श्री रामनवमी महोत्सव भगवान श्री राम के जन्म के उपलक्ष्य में पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्री राम अवतरित हुए थे।चैत्र मास की यह नवमी तिथि जगन्माता आदिशक्ति के नवम् रूप ' सिद्धिदात्री'
( नवम सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता: ।-- श्री दुर्गासप्तशती)
की सम्पूर्ण शक्तियों को प्रकट करती है।
पवित्र चैत्र का महीना था , नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और अभिजित मुहूर्त था।दोपहर का समय था।शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा बह रही थी, देवगण हर्षित हो रहे थे।फूल खिल रहे थे।पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सभी नदियाँ अमृत की धारा बहा रहीं थीं ।निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया ।नाग, मुनि और देवगण सभी स्तुति करने लगे---- समस्त लोकों को शक्ति देने वाले, जगदाधार प्रभु ने कौशल्या के गर्भ से मनुष्य रूप में अवतार लिया।
ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया ।राजा दशरथ पुत्र जन्म का शुभ समाचार सुनकर ब्रह्मानंद में समा गए ।भगवान के अवतरित होने की खुशी में घर- घर मंगलगान होने लगे।कैकेयी-सुमित्रा ने भी सुन्दर पुत्रों को जन्म दिया।अवधपुरी को फूलों से सजाया गया।सभी राजकुमारों के जन्मोत्सव की खुशी में राजा ने नगर में मिठाइयाँ, गहने व कपड़े बँटवाए।पूरे महीने तक अवधपुरी में
उत्सव का माहौल रहा।
आज अवध आनन्द हुआ रे, लिया जन्म राम ने।
रघुकुल में आनन्द हुआ रे, लिया जन्म राम ने ।
रामनवमी के पावन पर्व पर मन्दिरों में व अनेक धार्मिक संस्थाओं में धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।जन- जन के आराध्य
भगवान श्री राम के जन्मोत्सव पर श्रद्धालुओं के मन में बहुत उमंग होती है।इन दिनों में ही नवरात्र उत्सव की भी धूम रहती है।
नवें दिन दुर्गा पूजा के साथ- साथ भगवान राम की भी पूजा- आराधना की जाती है।सभी आपस में एक-दूसरे को श्री रामनवमी की शुभकामनाएँ व बधाइयाँ देते हैं ।
{{{{ परब्रह्म श्री राम }}}}
श्री रामायण में भगवान श्री राम के दो रूप हैं ।भगवान श्री राम का परब्रह्म रूप तो मन- वाणी से अगोचर है, उसके विषय में तो वेदों ने भी 'नेति- नेति' कहा है।उसका अनुभव तो योगीजन समाधि में करते हैं ।श्री राम का परब्रह्म रूप विचार का विषय नहीं ; अनुभव का विषय है।
राम नाम अमृत की धारा , है ये मीठी वाणी ।
ऋषि मुनि सब जपते इसको, जपते हैं सब ज्ञानी ।
{{{{ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम }}}}
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम मनुष्य चरित्र का सर्वोत्तम आदर्श हैं ।भगवान श्री राम के जीवन में कितनी भी विषम परिस्थिति आईं लेकिन मर्यादाओं का पालन करने में वे कभी चूके नहीं । भगवान श्री राम ने सदैव गुरुजनों व माता-पिता की आज्ञा का दृढता के साथ पालन किया।श्री राम सबका सदैव आदर करते थे इसलिए वे महान कहलाए।
पिता की आज्ञा से ही वह महर्षि विश्वामित्र के साथ वन गए।वन में महर्षि के आश्रम में श्री राम- लक्ष्मण ने उनके यज्ञों की रक्षा की और यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों का संहार किया ।भगवान श्री राम ने अपने जीवन में तप को बहुत महत्व दिया।वन में रहते हुए उन्होंने तपस्वी जीवन को अंगीकार किया और राजा बनकर भी प्रजा के हितों के लिए एक तपस्वी की तरह कष्ट सहते रहे।
