प्रति वर्ष 12 जनवरी को हमारे देश में स्वामी विवेकानंद जयन्ती के उपलक्ष्य में " राष्ट्रीय युवा दिवस " के रूप में मनाया जाता है ।
विशेष रूप से यह दिवस स्कूलों , काॅलेजों, सरकारी संस्थाओं व आर्यसमाज से जुड़ी हुई संस्थाओं में मनाया जाता है।'युवा' शब्द से ही उत्साह, ऊर्जा, स्फूर्ति, सक्रियता आदि गुणों का बोध होता है।' युवा शब्द वास्तव में आयु- रूप- अर्थ प्रदान करने से परे सकारात्मक गुणों, सक्रिय व्यक्तित्व का बोध अधिक करवाता है ।
स्वामी जी युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं, आदर्श हैं ।स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे प्रखर युवा सन्यासी थे, जिनके विचारों को अपनाकर हमारे राष्ट्र के युवा देश को महानता की ओर ले जाने में सक्षम हो सकते हैं ।स्वामी जी ने कहा था- कि " इक्कीसवीं सदी भारत की होगी ।" देश की कुल जनसंख्या का लगभग आधा भाग युवा वर्ग में आता है।
"राष्ट्रीय युवा दिवस" सच में एक महान दिवस है,; क्योंकि यह भारत के युवाओं की सोई हुई शक्ति को जगाता है।यह दिवस बार- बार देश के युवाओं को स्वामी जी के अग्नि मंत्र की याद दिलाता है---
" उतिष्ठत् जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"--- अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि लक्ष्य पूरा न हो जाए।
उपनिषदों से निकला यह श्लोक उन सभी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का महामंत्र है, जिन्हें शिक्षा अर्जन के पश्चात नए कार्यों के माध्यम से एक नए भारत का निर्माण करना है।
12 जनवरी विवेकानंद जयन्ती " राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाई जाती है ताकि युवाओं के प्रेरक व प्रेरणा पुंज के रूप में भारत के युवा उन्हें याद करते हुए उनके बताए हुए रास्ते का अनुसरण करें ।
' ' ' स्वामी विवेकानंद महान व्यक्तित्व के धनी' ' '
स्वामी विवेकानंद एक महान राष्ट्रनिर्माता थे।वे कहते थे कि " व्यक्ति निर्माण ही मेरे जीवन का लक्ष्य है, मैं न तो कोई नेता हूँ और न ही समाज सुधारक ।मेरा काम ही व्यक्ति निर्माण और चरित्र निर्माण है।स्वामी जी जाति और नस्ल से परे मानवता के उत्थान में विश्वास रखते थे।वह सिद्ध आध्यात्मिक उपदेशक थे , जिन्होंने पश्चिमी दुनिया को भी योग और वेदान्त से परिचय कराया।वे पश्चिम और पूर्व के बीच एक सेतु की तरह रहे, जिन्होंने मानवता की आध्यात्मिक आधारशिला को सशक्त बनाने में अतुलनीय योगदान दिया।
स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व व उनके विचार शाश्वत हैं ।उन्होंने भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को एवं वेदों व उपनिषदों के ज्ञान को जन सामान्य के लिए इस तरह प्रस्तुत किया कि आज उनके प्रेरणादायक विचार लोगों के लिए अग्निमंत्र बन गए हैं ।उन्होंने यह भी कहा था - कि " यह खूबसूरत धरती लंबे समय से तमाम खाँचों में बँटे समाज , धर्मांधता और उसके खतरनाक प्रभावों से बेरंग होती चली जा रही है।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार--- "भारत का पुनरुत्थान होगा, पर वह जड़ की शक्ति से नहीं, बरन् आत्मा की शक्ति द्वारा होगा।वह उत्थान शान्ति और प्रेम की ध्वजा से होगा; संन्यासियों के वेश से व धन की शक्ति से नहीं, बल्कि भिक्षापात्र की शक्ति से संपादित होगा।उनका कहना था--- कि त्याग करो, महान बनो।कोई भी बड़ा कार्य त्याग के बिना नहीं किया जा सकता।
