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Friday, December 27, 2019

"संस्कृत"-- भाषाओं की जननी है संस्कृत , देववाणी है संस्कृत, भारतीय संस्कृति की विरासत है संस्कृत।

            ●●●●संस्कृत भाषाओं की जननी●●●●
 संस्कृत भारतीय मानव विकास क्रम से जुड़ी भाषा है।यह भाषा देश की ही नहीं अपितु विश्व की अनेक भाषाओं का उद्गम स्रोत है। विशेषज्ञ मानते हैं कि संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी है ।यही हमारी पुरातन व समृद्ध भाषा है।विशेषज्ञों से लेकर सामान्य जन तक सभी इस सत्य की अनुभूति करते हैं कि यह भाषा माता की भाँति सभी श्रेत्रीय भाषाओं को ' शब्द- दुग्ध' से  पालती- पोषती है।

                              संस्कृत साहित्य हजारों वर्ष पुरानी भारतीय सभ्यता का सजीव व मूर्त रूप है।हमारी संस्कृति के प्रणेता ऋषियों ने जो ज्ञान प्राप्त किया था,  वह उन्होंने संस्कृत में सहेज कर रख दिया था।इसीलिए तो वेदसंहिता, अरण्यक, उपनिषद्, दर्शन, स्मृति, रामायण, महाभारत आदि सभी संस्कृत में ही रचे गए हैं ।

         पाणिनि, कात्यायन, भर्तृहरि जैसे विद्वानों, पतंजलि जैसे योगगुरु आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कर, वराहमिहिर जैसे गणितज्ञों, चरक, सुश्रुत जैसे महान चिकित्सकों ने अपने शास्त्रों में संस्कृत भाषा का ही प्रयोग किया है ।इस आधार पर पूर्णरूपेण कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषाओं की जननी है ।संस्कृत भाषा के रूप में हमारी जननी है, जो हमें ज्ञान से पोषित करती है, भावनाओं से तृप्त करती है और सतकर्म करने की शिक्षा देती है।

● संस्कृत का शाब्दिक अर्थ --

संस्कृत का शाब्दिक अर्थ है-- शुद्ध, परिष्कृत, श्रेष्ठ, सुगढ़ आदि।संस्कृत का प्रयोग हमें पवित्रता की ओर उन्मुख करता है, श्रेष्ठता का बोध कराता है और हमारी अनगढ़ता को सुगढ़ता में बदलता है।यह भाषा अत्यन्त सूक्ष्म, गंभीर, व्यापक एवं वैज्ञानिक है।

              ●●● संस्कृत देववाणी●●●

            संस्कृत देववाणी है अर्थात देवता अपनी अभिव्यक्ति के लिए जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, वह संस्कृत ही है।संस्कृत में ऋषियों द्वारा अन्वेषित ज्ञान- विज्ञान का संपूर्ण ख़जाना है।भरत जैसे नाट्यविद् एवं वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति, भास , व्यास, वाणभट्ट, भारती, दंडी ऐसे अनेक साहित्य- शिल्पियों के अनेक विशिष्ट एवं उल्लेखनीय अनुदान भी इसी भाषा में निहित हैं ।

       चारों वेद, रामायण, महाभारत, श्री मद्भगवद्गीता, महाकवि कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुन्तलम्  , मेघदूतम्, वात्स्यायन का कामसूत्र, भरतमुनि का नाट्यशास्त्र आदि अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं, जिनका अध्ययन  के लिए दूर देशों के अनेक विद्वान भारत आते रहे हैं और यह प्रक्रिया आज भी गतिशील है। ये सभी ग्रन्थ और ज्योतिष तथा आयुर्वेद जैसी अनूठी  विधाएँ, संस्कृत भाषा में ही रचित, वर्णित हैं ।इन ग्रंथों के मूल तत्व का ज्ञान संस्कृत का अध्ययन किए बिना असंभव है।

              संस्कृत भाषा ने हमें जीवन जीने की कला सिखाई है।
जीवन क्या है ? जीवन का उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या है और कैसे इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाए - संस्कृत भाषा ने इस महान ज्ञान से हमें परिचित कराया है।

   ●●●संस्कृत भारतीय संस्कृति की विरासत●●●
  
भारतीय संस्कृति एवं संस्कार की जननी संस्कृत आज भी एक जीवंत एवं जाग्रत भाषा है।अपने देश की समृद्ध संस्कृति, आचार- विचार, जीवनमूल्य और दर्शन हमारे संस्कृत ग्रन्थों में आदर के साथ समाहित हैं ।इसीलिए तो संस्कृत को भारतीय ज्ञान का कोष कहा जाता है।प्राचीन ऋषि- महर्षियों द्वारा सौंपी गई इस समृद्ध राष्ट्रीय विरासत को समझने और उसे अगली पीढ़ी तक प्रवाहित करने के लिए संस्कृत एक प्रबल व सक्षम माध्यम है।

          संस्कृत में प्रवाह है और इसकी ग्रहणता असंदिग्ध रूप से उच्चस्तरीय है- यही वजह है कि हमारे देश के करोड़ों निरक्षर लोग जो विविध भाषा व बोलियाँ बोलते हैं वे रामायण, महाभारत गीता और संस्कृत के अनेक 

रहस्यों से परिचित हैं एवं उनके मर्म को आत्मसात करते हैं । यह हमारी उत्कृष्ट विरासत है और जब तक यह जीवित है - हमारे सामाजिक, नैतिक , धार्मिक एवं आध्यात्मिक जीवन को प्रभावित करती रहेगी । संस्कृत ही हमारी संस्कृति और संस्कारों को जीवित रख सकेगी।