मर्यादाओं का पालन करने की बात जहाँ भी आती है, वहीं अयोध्या के राजा श्री राम स्वतः स्मरण हो आते हैं वाल्मीकि रामायण के अनुसार--- " भगवान श्री राम चन्द्रमा के समान अति सुन्दर, समुद्र के समान गम्भीर और पृथ्वी के समान अत्यन्त धैर्यवान थे।भगवान श्री राम इतने शील संपन्न थे कि किसी भी परिस्थिति में किसी को कटु वचन नहीं बोला।उन्होंने अपने माता-पिता, गुरुजनों, भाइयों, सेवकों, प्रजाजनों अर्थात हर किसी के प्रति अपने स्नेहपूर्ण दायित्वों का निर्वाह किया।
यदि भगवान श्री राम के संपूर्ण जीवन पर एक दृष्टि डाली जाए तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती श्री राम रीति, नीति, प्रीति सभी के संपूर्ण ज्ञाता व मर्मज्ञ रहे हैं ।इसी कारण श्री राम परिपूर्ण हैं और आदर्श हैं ।उन्होंने मर्यादा का घोर उल्लंघन करने वाले रावण से भी युद्ध किया और उसे पराजित करके मर्यादाओं की पुनः स्थापना की।
वनवास जाने की ख़बर सुनकर वे दुःखी नहीं हुए , बल्कि प्रसन्न हुए कि वन में उन्हें ऋषियों का सान्निध्य मिलेगा ।वन में उनके साथ उनकी भार्या सीता व अनुज लक्ष्मण भी गए।वन में 14 वर्ष तक राजकीय वैभव से दूर सामान्य वनवासी की तरह जीवन जिया और वन में निवास करने वाले राक्षसों व असुरों का संहार करके वह क्षेत्र ऋषियों के लिए सुरक्षित किया।
भगवान श्री राम अत्यन्त धैर्यवान, पराक्रमी, ज्ञानी, मधुर- भाषी , सत्यभाषी , नीतिकुशल साहसी आदि समस्त गुणों की खान हैं, उनके गुणों की महिमा अनन्त है।जब उनके समक्ष छलपूर्वक किया गया सीता- हरण का महासंकट उपस्थिति हुआ तब भी श्री राम ने धैर्यपूर्वक आगे की रणनीति का निर्धारण करके, लंका पर विजय प्राप्त की।
{{{{ राम राज्य }}}}
रामराज्य का अर्थ ही है--- ऐसा राज्य जिसमें दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते ।सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति ( मर्यादा ) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं
भगवान श्री राम ने एक पिता की भाँति अपनी प्रजा का पालन किया , उनके राज्य में प्रजा को किसी प्रकार का कोई दुःख नहीं था इसलिए उनके राज्य को " रामराज्य " कहा जाता है।आज भी मनुष्य जाति भगवान श्री राम को " राजा राम " के रूप में याद करती है ; क्योंकि भगवान श्री राम ने केवल अयोध्या में ही नहीं बल्कि सभी के हृदयों पर राज्य किया था।
राजा बनने के उपरांत भी उन्होंने राजपद का निर्वहन इतनी श्रेष्ठता से किया अतः आज भी श्रेष्ठ राज नेतृत्व की तुलना रामराज्य से की जाती है ।इस तरह भगवान श्री राम में आदर्श लोकनायक के सभी गुण मौजूद थे और इसीलिए वे सदियों से जन- जन के आराध्य बने हुए हैं ।
श्री राम नवमी का पर्व हम सभी भगवान श्री राम के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं वह हमें संदेश देता है कि हम सभी श्री राम की तरह आदर्श जीवन शैली का निर्वाह करें, मर्यादित आचरण करें और " श्री राम " नाम की भक्ति से अपने जीवन को सफल बनाएँ ।
" श्री राम श्री राम गाते चलें, जीवन सफल बनाते चलें "
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