलग-अलग प्रार्थना पद्धतियाँ प्रचलन में हैं ।
●●●प्रार्थना एक आध्यात्मिक कवच●●●
प्रार्थनामय जीवन अर्थात पूर्ण भगवत्मय जीवन ।जब भी मनुष्य किसी संकट में होता है, परेशानी में होता है तो प्रार्थना स्वतः ही उसके अंतर्मन से निकलती है।निश्चित रूप से प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है, जो किसी भी मुश्किल परिस्थिति से हमें बाहर निकालती है। जब हम सच्चे मन से अपने इष्ट या किसी अलौकिक शक्ति को पुकारते हैं तो हमें अपने विश्वास के अनुरूप ही सहायता भी मिलती है।
सच्चे मन की पुकार से हम संकटों से मुक्ति भी पाते हैं साथ ही दिव्य सत्ता के साथ भी जुड़ जाते हैं ।प्रार्थना करते समय मन सात्विक विचारों से भरा रहता है।
प्रार्थना द्वारा हम आध्यात्मिक रक्षा कवच धारण कर लेते हैं और हमारे अन्दर आध्यात्मिक शक्तियों का प्रवाह फूट पड़ता है।
भगवान् भाव के भूखे हैं इसलिए प्रार्थना तभी चमत्कारी होती है जब हमारा अंतर्मन सच्चाई के साथ भगवान् को पुकारता है।
प्रार्थना प्रभु को याद करने के साथ- साथ उनके प्रति कृतज्ञता का अर्पण भी है: इसलिए प्रार्थना में समर्पित होकर यह कहें कि 'हे प्रभु ! जिसमें हमारा भला हो , वही हमें देना।
"भगवान् तुम्हारी भक्ति से जीवन में सब सुख पाया है "
●●● प्रार्थना ऊर्जा का विज्ञान ●●●
इस जगत में ऊर्जा का एक विज्ञान काम करता है, जो प्रार्थना से सम्बंधित है।संसार में प्रत्येक व्यक्ति से कुछ विशेष प्रकार की तरंगें उत्सर्जित होती रहती हैं , इनमें विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है।रोगी व निराश व्यक्तियों में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।सकारात्मक सोचने वाले व्यक्तियों में सदा सकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
आज विज्ञान भी प्रार्थना के प्रभाव को मानने लगा है।इस विषय पर शोध कार्य भी हो रहे हैं । प्रार्थना के साथ दो तथ्य जुड़े हुए हैं- पहला सकारात्मक ऊर्जा ( पाजिटिव एनर्जी) तथा दूसरा हमारा विश्वास ।प्रार्थना की शक्ति सकारात्मक ऊर्जा को प्रेषित करती है व अपनी ओर आकर्षित करती है; क्योंकि प्रार्थना में इतनी शक्ति होती है, जो नकारात्मक संवेगों को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को प्रेषित करती है।इससे आत्मिक शक्ति में वृद्धि होती है ।
प्रार्थना हमारे अंतर्मन को जाग्रत करती है, हमें ऐसा अनुभव होने लगता है कि हम परमात्मा से प्रत्यक्ष बातें कर रहे हैं और वहीं से आशा, उत्साह व सफलता प्राप्त कर रहे हैं ।
प्रार्थना के लिए हम मंत्र, स्रोत, स्तुतियाँ, भजन ,आरती इनमें से अपनी रुचि के अनुसार किसी का भी चयन कर सकते हैं , बस हम सच्चे मन से किसी भी माध्यम से प्रभु को पुकारें, जिससे हमारी भावनाएँ सुगमता से ऊर्जा के विभिन्न स्तरों को पार करके हमारे इष्ट तक पहुँच सकें ।
"तेरे नाम का जाप करूँ भगवन
प्रभु ध्यान में मेरे बस जाओ "
●●●प्रार्थना एक दिव्य औषधि●●●
प्रार्थना एक तरह का मानसिक और आध्यात्मिक व्यायाम है जिससे मनोबल सुदृढ़ होता है और आत्मश्रद्धा विकसित होती है। अनुसंधानकर्ता चिकित्सा विशेषज्ञों ने पाया है कि दिव्य चेतना में श्रद्धा रखने वाले रोगी अन्यों की अपेक्षा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ पाते हैं ।बड़ी से बड़ी बीमारी प्रार्थना से नष्ट हो जाती है।कभी-कभी बड़े- बड़े चिकित्सक फ़ेल हो जाते हैं पर प्रार्थना का अस्त्र अपना काम करता ही है।
प्रार्थना से हमारा संपर्क, हमारा संस्पर्श, हमारा सान्निध्य उस परम ऊर्जा से होता है तब वह ऊर्जा हमारे अस्तित्व को घेर लेती है और रोग मुक्त होने में हमारी सहायता करती है।
प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री डाॅक्टर लैरी डाॅसी ने अपनी पुस्तक 'हीलिंग वड्रस, दि पाॅवर ऑफ प्रेयर एंड दि प्रैक्टिस ऑफ मेडीसिन' में प्रार्थना से सम्बंधित 130 दृष्टान्तों के बारे में बताया है जिनमें प्रार्थना प्रभावी हुई।
प्रार्थना से यह विश्वास मजबूत होता है कि कोई है जो अनंत, अमर और सर्वव्यापी है।भक्त इसी विश्वास के साथ अपने हृदयरूपी मंदिर में प्रार्थना का सहारा लेकर प्रभु को बिराजमान होने के लिए आमंत्रित करता है।
किसी कवि ने सुन्दर लिखा है-
हर देश में तू, हर वेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एक ही है
No comments:
Post a Comment