हाइजीन की सही परिभाषा है-- अच्छा स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य का संरक्षण ।इसे स्वच्छता एवं साफ-सफाई तथा बचाव के रूप में लिया जाता है ।यह एक सीमा तक तो ठीक है, लेकिन जब इस पर जरूरत से कुछ ज्यादा ध्यान दिया जाता है तो इससे रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है।
इस संदर्भ में मैक्स हैल्थ केयर के एलर्जिस्ट का कहना है कि जीवन में केवल स्वच्छता की ही नहीं, थोड़ी बहुत धूल-मिट्टी की भी आवश्यकता पड़ती है ।जैसे दिन के साथ-साथ रात की भी आवश्यकता पड़ती है; दिन रात के समन्वय-संयोग से ही एक पूर्ण चक्र बनता है, ठीक उसी प्रकार हाइजीन की परिकल्पना में स्वच्छता एवं धूल आदि का होना आवश्यक है ।
●●वर्तमान में हाइजीन का किन अर्थों में प्रयोग●●
वर्तमान में हाइजीन जिन अर्थों में प्रयोग किया जाता है, उनमें अनेक विसंगतियाँ हैं ।हाइजीन के नाम पर आज हाथ धोने के लिए सदैव अपने साथ पेपर सोप लेकर चलते हैं, पीने के लिए केवल बोतलबंद पानी पर ही भरोसा करते हैं ।किसी ऐसी वस्तु को छूना एवं उसके संपर्क में आना पसंद नहीं करते , जिसे शत-प्रतिशत बैक्टीरिया को खत्म कर देने की ताकत रखने वाले किसी स्प्रे से जीवाणु मुक्त नहीं कर दिया हो।
वर्तमान में हाइजीन पसन्द लोग उठने-बैठने, खाने-पीने तथा पहनने के लिए एकदम साफ-सुथरी चीजों का प्रयोग करते हैं ।स्वच्छ रहना अच्छा है और स्वच्छ रहना ही चाहिए परंतु केवल हमेशा ही धूल-मिट्टी से सदा परहेज करना रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।हाइजीन का तात्पर्य व्यापक है ; क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य है-- स्वास्थ्य का संरक्षण ।इसके लिए केवल साफ-सफाई पर ही ध्यान देना एकांगी तथ्य है।दैनिक जीवन में धूल-धक्कड़ और मिट्टी आदि के संपर्क की भी जरूरत पड़ती है ।
●●● रोगप्रतिरोधक क्षमता के लिए मिट्टी क्यों हैजरूरी●●●
वैज्ञानिक मानते हैं कि जब कभी हम मिट्टी आदि के संपर्क में आते हैं तो हमारे इम्यून सिस्टम ( रोगप्रतिरोधक क्षमता ) को कीटाणुओं के संपर्क में आने का अवसर मिलता है।इससे रोगप्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि होती है।हाइजीन की वर्तमान परिकल्पना के अनुसार कीटाणुओं से दूर रहकर संक्रमण से तो बचा जा सकता है, परंतु धूलकण एवं माइक्रोब्स ही हैं, जो इम्यून सिस्टम को जीवाणुओं से लड़ने की नई स्फूर्ति एवं ताकत प्रदान करते हैं ।इससे भविष्य में खतरनाक बैक्टीरिया आदि के प्रकोप से बचा जा सकता है ।अतः इनके संपर्क में आते रहने से स्वस्थ रहने में मदद मिलती है।
●● डेविड पीo एट्रैचन के रिसर्च पेपर के अनुसार●●
हाइजीन परिकल्पना को सर्वप्रथम डेविड पीo एट्रैचन ने दिया ।उन्होंने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (1981) में एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया था ।इसका आधार था 'हे फीवर' और 'एक्जिमा' ।ये दोनों ही एलर्जी रोग हैं ।इनका मानना था कि ये दोनों रोग उन बच्चों में कम होते हैं, जो प्राकृतिक परिवेश में पलते-बढ़ते हैं, परंतु स्वच्छ एवं साफ-सुथरे माहौल में पलने वाले बच्चों में यह अपेक्षाकृत अधिकता में देखा गया है ।
प्राकृतिक परिवेश में धूल-मिट्टी आदि बिखरी होती है ।बच्चे उसके संपर्क में आते हैं और खेलते-कूदते रहते हैं ।इससे उनका शरीर स्वस्थ रहता है।इन बच्चों को एलर्जी कम होती है तथा संक्रामक रोग कम सताता है परंतु जो बच्चे अत्यधिक स्वच्छ माहौल में रहते हैं, कंम्प्यूटर, इंटरनेट आदि में व्यस्त रहते है, धूल-मिट्टी से सदा दूर रहते हैं, वे रोगों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं ।
●●यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के अध्ययन के अनुसार●●
हाइजीन की परिकल्पना जीवाणु, विषाणु तथा प्रतिरक्षा-प्रणाली के बीच एक सुमधुर सामंजस्य है।इस संदर्भ में 'जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्युनोलाॅजी' में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के अध्ययन के अनुसार वे बच्चे, जिनको केवल घरों के अन्दर रखा जाता है, बोतल का पानी पिलाया जाता तथा खेलने के नाम पर अत्यन्त स्वच्छ वातावरण में रखा जाता है, उनकी रोगप्रतिरोधक शक्ति कम विकसित होती है ।युवा एवं प्रौढ़ावस्था में वे एलर्जी एवं संक्रामक रोगों के प्रति अति संवेदनशील हो जाते हैं ।