स्वामी विवेकानंद जी ने सन् 1893 में 'विश्व धर्म संसद' में ऐतिहासिक व्याख्यान में यह कहा था कि -- मुझे अपने धर्म पर गर्व है , जिसने सहिष्णुता और सार्वभौमिकता की शिक्षा दी।मुझे अपने देश पर भी गर्व है जिसने दुनिया के सभी धर्मों और सभी देशों के लोगों को शरण दी।
स्वामी विवेकानंद के वचन आज भी युवापीढ़ी के लिए प्रेरक व मार्गदर्शक हैं ।उन्होंने कहा था --- मेरा विश्वास युवापीढ़ी में है ।वे सिंहों की भाँति सभी समस्याओं का हल निकालेंगे ।उन्हीं के प्रयत्न व पुरुषार्थ से भारत देश गौरवान्वित होगा।।
मानवता की प्रगति व अस्तित्व के लिए उन्होंने अध्यात्म की अहमियत पर बल दिया।भारतीय संस्कृति के स्वर्णिम स्वरूप को उन्होंने साकार देखा।उन्होंने देखा कि भारतमाता की धमनियों में दौड़ने वाला रक्त प्रवाह- प्राण प्रवाह और कुछ नहीं बस अध्यात्म ही था।इसके विकृत होने से ही भारत देश का पतन हुआ ।
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही प्रतिदिन भगवान् शिव जी की मूर्ति के सम्मुख ध्यान करते थे।परिणामस्वरूप प्रतिदिन शयन के पूर्व उन्हें एक अद्भुत दर्शन होता था।स्वामी जी को शयन के समय आँख मूँदते ही आज्ञा चक्र में निरंतर परिवर्तनशील रंगों का एक ज्योतिपुंज दिखाई पड़ता था ।उसका अवलोकन करते हुए वे धीरे धीरे-धीरे निद्रा में डूब जाया करते थे
एक बार भारत भूमि के अंतिम छोर पर, महासागरों के संगम स्थल पर , जगन्माता की तपस्थली में, ध्यान की गहन अवस्था में------
जगन्माता उन्हें अनुभव करा रही थी कि नवभारत का निर्माण सर्वोच्च आध्यात्मिक चेतना की नव प्रतिष्ठा से होगा।
' ' ' स्वामी विवेकानंद का युवाओं को संदेश ' ' '
स्वामी विवेकानंद ने युवा शक्ति का केंद्र शारीरिक बल को नहीं बरन् मानसिक क्षमताओं को माना।स्वामी विवेकानन्द के अनुसार सारी शिक्षा का ध्येय है--- व्यक्तित्व का विकास ।
उन्होंने मात्र 39 वर्ष का जीवन जिया , इसके बावजूद उन्होंने अपने विचारों व कार्यों से पूरे विश्व को एक नई दिशा प्रदान की।उनके विचार शाश्वत हैं, प्रासंगिक हैं ।उनके कुछ संदेशों में से कुछ इस प्रकार हैं--
1- स्वामी जी के अनुसार-- आत्मविश्वास सबसे महत्वपूर्ण ।स्वयं पर भरोसा रखने से ही युवा शक्ति कुछ काम कर सकती है।
2- ज्ञान प्राप्त करने के लिए तन और मन दोनों का स्वस्थ रहना आवश्यक हैं ।
3- उनका कहना था-- हम स्वयं को शरीर नहीं, आत्मा समझें ।ऐसी आत्मा, जो शक्तिशाली परमात्मा का अंश है।इससे हीनता- बोध समाप्त होकर आत्मविश्वास बढ़ता है ।
4- स्वामी जी के अनुसार -- सेवा की भावना, शान्ति, कर्मठता आदि गुण संयम से आते हैं ।संयमी व्यक्ति तनाव से मुक्त होता है, इसलिए वह हर कार्य गुणवत्ता से करता है।
5- स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि--- " किसी भी क्षेत्र में शासन वही व्यक्ति कर सकता है, जो खुद अनुशासित होता है ।"
