आजादी पाने के लिए देश की बलिवेदी पर बलिदान होने वालों में एक प्रमुख क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद थे।चन्द्रशेखर आज़ाद का जन्म 22 जुलाई 1906 को श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सोमवार के दिन अलीराजपुर ( मध्यप्रदेश ) के भाँवरा गाँव में हुआ ।अत्यन्त सुन्दर व तेजस्वी होने के कारण उसका नामकरण उसके गुण, रूप के अनुरूप रखा गया " चन्द्रशेखर " ।
चन्द्रशेखर का जन्म कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।उनके पिता नेक, धर्मनिष्ठ और ईमानदार थे और उनमें अपने पांडित्य का कोई अहंकार नहीं था ।वे बहुत स्वाभिमानी और दयालु प्रवृत्ति के थे ।घोर गरीबी होने के कारण चन्द्र शेखर की शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई लेकिन पढ़ना-लिखना उन्होंने गाँव के ही एक बुजुर्ग श्री मनोहर लाल त्रिवेदी से सीख लिया था, जो उन्हें घर पर निःशुल्क पढ़ाते थे ।
●● चन्द्रशेखर के बचपन की निर्भीकता का एक प्रसंग ●●
बचपन से ही चन्द्रशेखर निर्भीक थे ।एक बार दीवाली के समय चन्द्रशेखर रंगीन रोशनी करने वाली माचिस की एक-एक तीली जलाते और उसकी लौ को कुतूहल की दृष्टि से देखते ।उनके संगी साथी भी यह देख रहे थे ।
चन्द्रशेखर ने अपने मित्रों से कहा -- " जब एक तीली जलाने पर इतनी रोशनी होती है तब सारी तीलियाँ एक साथ जलाने पर कितनी रोशनी होती होगी ? " चन्द्रशेखर ने मित्रों से कहा कि इन सब तीलियों को एक साथ जलाए कौन ? किसी भी मित्र की हिम्मत नहीं हुई , सभी के मन में डर था ।चन्द्रशेखर ने निर्भीकता से कहा -- " देखो मैं जलाकर दिखाता हूँ " ।
ऐसा कहकर चनद्रशेखर ने सारी तीलियाँ एक साथ जला दीं।तीलियाँ फक्क से जल उठीं और तेज रोशनी हुई ।ऐसा करने पर चन्द्रशेखर का हाथ भी जल गया , लेकिन वह रोया नहीं ।उनके साथियों को लगा कि चन्द्रशेखर अपने घाव के इलाज के वक्त शायद रोए , परंतु उन्हें आश्चर्य हुआ जब चन्द्रशेखर ने हँसते-हँसते, उसी निर्भीकता के साथ अपने हाथ की पट्टी कराई।चन्द्रशेखर के बचपन की निर्भीकता की ऐसी अन्य घटनाएँ भी हैं ।
●●● चन्द्रशेखर के क्रांति के पथ की शुरुआत ●●●
बचपन से ही चन्द्रशेखर के मन में भारतमाता को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी ।इसी कारण उन्होंने अपना नाम आजाद रख लिया था ।उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना ने उन्हें सदा के लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर कर दिया ।
13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग अमृतसर में जनरल डायर ने जो नरसंहार किया , उसके विरोध में तथा रौलट एक्ट के विरुद्ध जो जन-आंदोलन प्रारंभ हुआ था , वह आंदोलन दिन-प्रतिदिन जोर पकड़ रहा था ।उस आदोलन के तहत बनारस के दशाश्वमेध घाट वाले जुलूस में चन्द्रशेखर अपने साथियों के साथ शामिल हुए ।
जलियाँवाला बाग के नरसंहार के विरुद्ध जन-आंदोलन के दौरान प्रिस ऑफ वेल्स बंबई आए , वे जहाँ-जहाँ गए , वहाँ-वहाँ भारतीयों ने उनका वहिष्कार किया ।जब राजकुमार बनारस पहुँचने वाले थे , तो वहाँ उनके वहिष्कार के लिए जुलूस निकाला ।उसी जुलूस में चन्द्रशेखर थे ।पुलिस वाले जुलूस को तितर-बितर करने के लिए लाठी घुमाते हुए आ रहे थे ।लाठी के प्रहार से बचने के लिए चन्द्रशेखर के साथी इधर-उधर हो गए।केवल चन्द्रशेखर ही अपने स्थान पर निडर खड़े रहे ।इसी आंदोलन से चन्द्रशेखर की क्रांति यात्रा शुरु हुई ।
●●● चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी ●●●
बनारस के दशाश्वमेध घाट वाले जुलूस के समय कुछ आंदोलनकर्ता , जो एक विदेशी कपड़े की दुकान पर धरना दे रहे थे , उन पर पुलिस का एक दरोगा डंडे बरसाने लगा ।इस अत्याचार को देखकर चंद्रशेखर ने पास पड़ा एक पत्थर उठाकर दरोगा के माथे पर दे मारा । दरोगा घायल होकर गिर गया, लेकिन चंद्रशेखर को ऐसा करते हुए एक सिपाही ने देख लिया और चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया ।गिरफ्तारी से चंद्रशेखर जरा भी भयभीत नहीं हुए ।
चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस वालों ने उनके कमरे की तलाशी ली तो उनके कमरे में, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, महात्मा गाँधी समेत अन्य राष्ट्रीय नेताओं के चित्र मिले , जिसके आधार पर पुलिस वालों ने चन्द्रशेखर पर राष्ट्रदोह का आरोप लगा दिया । दिसम्बर की कड़ाके की ठंड में हवालात में बन्द कर दिया , ओढ़ने-बिछाने के लिए बिस्तर भी नहीं दिया ।
