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Tuesday, September 22, 2020

अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस की शुरुआत कैसे हुई?, माँ की महिमा,माँ के रिश्ते में छलछलाता ममता का सागर,

     ●● अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस की शुरुआत कैसे हुई ●●
माँ को सम्मान देने वाले इस दिन की शुरुआत अमेरिका से हुई।मई महीने के दूसरे रविवार को हर वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस मनाया जाता है ।अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस अपनी माँ से बहुत प्यार करती थीं ।उन्होंने शादी नहीं की।माँ की मृत्यु के पश्चात माँ का प्यार जताने के लिए उन्होंने इस दिन की शुरुआत की।  9 मई, 1914 को अमेरिकी प्रेसीडेंट वुड्रो विल्सन ने एक कानून पास किया, जिसमें लिखा था कि हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाएगा।जिसके बाद अमेरिका, भारत और कई देशों में 'मदर्स डे' मनाया जाने लगा। 

यह दिन माँ के प्यार और सम्मान के लिए समर्पित है ।वैसे तो माँ  का हर दिन सम्मान होता है।माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता , फिर भी मदर्स डे के अवसर पर माँ के लिए खास प्यार और सम्मान जताया जाता है । माँ को विशेष महसूस कराया जाता है। सभी अपनी-अपनी माँ को प्यार के साथ उपहार देते हैं , विशेष उत्सव मनाते हैं, तात्पर्य यह है कि जितने भी तरीकों से माँ के प्रति प्यार जता सकते हैं, वे सब तरीके अपनाए जाते हैं ।

                ●●● माँ की महिमा ●●●

एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।पल-पल उसके हृदय रूपी सागर में ममता की लहरें उमड़ती हैं ।उसका रोम-रोम अपनी संतान पर निछावर होने को विकल हो उठता है।माँ बनकर उसके जीवन में सम्पूर्णता आती है।संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है।उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं ।

कहते हैं कि एक शिशु के जन्म के साथ केवल एक बालक ही जन्म नहीं लेता है, बल्कि उसी क्षण स्त्री के अन्दर माँ का भी जन्म होता है ।माँ का महत्व माँ बनने के बाद ही सही-सही समझा जा सकता है ।नारी अकेले को ही यह विशेष अधिकार वरदान के रूप में प्राप्त है कि वह माँ बनने की इस दैवी प्रक्रिया की अनुभूति कर सके व उसके अनंत आनन्द को आत्मसात कर सके।माँ का प्यार असीमित है।

 'माँ' शब्द में एक अद्भुत मिठास है ।इस सृष्टि का हर प्राणी किसी न किसी रूप में इस शब्द को पुकारता है, दोहराता है, कभी प्यार पाने के लिए तो कभी कष्ट-पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए ।माँ चाहे कोई भी हो , किसी भी रूप में हो, बच्चे के लिए वह सदा सर्वोत्तम और सब कुछ होती है , और माँ भी पूरी तरह अपने बच्चे के विकास के लिए तत्पर रहती है।

माँ शब्द की महिमा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिंदू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारते हैं।किसी ने सही कहा है कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती है।माँ आखिर माँ है ।बच्चे जो बातें प्यार से नहीं समझते, उन्हें वह दंड देकर समझाती है।

माँ सदा से ही अनंत गुणों का स्रोत रही है ।पृथ्वी सी सहनशीलता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र सी गंभीरता, फूलों जैसी कोमलता, सहजता, सौन्दर्य और चंद्रमा जैसी शीतलता माँ में विद्यमान होती है।वह दया, करुणा, ममता, सहिष्णुता और प्रेम की साकार मूरत होती है।इसी कारण सभी प्राणी माँ के समीप सुकून व शांति पाते हैं ।

केवल जन्म देने वाली ही माँ नहीं कहलाती, पालन-पोषण करने वाली भी माँ कहलाती है।भगवान श्रीकृष्ण की दो माँ हैं-- एक देवकी माँ, जिन्होंने उन्हें जन्म दिया और दूसरी यसोदा माँ, जिन्होंने उनका पालन-पोषण किया । 

   ●●● माँ के रिश्ते में छलछलाता ममता का सागर●●●

माँ के रिश्ते में निहित है---अनंत गहराई लिए छलछलाता ममता का सागर। शीतल, मीठी और सुगन्धित हवा का कोमल एहसास। समूची धरती पर बस यही एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई छल- कपट नहीं होता ।कोई स्वार्थ, कोई अहंकार नहीं होता ।इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी मधुर अनुभूति छिपी है - मानो नरम-नाजुक हरी, ठंडी दूब की भीनी बगिया में सोए हों। " माँ " इस एक शब्द में नारी के सम्पूर्ण अस्तित्व की झलक मिल जाती है।
पूरा जीवन भी समर्पित कर दिया जाए तो माँ के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता अर्थात माँ के उपकारों को कभी भुलाया नहीं जा सकता ।संतान के लालन-पालन के लिए हर दुःख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली माँ के साथ बिताए दिन सभी के मन में जीवन भर सुखद व मधुर यादों के रूप में सुरक्षित रहते हैं ।

माँ की ममता किसी कवि के शब्दों में---

" बिलख रहे होते सारे प्राणी, 
                                     कहीं न कोई भी चैन पाता।
न प्यार होता न प्रीति होती ,
                                    अगर कहीं तुम न होती माता ।।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।




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