" आया वसंत आया वसंत
मन में खुशियाँ लाया वसंत
फूलों में रंग लाया वसंत
आया वसंत आया वसंत"
सादर अभिवादन व जय श्री कृष्ण
वसंत में उमंग है, रंग है, स्वर है, सुगन्ध है इसलिए वसन्त को ऋतुराज कहा गया है।उमंग समूची प्रकृति में है, रंग फूलों में है, स्वर कोयल की कूजन में एवं सुगन्ध आम्र की मंजरी व पेड़- पौधों की डालियों पर खिलखिलाते फूलों में ।इन सबको साथ लेकर वसंत धरा पर अद्भुत छटा बिखेरता है।सर्दी और गर्मी की ऋतुएँ जब मिलती हैं, तब वसंत ऋतु का आगमन होता है।
भारत भूमि के वसंत को पश्चिमी देशों ने स्प्रिंग नाम दिया है।स्प्रिंग जर्मन भाषा में मिलने वाला पुराना शब्द है। दरअसल उस समय इस शब्द का प्रयोग पत्तों के गिरने ' स्प्रिंग ऑफ दि लीफ'
के अर्थ में किया जाता था।इसके बाद भाषा के बहाव के साथ मौसम का नाम ही अंग्रेजी में स्प्रिंग पड़ गया।स्प्रिंग जिसके लिए कवि शेली ने कहा ---इफ विंटर हैज कम कैन स्प्रिंग बी फार बिहाइंड.... पतझड़ आया है तो क्या, प्रतीक्षा करो, वसंत भी आता ही होगा।
इस ऋतु में प्रकृति का उल्लास, प्राणिमात्र में विशेष रूप से उभरने वाली उमंगों में दृष्टिगोचर होता है ।यह उत्सव हमें याद दिलाता है- प्रकृति की आराधना की क्योंकि इस सृष्टि में शक्ति का मूल स्रोत प्रकृति ही है।प्रकृति को पोषित, पल्लवित किया जाए तो जीवन में वसंत ही वसंत है।प्रकृति की पूजा से ही जीवन में सुख, समृद्धि एवं शान्ति का समावेश हो सकता है ।
वसंत जब भी आता है, चंचल मुस्कान के साथ महकता हुआ आता है और ढेर सारी खुशियों की बहार लेकर आता है।वसंत विरह का अंत है।वसंत खुशी का राग, उमंग, उत्साह और उमंग लेकर आता है।वसंत जीवन के आँगन में छलकता उल्लास है, चंचल नृत्य है।वसंत तो सुगंधित व सुरभित भावनाओं का संसार है।वसंत तो मन का मौसम है, भावनाओं का उद्गार है।
इस वसंत पर बाह्य प्रकृति के साथ हमें अपनी अंतःप्रकृति को संतुलित व पूर्ण करना है।हमें अपनी रूठी हुई प्रकृति को मनाना है।सृष्टि पर अनुराग और प्रेम के पुष्प खिलाने हैं ।प्रकृति का श्रृंगार करने वाला वसंत आज प्रदूषण से जूझ रहा है।प्रकृति के स्वाभाविक सौन्दर्य को वापस लाने के लिए हमारे ऋतुराज वसंत को नए रंग तलाशने होंगे ।
●●● वसंतपंचमी ●●●
वीणा की झंकारों से माँ महक सुरों में अब भर दे ।
हमारा देश त्योहारों व उत्सवों का देश है।सभी पर्व व उत्सव हमारे देश की महान संस्कृति का परिचय देते हैं । माघ मास की शुक्ल पंचमी को मनाया जाने वाला ' वसंतपंचमी ' एक हर्षोल्लास का उत्सव है।यह पर्व ज्ञान का उत्सव है ।इस दिन ज्ञान की देवी 'माता सरस्वती ' का पूजन किया जाता है ।ज्ञान के बिना जीवन में अपूर्णता है।यह उत्सव हम सभी को याद दिलाता है कि ज्ञान ही सर्वोच्च है।
"कमलासन पर शोभित हो माँ, आलोकित जग को कर दे"
शारदे- शारदे , विद्या बुद्धि का वर दे
वसंतपंचमी के दिन विद्यालयों में,घरों में व अन्य धार्मिक संस्थाओं में श्रद्धा भाव के साथ माता सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है ।सभी लोग पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं ।विद्यालयों में पुस्तक पूजन भी किया जाता है।विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न- विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी जाती है।विद्यालयों में छोटे- बड़े सभी विद्यार्थी सरस्वती वंदना का सुमधुर 'समूह गान' भी करते हैं ।
" कमल आसन, हंस वाहन चार भुज धारिणि ओ माँ
कर में वीणा शब्द रस संगीत की स्वामिनि ओ माँ "