6- वे कहते हैं कि हममें से हर कोई सम्राटों के सम्राट का भी उत्तराधिकारी है।इसलिए हर तरह का भय त्यागकर-- हमेशा यह सोचें कि मेरा जन्म कोई बड़ा कार्य करने के लिए हुआ है।
7- उनका कहना था -- कि सारी शक्ति तुम्हारे अन्दर ही है।तुम्हीं अपने मददगार हो, कोई दूसरा तुम्हारी मदद नहीं कर सकता।
8- स्वामी विवेकानंद ने निस्वार्थ भाव से सेवा करने को सबसे बड़ा कर्म माना है।
9- स्वामी विवेकानंद के अनुसार--- आत्मा परम शक्तिशाली है, यही ईश्वर है।इसलिए अपने आत्मतत्व को पहचानकर उसकी शक्ति को जगाएँ।
10- स्वामी जी कहते थे -कि उपनिषद् का प्रत्येक पृष्ठ मुझे शक्ति- संदेश देता है।उपनिषद् कहते हैं --हे मानव ! तेजस्वी बनो, वीर्यवान बनो ,
11- दुर्बलता को त्यागो।तुममें सारी शक्ति अन्तर्निहित है।तत्पर हो जाओ और तुममें जो देवत्व छिपा है , उसे प्रकट करो।
12- उनका कहना था -कि हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जिससे हम मनुष्य बन सकें ।हमें ऐसी सर्वांगीण शिक्षा की आवश्यकता है, जो हमें मनुष्य बना सके।
13- उनका कहना था कि-- जो भी तुम्हें शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दुर्बल बनाए, उसका त्याग कर दो।
14- स्वामी विवेकानंद के अनुसार-- संसार में जब आए हो तो एक स्मृति छोड़कर जाओ।कोई भी काम छोटा नहीं होता ।निरंतर उन्नति के लिए प्रयत्न करते रहो।
15- वे कहते थे --कि धर्म के बारे में कभी झगड़ा मत करो।धार्मिक झगड़े सदा खोखली बातों के लिए होते हैं ।
16- उनका कहना था कि --दान से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है ।सबसे उत्तम पुरुष वह है जिसका हाथ हमेशा खुला रहता है।
' ' ' आधुनिक भारत की युवाशक्ति' ' '
नए सर्वेक्षण बताते हैं कि कुछ एक अपवादों को छोड़कर भारतीय युवा इस समय दुनिया के सबसे जागरूक युवाओं में से एक हैं ।आज दुनिया- अमेरिका और चीन के बाद भारत को तीसरी शक्ति के रूप में स्वीकार करने को मजबूर है।युवाओं की सक्रिय भागीदारी ही -- सामाजिक हलचल और राजनीतिक दिशा- बोध का सूचकांक होती है।
आज भारत की तरह दुनिया का कोई और देश ऐसा नहीं है, जो युवाओं की इतनी बड़ी आबादी के साथ तरक्की की राह पर तेज गति से अग्रसर है ।हम भारतीय सदा से ही 'सर्व धर्म समभाव ' में विश्वास करने वाले और सदैव शान्ति और सौहार्द की कामना वाले रहे हैं ।
देश के युवाओं को अपने गौरवशाली इतिहास का स्मरण करते हुए, श्रेष्ठ विचारों को अपनाते हुए आगे बढ़ना होगा।"राष्ट्रीय युवा दिवस " की सार्थकता इसी में है कि देश का हर युवक स्वामी विवेकानंद जी के आदर्शो का अनुसरण करे और उनके विचारों को बार- बार पढ़कर अपने जीवन में आत्मसात् करे।
एकाग्र मन और निर्मल अंतःकरण से ओतप्रोत युवा ही आज के युग की माँग को पूरा कर सकते हैं, स्वामी जी के स्वप्नों के युवा ही देश को महान बना सकते हैं ।ऐसे युवाओं से ही "विवेकानंद जयन्ती" और "राष्ट्रीय युवा दिवस " की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।
सादर अभिवादन व जय श्री कृष्ण ।
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