नियंता ने मनुष्य की रचना बहुत सूझ-बूझ से की है, मनुष्य चाहे तो अपने अन्दर की सुषुप्त शक्तियों का जागरण करके अद्भुत शक्तियों का स्वामी बन सकता है।वस्तुतः हम आज जो कुछ भी हैं, वह मन मस्तिष्क की ही देन है।
अनुसंधानकर्ता, शरीरशास्त्रियों एवं तंत्रिकातंत्र विशेषज्ञों की मस्तिष्क सम्बन्धी वैज्ञानिक जानकारियाँ सीमित हैं ; जब कि भारतीय ऋषियों की शोधें इनसे कहीं अधिक विकसित हैं ।व्यक्तित्व के सर्वांगपूर्ण विकास में सहायक जिन तत्वों की व्याख्या शास्त्रों में की गई है, शरीर विज्ञानी उन्हें तंत्रिका तंत्र के अन्तर्गत मानते हैं। जिनके निर्देशानुसार काया की समस्त गतिविधियों का नियंत्रण एवं संचालन होता है।अध्यात्म वेत्ताओं ने इसका केंद्र ब्रह्मरंध्र को माना है।
महर्षि दधीचि ने हृदय और मस्तिष्क के सम्मिश्रित स्वरूप को कपाल की संज्ञा दी है।उनके अनुसार, इन्द्रियों की चेतन तरंगों का उद्गम केंद्र मस्तिष्क के मध्य स्थित 'ब्रह्मरंध्र' है।ध्यानबिंदु उपनिषद् में कहा गया है कि कपाल के मध्य में आकाशरंध्र से आता हुआ नाद , मोर के नाद के समान सुनाई देता है।जैसे आकाश में सूर्य विद्यमान है, उसी प्रकार यहाँ आत्मा बिराजमान है और ब्रह्मरंध्र के मध्य में शक्ति स्थित है।वहाँ मन को लय करके आत्मा को देखे।वहाँ रत्नों के प्रभा वाले नादबिंदु महेश्वर का निवास है।जो यह रहस्य जानता है, वह कैवल्य को प्राप्त होता है।
मस्तिष्क में एक अद्भुत संसार छिपा है, जिसे यंत्रों से नहीं, ध्यान- साधना से ही देखा जा सकता है।मस्तिष्क की क्षमता को जाने बिना न तो हम शरीर की यथार्थता जान सकते हैं और न स्वयं की।
मस्तिष्क की सीमाओं का कोई ओर-छोर नहीं है ।यह दृश्य जगत की गुत्थियों को सुलझाता है और अदृश्य जगत की मनोरम कल्पनाओं में भी रंग भरता है।
ऋषियों ने अपने शरीर एवं चेतना पर अनुसंधान करके समस्त विश्व को यह बताया था कि मनुष्य अपार विभूतियों का स्वामी है और सही पात्रता होने पर ही वे विभूतियाँ प्रकट होती हैं ।
आधुनिक विश्व के अनेक आश्चर्यजनक आविष्कार मस्तिष्क की अद्भुत विशेषता के कारण ही सम्भव हुए हैं ।मानव मस्तिष्क की संरचना में 100 अरब स्नायु तंत्र भाग लेते हैं ।मेमोरी अथवा स्मरण शक्ति का केंद्र मस्तिष्क है, परंतु इसे अनंत गुना बढाने की क्षमता भी इसी मस्तिष्क में ही है। हम अपने मस्तिष्क का उपयोग जितना अधिक करते हैं, उसकी क्षमता उतनी ही बढ़ती जाती है।
स्वामी विवेकानंद के अंदर ऐसी प्रतिभा थी कि वे एक बार कोई पुस्तक पढ़ते ही उसके विषय में सब जान जाते थे।आदि शंकराचार्य को भी एकश्रुतिधर के नाम से पुकारा जाता था : क्योंकि वे एक बार में सौ व्यक्तियों के प्रश्नों को सुनकर उनका एक- एक कर उत्तर देने में सक्षम थे।कभी-कभी हम जिन तथ्यों को चमत्कार समझते हैं , वे मानवीय मस्तिष्क में छिपी हुई कोई विशिष्टता भी हो सकती है।