पुलिस ने सोचा कि ठंड से घबराकर यह लड़का माफी माँग लेगा, किंतु ऐसा नहीं हुआ ।आधी रात के समय पुलिस इंस्पेक्टर ने चंद्रशेखर की कोठरी का ताला खोला तो वह इंस्पेक्टर यह देखकर आश्चर्यचकितहो गया कि चंद्रशेखर उठक-बैठक लगा रहे थे और कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे ।
●● मजिस्ट्रेट के सामने चंद्रशेखर आजाद की निडरता ●●
बनारस में गिरफ्तारी के अगले दिन चन्द्रशेखर को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया । उन दिनों बनारस में एक कठोर स्वभाव का मजिस्ट्रेट नियुक्त था ।पुलिस वालों ने 15 वर्षीय चन्द्रशेखर को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया ।
मजिस्ट्रेट के चन्द्र शेखर से पूछा --"तुम्हारा नाम ?" ।बालक ने निर्भीकता से उत्तर दिया -- "आजाद"। "पिता का नाम ?" --- मजिस्ट्रेट ने कड़े स्वर में पूछा ।ऊँची गर्दन किए बालक ने तुरन्त उत्तर दिया ---- "स्वाधीन" । युवक का साहस देखकर न्यायाधीश क्रोध से भर उठा ।उसने फिर पूछा --- " तुम्हारा घर कहाँ है ? " इस प्रश्न पर चंद्रशेखर ने गर्व से उत्तर दिया--- " जेल की कोठरी "।न्यायाधीश ने क्रोध में आकर चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाने की सजा दी ।
●●● चंद्रशेखर की सहनशीलता ●●●
बेंत लगाने के लिए चंद्रशेखर को जेल ले जाया गया ।बनारस का जेलर भी बड़े क्रूर स्वभाव का व्यक्ति था ।कोड़े लगवाने के लिए उसने चंद्रशेखर को एक तख्ते से बँधवा दिया और जल्लाद को आदेश दिया और चंद्रशेखर पर तड़ातड़ बेंत पड़ने लगे ।शरीर पर जबरदस्त पड़ने वाली बेंतों कि मार भी चंद्रशेखर की मुस्कराहट और चेहरे पर चमचमाते देशभक्ति के तेज को न छीन सकी ।हर बेंत पर वह ' भारतमाता की जय' और वंदे मातरम् ' का नारा लगाते रहे ।
यह सब देखकर वह जेलर झुँझला उठा और बोला --- "किस मिट्टी का बना है यह लड़का ?" पास खड़े जेल के अन्य अफसर और उपस्थित लोग भी चंद्रशेखर की सहनशक्ति देखकर आश्चर्यचकित हो गए ।
●●●चंद्रशेखर लोकप्रिय नेता कैसे बने ●●●
15 बेंतों की सजा के पश्चात, जेल के नियमानुसार तीन आने पैसे , जेलर ने चंद्रशेखर को दिए, लेकिन चंद्रशेखर ने वह पैसे लेकर जेलर के मुँह पर ही फेंक दिए ।घावों पर जेल के डाॅक्टर ने दवा लगा दी , फिर भी खून बहना बन्द नहीं हुआ ।वह किसी तरह पैदल ही घिसटते हुए जेल से बाहर निकले ,लेकिन अब तक चंद्रशेखर की वीरता की कहानी बनारस के घर-घर में पहुँच गई थी और जेल के दरवाजे पर शहर के लोग फूल-मालाएँ लेकर चंद्रशेखर का स्वागत करने के लिए पहुँच चुके थे ।
बनारस के लोगों ने जेल के दरवाजे पर फूल-मालाएँ पहनाकर चंद्रशेखर का स्वागत किया और उन्हें अपने कंधों पर उठा लिया ।इसके साथ ही इन नारों से आकाश गूँज उठा --- 'चंद्रशेखर आजाद की जय ' ; भारतमाता की जय ' ; 'महात्मा गाँधी की जय ' ।इसके अगले दिन बनारस से प्रकाशित होने वाले 'मर्यादा' नामक समाचारपत्र में एक लेख चंद्रशेखर की फोटो सहित "वीर बालक आजाद" शीर्षक से प्रकाशित हुआ। जिसके संपादक बाबू संपूर्णानंद थे । इस तरह 15 बेंतों की सजा ने किशोर अवस्था में ही चंद्रशेखर को एक लोकप्रिय नेता के रूप में प्रसिद्ध कर दिया ।
●● भारतमाता की आजादी के लिए प्राणों का बलिदान ●●
चंद्रशेखर को मिलने वाली सजा दर्दनाक व क्रूर अवश्य थी, लेकिन इस घटना के बाद भारतमाता के प्रति श्रद्धा और बलवती हुई , उनके मन में देश आजाद कराने की क्रांति की चिनगारियाँ अब आग के रूप में परिवर्तित होने लगीं ।अब उनके जीवन का सिर्फ एक ही संकल्प शेष रह गया और वह था ---- देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना ।
पंद्रह वर्ष की आयु में घटी यह घटना उनके जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय थी जिसके कारण वह चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर 'आजाद' बने और स्वतन्त्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों में गिने जाने लगे ।हृष्ट-पुष्ट शरीर, दृढ़ प्रतिज्ञ व स्थिर एकाग्र मन वाले आजाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ।
कम उम्र में ही चंद्रशेखर आजाद अनेकानेक युवाओं तथा भगत सिंह, सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति देकर अपने संकल्प को पूरा किया ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।