जब कभी भी हम किसी विद्वान व कलाकार की प्रशंसा करते हैं ।तो यही कहते हैं कि इस पर माता सरस्वती की महान कृपा है।इस 'वसंतपंचमी' पर माँ सरस्वती के चरणों में नमन करते हुए यही प्रार्थना करें- कि इस विश्व वसुधा का हर मनुष्य ज्ञान-वान बनकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाए।
●●● कवियों का मनमीत वसंत ●●●
आदिकाल से, प्राचीन युग से कविगण वसंत के गीत गाते रहे हैं ।वसंत को यूँ ही ऋतुराज नहीं कहते, इसकी अनुभूति से , इसके एहसास से अनेक कवियों के अंतर्मन में कविता की नवकोपलें फूटी हैं ।कवि कालिदास को वसंत इतना प्रिय है कि वे कहते हैं-- सर्वाप्रिये चारुतरं वसन्ते अर्थात सर्वप्रिय ऋतु वसंत ही है। यह भी कहते हैं-- "जीवितं सत्यं वसन्त मासस्य" संसार का सबसे बड़ा जीवित सत्य और कुछ नहीं बस, वसंत है।
वसंत के सौन्दर्य से अभिभूत कवि गुरू रविन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं--- जिस दिन प्रकृति ने धरती रची , उसी दिन प्रेम रचा और वसंत ऋतु भी रची होगी फिर ऋतुओं ने वसंत को अपना गीत कह लिया; क्योंकि उससे सुन्दर छंद उनके पास था ही नहीं ।
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का तो जन्म ही वसंत पंचमी के दिन हुआ था, पर जीवन में हमेशा पतझड़ रहा, तभी वह अपनी लेखनी से लिख सके---
"अभी न होगा मेरा अंत, अभी तो आया है मेरे मन मृदुल वसंत "
जयशंकर प्रसाद जी को तो जैसे वसंत की अनवरत प्रतीक्षा थी।तभी तो उन्होंने कहा---
"पतझड़ था झाड़ खड़े थे, सूखे से फुलवारी में
किसलय दल कुसुम बिछाकर, आए तुम इस क्यारी में"
कवियों के छन्द में साकार होता हुआ वसंत कभी कहीं किसी की उदास याद में भी आहट दे देता है।कवि रघुवीर सहाय कहते हैं कि---यह उदास मौसम और मन में कूछ टूटता सा
अनुभव से जानता हूँ, वसंत है
वसंत की मनोहारी छाया, प्रकृति के कण-कण से निठुर दिनों की याद धीरे- धीरे धूमिल कर देती है।फिर कोई नन्ही चिड़िया दरबारी पर बैठी धूप का टुकड़ा चुगते सबको जगाती है।इसे कवि जयदेव अपने शब्दों में व्यक्त करते हैं---
छाया सरस वसंत विपिन में, करते श्याम विहार
गोपीजनों के संग रास रचा, करते श्याम विहार
कवियों की कविता की कोपलों के साथ इस वर्ष फिर से वसंत आ ही गया।वसंत के आगमन से जीवन में जाग रही हैं आनंद की रचनाएँ ।जागती रही हैं और जाग रही हैं कवियों की कविताएँ ।धरती पर जाग रही हैं रंगों और सुगंधो की ऋतु। सर्दी की ठिठुरन से वीरान हुए वृक्ष वसंत को आशा से निहार रहे हैं ।
वसंत के आगमन पर प्रकृति ने पीली चूनर ओढ़कर स्वयं को सँवारा है।कोयल अपनी कूक से, मयूर अपने नर्तन से और भ्रमर गुंजार करके वसंत का स्वागत कर रहे हैं ।ये सभी मिलकर धरती के समस्त कवियों की कविताओं में स्वयं को घोलकर कह रहे हैं-- आ गया ऋतुराज वसंत ।ऋतुराज वसंत --- कवियों का मनमीत ।विश्व की सभी सभ्यताओं में गूँजता प्रेम और आनंदकाल।ऋतुराज वसंत में लोक और परलोक का अटूट जुड़ाव है
जीवन के आनंद में सदा सुख, समृद्धि और मंगल का प्रतीक बनकर ऋतुराज वसंत युगों से सृष्टि पर उतरता रहा है।सत्य यही है कि वसंत के बारे में कवियों ने जितना गाया , अपनी लेखनी से जितना लिखा वह सब कम है, अति अल्प है।वसंत तो शब्दातीत है।काव्यों व महाकाव्यों के अनंत भंडार भी कहाँ बाँध सके हैं इसे।
जीवन को आलिंगन में भरकर ढेर सारे प्यार, आनंद की वर्षा करता हुआ हम सभी के मन को उमंग व उत्साह देने ऋतुराज वसंत आ गया है
" आया वसंत आया वसंत "
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