मानवीय मस्तिष्क एक जादुई पिटारा है।इसमें अनगिनत रहस्य समाए हुए हैं ।विज्ञान तो केवल 7 से 13 प्रतिशत की जानकारी प्राप्त कर सका है।अब इसकी गुप्त एवं सुप्त शक्तियों के विकास की तकनीकें खोजी जा रही हैं ।न्यूयॉर्क के 'अलबर्ट काॅलेज ऑफ मेडिसिन' के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डाॅ० बर्गीस का कहना है कि मस्तिष्क की क्षमता में अभिवृद्धि , मस्तिष्क के सदा मानसिक कार्यों में एवं रचनात्मक विचारों में संलग्न रहने से होती है।
अमेरिका के प्रसिद्ध शोध- संस्थान " सेंटर फाॅर माइंड" के डाॅo एलन स्नाइडर ने मानवीय मस्तिष्क के अनुसंधान क्षेत्र में कई प्रयोग किए; उनके प्रयोगों के निष्कर्ष के अनुसार--हमारे मस्तिष्क में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके बारे में वर्तमान विज्ञान पूरी तरह से नहीं जानता।डाॅo स्नाइडर का कहना है कि मानवीय मस्तिष्क के अन्दर अपार संभावनाओं का भंडार है।
आधुनिक शोधों के अनुसार--- मस्तिष्क में स्थित प्रोटीन स्नायुतंत्रों की कनेक्टिविटी को बढ़ाते हैं ।परिणामस्वरूप हमारी स्मरण-शक्ति बढ़ जाती है।GAP -43 (ग्रोथ एसोसिएटेड प्रोटीन) ऐसा ही प्रोटीन है, जो स्मरण- शक्ति में वृद्धि करता है। वर्तमान समय में मस्तिष्क की प्रणाली को समझने के लिए अनेक अनुसंधान किए जा रहे हैं ।
हमारे मस्तिष्क में अनगिनत संख्या में दृश्य, स्मृतियाँ, आवाजें, चित्र तथा घटनाओं का पूरा विवरण संग्रहीत होता है।जैसे ही इनमें से कोई भी हमें प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होता है तो मस्तिष्क में अचानक उसके प्रति प्रतिक्रिया होने लगती है।ब्रेन मैपिंग भी पुरानी स्मृतियों से उत्पन्न क्रिया पर ही आधारित है।
ऐसा माना जाता है कि मस्तिष्क के अंदर वे सब बातें भी दबी रहती हैं, जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के विगत जन्म से होता है।मानस-पटल पर जीवन की घटनाएँ गहराई से अंकित हो जाती हैं ।मनोविज्ञान वेत्ता कहते हैं कि मनुष्य जब शांत एकांत में भी पड़ा रहे, तब भी उसका मस्तिष्क सक्रिय रहता है।स्थूल मस्तिष्क के अतिरिक्त उसकी अन्य कई परतें भी हैं , जिन्हें मनोविज्ञान की भाषा में चेतन, अचेतन, अवचेतन और सुपर चेतन के नाम से जाना जाता है।
मस्तिष्क को सदैव क्रियाशील रखना ही उसकी सामर्थ्य को बढाने का रहस्य है।वैज्ञानिक, इंजीनियर, कंप्यूटर विशेषज्ञ, लेखक, चिंतक , अन्वेषण कर्ता आदि सभी अपने मस्तिष्क का अधिकतम उपयोग करते हैं और इसी कारण वे अपने से संबंधित क्षेत्रों को एक नई दिशा प्रदान करते हैं ।
आधुनिक अनुसंधान इस तथ्य को स्वीकारते हैं " कि मस्तिष्क मन का एक सुन्दर उपकरण है"। मन इसे परिचालित व संचालित करता है।स्वस्थ तन और स्वच्छ मस्तिष्क अंतरिक्ष से दिव्य विचारों को आकर्षित करते हैं ।नई- नई योजनाएँ इसी अवस्था में अवतरित होती हैं । अतः हमें अपने मस्तिष्क की क्रियाशीलता की वृद्धि करने के लिए अपने मस्तिष्क को नए- नए सकारात्मक कार्यों में संलग्न रखना चाहिए ।
"सचमुच मस्तिष्क मन का एक सुन्दर उपकरण है, जिसमें छिपा है एक अद्भुत संसार "।
सादर अभिवादन के साथ धन्यवाद ।
बढ़िया 👌
ReplyDeleteअति उपयोगी
ReplyDeleteNice
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