अत्यन्त प्राचीनकाल से ही भारत के जनमानस के साथ जुड़ी चली आ रही कालगणना , भारतीय संवत्सर ( विक्रमी संवत्सर) -- शास्त्रसम्मत, वैज्ञानिक और अति व्यावहारिक सिद्ध हुई है।भारतीय ज्योतिष गणना के अनुसार-- नववर्ष की शुरुआत नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है।इसी दिन भारत के समस्त गणित और खगोलशास्त्रों के अनुसार ग्रहों, तारों, मासों और संवत्सरों की वैज्ञानिक रचना की गई।
सभी ऋतुओं के एक पूरे चक्र को 'संवत्सर' कहा जाता है।
अमरकोष के अनुसार--- सर्वर्तुपरिर्त्तस्तु स्मृतः संवत्सरौ बुधैः।अर्थात किसी ऋतु से आरंभ करके ठीक उसी ऋतु के पुनः आने तक जितना समय लगता है, उस कालमान को संवत्सर कहते हैं ।ऋतु शब्द का तात्पर्य है कि जो सदैव चलती रहे ।अतः ऋतु ही काल की गति है।
भारत में वैदिक काल के ऋषियों ने 12 महीनों के नाम भी ऋतुओं के आधार पर रखे थे।बाद में इन महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रख दिए थे।ये नाम-- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष, पौष, माघ एवं फाल्गुन हैं ।इसी प्रकार सप्ताह में वारों के नाम ग्रहों के नाम पर रखे गए --- रवि, सोम( चंद्रमा), मंगल, बुध, गुरु( वृहस्पति), शुक्र और शनि।प्राचीन ग्रन्थों में मानव वर्ष और दिव्य वर्ष में अंतर किया गया है।
मानव वर्ष मनुष्यों का वर्ष है, जो सामान्यतः 360 दिनों का होता है।आवश्यकतानुसार उसमें घटत- बढ़त होती रहती है।मनुष्यों के 360 वर्ष मिलकर देवताओं का एक दिव्य वर्ष बनाते हैं ।मानव की सामान्य आयु 100 वर्ष मानी गई है ।इससे अलग देवताओं की आयु 1000 दिव्य वर्षों तक मानी गई है।
धर्मग्रंथों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नवसंवत्सरोत्सव मनाने की बात लिखी है।इस दिन मुख्यतः ब्रह्मा जी का काल- पुरुष के समस्त अवयवों सहित पूजन करने विधान है।अथर्ववेद ( 3- 9- 10) से यह पता चलता है कि नवसंवत्सर उत्सव को अतिप्राचीन काल से ही महापर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। संवत्सर का नाम इतना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक धार्मिक कृत्य में पढ़े जाने वाले संकल्प में संवत्सर का नाम अवश्य लिया जाता है।
जिनका हृदय तपस्या की रश्मियों से ओत-प्रोत है, अंतःकरण में ईश्वरीय मिलन की अभीप्सा है, उनके लिए 'चैत्र संवत्सर' एक नवीन जीवन का प्रारंभ हो सकता है। विक्रमी संवत्सर का आरंभ किसी सम्प्रदाय विशेष अथवा किसी देवी- देवता के नाम पर न होकर समस्त राष्ट्र की विजयी परंपरा की स्मृति में हुआ है।इस विक्रमी संवत् का वैचारिक आधार हमारे राष्ट्रीय गौरव को पुष्ट करता है ।
सृष्टि संवत्सर की पूरी गणना प्राचीन ग्रन्थों में दी हुई है।उसके अनुसार सन् 2016 में सृष्टि और उसके साथ सूर्य को बने 1960853116 मानव वर्ष व्यतीत हो चुके हैं ।सृष्टि की कुल आयु
4320000000 वर्ष मानी गई है।इसमें से वर्तमान आयु निकालकर सृष्टि की शेष आयु 2359146824 वर्ष है।
सृष्टि के सम्पूर्ण जीवन को भी अनेक कालखंडों में बाँटा हुआ है।इसके अनुसार कुल 15 मन्वंतर होते हैं जिनमें से प्रत्येक मन्वंतर का अधिपति एक मनु होता है।14 मन्वंतरों में से प्रत्येक में 71 चतुर्युगी ( सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग)होती हैं ।पन्द्रहवें मन्वंतर में केवल छह चतुर्युगी होंगी।चतुर्युगी को महायुग कहा गया है।
गणना के अनुसार सृष्टि संवत्सर के अब तक छह मन्वंतर निकल चुके हैं ।वैवस्वत मनु से प्रारंभ होने के कारण इसे वैवस्वत मन्वंतर कहते हैं ।इस सातवें वैवस्वत मन्वंतर के भी 27 चतुर्युग व्यतीत हो चुके हैं तथा 28 वें चतुर्युग के भी तीन युग निकल चुके हैं और चौथा युग कलियुग चल रहा है।
एक चतुर्युगी में कुल 4320000 वर्ष होते हैं ।चतुर्युगी में सबसे कम अवधि कलियुग की है।इससे दो गुना अवधि द्वापर युग की , तीन गुनी अवधि त्रेता की तथा चार गुना अवधि सतयुग की होती है। कलियुग की अवधि है-- 432000 वर्ष, इस आधार पर--