                  यह अनूठी भाषा विश्व के 260 विश्वविद्यालयों में अभी भी पढाई जाती है।भारत में चार ग्राम ऐसे हैं, जहाँ संस्कृत व्यवहार में बोली जाती है।उत्तराखंड के  दो ग्राम भी संस्कृत ग्राम बनने की दिशा में अग्रसर हैं ।हिमालय के शिखरों से लेकर सागर की गहराइयों के तट पर बसे सभी प्रान्तों के विद्वानों की वाणी संस्कृत भाषा है ।

देश की एकता-अखंडता की रक्षा के लिए भी संस्कृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन जरूरी है।भारत की सभी भाषाएँ संस्कृत से संजीवनी प्राप्त करती हैं ।देश के संविधान में राज्यभाषा हिन्दी के शब्द' भंडार में वृध्दि के लिए मुख्य रूप से 'संस्कृत' तथा गौण रूप से क्षेत्रीय भाषा के शब्दों को स्वीकार करने का प्रावधान किया गया है ।हिंदू , जैन, बौद्ध और अनेक मुसलमान विद्वानों ने संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाया है।

     ●●●संस्कृत की  महत्ता व वैज्ञानिकता ●●●

                 संस्कृत भाषा की महत्ता, वैज्ञानिकता एवं सर्वमान्य उपयोगिता असंदिग्ध है। विशेषज्ञों का मानना है कि संस्कृत स्वरों के उच्चारण से मस्तिष्क की निपुणता के विकास में बड़ी सहायता प्राप्त होती है।संस्कृत व्याकरण के अनुपम ग्रन्थ 'पाणिनीकृत अष्टाध्यायी' को अनेक विदेशी विद्वान मानव मस्तिष्क की चरम विकसित अवस्था का परिचायक मानते हैं ।

                 लंदन शहर के  सेंटजेम्स इंडिपेंडेंट स्कूल में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष 'मार्टिन ब्लूमफील्ड' का कहना था-- " हम प्राथमिक कक्षाओं में संस्कृत को अनिवार्य रूप से इसलिए पढ़ाते हैं ; क्योंकि इससे गणित, विज्ञान और अन्य भाषाओं की ग्रहणशक्ति बढ़ जाती है।यह भाषा संसार की सर्वोत्तम व तर्कसंगत भाषा है।विद्यालय के अध्यक्ष 'श्री जेरेमी सिन्क्लेयर' ने कहा---
" देवनागरी लिपि और बोलने वाली संस्कृत भाषा उँगलियों और जिह्वा की कठोरता को नियंत्रित करने का सर्वोत्तम उपाय है।"

       संस्कृत व्याकरण की सर्वश्रेष्ठता इसके लेखन और वाचन में एकरूपता होने के कारण ही संस्कृत भाषा को पश्चिमी विद्वान 
संगणक ( कम्पयूटर) हेतु सर्वश्रेष्ठ भाषा मानते हैं ।

संस्कृत भाषा की उत्कृष्टता के विषय में देश- विदेश के विद्वानों व भारतीय महापुरुषों के विचार----

योगीराज श्री अरविन्द, संस्कृत को भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ मानते थे।
महात्मा गांधी ने अपने पुत्र को पत्र लिखा कि तुम फ्रांसीसी भाषा के स्थान पर संस्कृत का अध्ययन करो।उन्होंने कहा कि संस्कृत के अध्ययन के बिना कोई सच्चा भारतीय नहीं हो सकता।

            भारतीय संविधान के निर्माता डाॅ.भीमराव अंबेडकर संस्कृत के पक्षधर थे।संविधान सभा में संस्कृत को भारतीय संघ की राज्यभाषा बनाने का समर्थन करते समय डॉ.अंबेडकर ने संस्कृत में व्याख्यान भी दिया था।

भारत के पहले प्रधानमंत्री पं.नेहरू जी ने कहा है- " यदि कोई मुझसे भारत की महानतम निधि और धरोहर के बारे में पूछे तो मैं निर्द्वन्द्व रूप से कह सकता हूँ कि संस्कृत भाषा और उससे सम्बन्धित सभी वांगमय ही हमारी महानतम निधि और धरोहर हैं ।

सर विलियम जोन्स, प्रो. मैकडोनल, प्रो.ड्यूबोई, विलड्यूरां आदि अनेक ऐसे विद्वान हैं, जिन्होंने संस्कृत को विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा घोषित किया है।अनेक भारतीय महापुरुषों ने भी संस्कृत की मुक्त- कंठ से प्रशंसा की है।

प्रो. मैक्समूलर कहते --- संस्कृत के अध्ययन में कुछ विशेष है ।इसे पढ़ते समय , सीखते समय मैं जैसे ऋषिलोक में पहुँच जाता हूँ ।  मेरी भावनाओं में भारत का प्रगाढ़ता से अनुभव होने लगता है।मुझे स्वयं में पावनता की सुगन्ध महसूस होने लगती है।इसे सीखकर मैंने जाना कि यह जीवन- निर्माण की भाषा है।

हम बड़े गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारतमाता की , भारत देश की अनुभूति तथा इसकी समग्र अभिव्यक्ति जितनी संस्कृत भाषा व साहित्य में है , उतनी अन्यत्र कहीं नहीं है।

जो भारत की धरती से प्यार करते हैं, उन्हें संस्कृत भाषा को सीखने, सिखाने और स्वीकारने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए ।
               "भाषाओं की जननी संस्कृत को प्रणाम"

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।





 










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