उपर्युक्त तथ्य से स्पष्ट है कि हाइजीन की परिभाषा एवं परिकल्पना पर नए ढंग से सोचना , विचार करना आवश्यक ।स्वास्थ्य क्या है, हाइजीन किसे कहते हैं, आदि अनेक प्रश्न इन्हीं के कारण पैदा होते हैं ।
●●● इम्युनोलाॅजिस्टों के अनुसार हाइजीन ●●●
हाइजीन की परिकल्पना के संदर्भ में इम्यूनोलाॅजिस्ट कहते हैं कि शरीर में एंटीबाॅडीज का बनना तभी संभव है जब कोई बाहरी जीवाणु या बैक्टीरिया शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाता है।।वस्तुतः थाइमस ग्रंथि से पैदा हुए किलर और हेल्पर टी सेल होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के संक्रमण और एलर्जी का प्रतिरोध और प्रतिक्रिया करने के लिए पर्याप्त संख्या में रक्षात्मक एंटीबॉडी का निर्माण करते हैं ।
जैसे ही कोई बाहरी तत्व शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भेदकर प्रवेश करता है तो प्राथमिक टी सेल एक सप्ताह के अन्दर अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाते हैं और 7 से 30 दिन के अन्दर अपनी प्रक्रिया समाप्त करके दूसरे सेल के लिए स्थान छोड़कर नष्ट हो जाते हैं ।
सामान्य रूप से व्यक्ति जब एकदम साफसुथरे माहौल में रहता है तो किलर सेल्स के पास लड़ाई के लिए, संघर्ष के लिए कोई विशेष स्थिति का सामान नहीं होता है क्योंकि किलर सेल्स को मारने के लिए दुश्मनों (जीवाणुओं) का होना आवश्यक है ।
●कीटाणुओं के संपर्क से बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत●
एलर्जी विशेषज्ञ मानते हैं कि आए दिन कीटाणुओं के संपर्क में आने पर बच्चों में दीर्घकालिक दृष्टि से गंभीर बीमारियों और एलर्जी का खतरा न्यूनतम हो जाता ।हालाँकि इससे कभी-कभी नाक बहने जैसी तात्कालिक एलर्जी का सामना जरूर करना पड़ सकता है ।
विशेषज्ञों की राय है कि बचपन में खेत-खलिहानों में खेलते रहने से आगे चलकर गंभीर बीमारियों से निजात पाई जा सकती है ;क्योंकि वहाँ का वातावरण प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर देता है ।
●● प्रतिरक्षा प्रणाली के बारे में आधुनिक शोध के निष्कर्ष ●●
आधुनिकतम शोध निष्कर्ष से पता चला है कि धूल एवं गोबर में विद्यमान कीटाणुओं से लड़ चुके इम्यून सिस्टम में इतनी ताकत आ जाती है कि वह दमे आदि रोग को भी पास फटकने नहीं देती है।यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन, मेडिसिन के बाल रोग चिकित्सक जेम्स गर्न द्वारा 2004 में किए गए शोध से सदियों पुरानी यह मान्यता टूट गई है कि पालतू जानवरों से बच्चों को एलर्जी हो जाती है।
एक अन्य सर्वेक्षण हमारी वैदिक मान्यता को पुष्ट करता है ।इस व्यापक सर्वेक्षण से पता चलता है कि जिन घरों में गाय एवं बैल बँधे होते तथा जिनके घर-आँगन में गोबर आदि से लिपाई-पुताई की जाती है, वहाँ पर निवास करने वाले लोगों की रोगप्रतिरोधक शक्ति अत्यन्त मजबूत होती है।।ऐसे लोग रोगों के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं अर्थात रोगों की चपेट में न के बराबर ही आते हैं । वे अधिक स्वस्थ रहते हैं ।
●●● प्राकृतिक जीवन ही सही मायने में हाइजीन है ●●●
हाइजीन से तात्पर्य है- प्रकृति का सान्निध्य ।प्राकृतिक जीवन ही सही मायने में हाइजीन है ; जबकि इसके विपरीत विकृति है जो अनेक रोगों का कारण बनती है।साफ-सुथरा होना आवश्यक है, परंतु यह तभी हो सकता है, जब गंदगी को बाहर कर दिया जाए ।अच्छा स्वास्थ्य तभी पाया जा सकता है, जब रोगों से लड़ने की सामर्थ्य मिल जाए।
इम्यून सिस्टम कमजोर होने से छोटी से छोटी बात भी रोग का कारण बन जाती है ।पानी से भीगते ही सरदी जुकाम हो जाता है, धूल से एलर्जी हो जाती है तथा छींक आदि आने लगती हैं ।इन रोगों में नेजलोफ, सिंड्रोम, ग्रेनुलोमेटस रोग, टी लिंफोसाइड डेफिसिएसिंज, क्रोनिक डीसफैगोसाइटोसीस , न्यूट्रोफील सिड्रोम आदि हैं ।ये सभी रोग इम्यून सिस्टम की कमजोरी के कारण पनपते हैं, परंतु इस तन्त्र को मजबूत कर दिया जाए तो ये रोग स्वतः ही समाप्त हो जाएँगे।
अतः हमें प्राकृतिक जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए ।अपने आस-पास के वातावरण के साथ स्वयं के अनेक आयामों में आई गंदगी को दूर कर दिया जाए, यही हाइजीन का तात्पर्य है ।
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