कलियुग = 432000×1= 432000 वर्ष
द्वापरयुग = 432000×2= 864000 वर्ष
त्रेतायुग = 432000×3= 1296000 वर्ष
सतयुग = 432000×4= 1728000 वर्ष
एक चतुर्युग के कुल वर्ष = 4320000 वर्ष
प्रत्येक मन्वंतर के 71 चतुर्युगी के कुल वर्ष =
4320000× 71= 306720000 वर्ष
पन्द्रहवें मन्वंतर में केवल छह चतुर्युगी माने गए हैं ।इस तरह-
पन्द्रहवें मन्वंतर के छह चतुर्युगी के कुल वर्ष निम्नलिखित हैं
4320000 × 6 = 25920000 वर्ष ।
सृष्टि के पन्द्रह मन्वंतरों का कुल योग------
306720000 × 14 + 25920000 × 1 = 4320000000 वर्ष
इस महायुग में-
सतयुग का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल नवमी बुधवार को,
त्रेतायुग का आरंभ वैशाख शुक्ल तृतीया सोमवार को,
द्वापरयुग का आरंभ माघ कृष्ण प्रतिपदा को एवं
कलियुग का आरंभ भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी को माना गया है ।
{{{ आर्यभट्ट के अनुसार सृष्टि की कालगणना }}}
पौराणिक मान्यता से मुक्त रहते हुए सुप्रसिद्ध विद्वान आर्यभट्ट ने मन्वंतर तो चौदह (14 ) ही माने हैं, परन्तु उनके अनुसार प्रत्येक मन्वंतर में 71 के स्थान पर 72 महायुग होते हैं तथा इनमें सभी महायुग समान कालावधि के होते हैं ।
कालगणना के इस क्रम में सबसे पुराना संवत् सृष्टि संवत् है ; सन् 2016 में इसके 1960853116 मानव वर्ष व्यतीत हो गए ।
{{{{{विक्रमी संवत्सर चैत्र प्रतिपदा से जुड़े अन्य पक्ष }}}}}
अत्यन्त प्राचीनकाल से लेकर आज तक भारत भूमि पर राष्ट्रोत्थान के जितने भी महान कार्य हुए, उनका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हुआ।मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का राज्य अभिषेक भी नववर्ष की इसी प्रतिपदा के दिन हुआ था।धर्म व सत्य का वर्चस्व स्थापित करने वाले युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी
इसी दिन हुआ।इसके साथ ही शकारि की पदवी धारण करने वाले सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक व विजय उत्सव इसी शुभ दिन हुआ।
आज भी हमारे देश में सामाजिक व धार्मिक कार्यों की शुरुआत विक्रमी संवत् की शुभ - तिथियों से ही की जाती है।आज भी देखा जाए तो अपने देश की समस्त शैक्षणिक गतिविधियों, बैंकिंग, कृषि इत्यादि क्रियाकलापों की शुरुआत और समाप्ति मार्च- अप्रैल अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के समय ही होती है।इस समय को शुद्ध और पवित्र माना जाता है।
नवसंवत्सर की नित्य प्रतिपदा का अवसर मानव जीवन की नित्य प्रति की गतिविधियों से प्राकृतिक रूप से जुड़ता है।यह कालगणना पूर्णतया प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक है।
विदेशी सन् में सबसे प्रचलित ईसवी सन् है।जिसका प्रचलन रोमन सम्राट जूलियस सीजर के द्वारा ईसा के जन्म के तीस वर्ष बाद किया गया।भारत में इस ईसवी संवत् का प्रचलन ब्रिटिश शासकों ने सन् 1752 ई० में किया था।पहले ईसवी सन् भी 25 मार्च से प्रारंभ होता था, लेकिन बाद में अठारहवीं सदी में इसकी शुरुआत एक (1) जनवरी से होने लगी।
इक्कीसवीं सदी को उज्ज्वल भविष्य में परिवर्तित करने के लिए अब जरूरी हो गया है कि हम सभी अपना राष्ट्रीय स्वाभिमान जाग्रत करते हुए अपनी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करें ।पाश्चात्य संस्कृति का मोह त्याग कर अपने प्राचीन परम वैभव के साथ जुड़ने का साहस जुटाएँ।
हम सभी भारतीय अपनी श्रेष्ठ परंपराओं का अनुसरण करते हुए, विजयीभारत की विजयगाथा का स्मरण करते हुए समस्त विश्व में भारतीय गरिमा को प्रतिष्ठित करें ।साथ ही अपने नववर्ष पर आपस में एक दूसरे को नवसंवत्सर की शुभकामनाएँ प्रदान करें ।
विक्रमी संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा महोत्सव की परम्परा को गौरवान्वित करें ।यह पूरी तरह से वैज्ञानिक है।
आपको सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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