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Friday, September 25, 2020

दीपों का त्यौहार दीपावली, दीपावली महोत्सव के पाँच त्यौहार, भारी क्षमता वाले बम-पटाखे नुकसानदायक

        ●●● दीपों का त्यौहार दीपावली ●●●
   "आई है शुभ दीपावली, जगमग दिए जगमग दिए जगमग दिए"

भारत भूमि पर्वों-त्यौहारों की भूमि है।हम भारतवासी एक वर्ष में अनेक त्यौहार मनाते हैं ।इन सभी में  दीपावली हिन्दुओं का  सबसे बड़ा त्यौहार है । दीपावली पर्व  ऊर्जा, प्रकाश व उत्साह का त्यौहार है ।दीपावली में केवल एक दिया नहीं होता, बल्कि दीपकों की कतार होती है।ये दीपक एक तरह से अंतर्मन के प्रकाशित होने व हमें संघबद्ध होकर रहने की प्रेरणा देते हैं ।दीपावली मुख्य रूप से कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है ।

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम जब चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या आए थे तब उनके आने की  खुशी में अयोध्या वासियों ने खुशियाँ मनाईं ।अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया ।इसलिए दीपावली त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और असंख्य दीप जलाए जाते हैं ।इस दिन भारत भूमि दीपकों से सुशोभित होती है। दीपावली दियों का जगमगाता उत्सव है ।अनगिनत दीपकों के प्रकाश में दीपावली का पर्व मनाया जाता है, इसलिए इसे 'प्रकाशपर्व' की संज्ञा दी जाती है ।यह पर्व सामूहिकता का संदेश देता है।

              दीपावली का दिया जलता है और अपने प्रकाश से कार्तिक अमावस्या की सघन निशा को तार-तारकर रंगबिरंगी किरणों का पंख फैला देता है।चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश छा जाता है। भारतीय संस्कृति की रग-रग में बसी दीपावली में कुछ स्थानों पर पहले कोरे दीपों की पूजा की जाती है- अक्षत , पुष्प, रोली, चन्दन से। तब उनमें घृत या तेल डालकर बत्ती लगाकर जलाया जाता है और दोबारा प्रज्जवलित दीपों की अक्षतादि से पूजा की जाती है ।

दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य है कि जिस तरह कार्तिक अमावस्या की गहन-अँधेरी रात में दीए जलाकर हम चारों ओर छाए अंधकार को दूर करते हैं, उजाला फैलाते हैं,उसकी सुंदरता को निहार पाते हैं ; उसी तरह हम अपने अंतस् में फैले हुए अंधकार को भी ज्ञान रूपी प्रकाश के माध्यम से दूर करें, अपने अंतर्मन को भी प्रकाशित करें, तभी हमारे अंतर्मन में भी दीपावली मन सकेगी ।

दीपावली के कुछ दिन पहले ही घरों की साफ-सफाई करना शुरू कर देते हैं , विशेष सजावट भी करते हैं ।

   ●●● दीपावली महोत्सव के पाँच त्यौहार ●●●

दीपावली पर्व में एक साथ पाँच त्योहार मनाए जाते हैं । इन पाँच पर्वों के अपने विशेष अर्थ हैं और ये जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य, संपन्नता, शांति व आत्मीयता के विस्तार के प्रतीक हैं ।
● धनतेरस  ( कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी )
● रूप चतुर्दशी ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी)
●  दीपावली पूजन (कार्तिक कृष्ण अमावस्या )
● गोवर्धन पूजा  ( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा)
● भाई दूज   ( कार्तिक शुक्ल द्वितीया )

1 ● धनतेरस --  दीपावली पर्व का आरंभ कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात धनतेरस (धन त्रयोदशी) से होता है।यह दिन आयुर्वेद के देवता,धनवंतरि का जन्मदिवस भी है, इसलिए यह दिन धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।इस दिन एक ओर भगवान धन्वंतरि का पूजन करके स्वास्थ्य की कामना की जाती है तो वहीं दूसरी ओर लक्ष्मी- कुबेर का पूजन करके धन- समृद्धि की कामना की जाती है ।

         इस दिन लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार बरतन, सोने-चाँदी के आभूषण व सिक्के, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ खरीदते हैं ।ये सब धन का प्रतीक होते हैं और धनतेरस के अवसर पर इनका पूजन किया जाता है ।इस दिन लोग घर के द्वार पर दीपक भी जलाते हैं।

1  ● रूप चतुर्दशी----  कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या छोटी दीवाली मनाई जाती है ।इस चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं ; क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था ।इस दिन सौन्दर्यरूप भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है, ताकि हम भी निष्कलुष व रूपवान बन सकें ।इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने का विशेष महत्व होता है एवं रात्रि में यमदेव की प्रसन्नता हेतु घर की देहली पर दिए भी जलाए जाते हैं ।

3   ● दीपावली पूजन --- रूप चतुर्दशी के अगले दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है ।यह दिन पंचोत्सवों के बीच महोत्सव का होता है।बहुत दिनों पहले ही इस विशेष दिन के लिए अनेक प्रबन्ध किए जाते हैं ।घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं ।घर के द्वार पर रंगोली सजाई जाती है।इस दिन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में भी लक्ष्मी-गणेश का पूजन किया जाता है ।वही-खातों का भी पूजन होता है।दीपावली के दिन चारों ओर नवीनता और सुंदरता देखने को मिलती है।

दीपावली के दिन शाम को श्री लक्ष्मी, भगवान गणेश व सरस्वती माता का पूजन किया जाता है ।सभी लोग बड़ी श्रद्धा के साथ दीपावली पूजन करने के बाद  घर व द्वार पर अनेक दीप व मोमबत्तियाँ जलाते हैं । दीपक की कतारें घर के चहुँ ओर सजाई जाती हैं ।  आपस में रिश्तेदार व मित्रों के बीच मिठाइयों व उपहारों का आदान-प्रदान होता है । द्वार पर बच्चे व बड़े सभी पटाखे, फुलझड़ियाँ जलाकर खुशियाँ मनाते हैं ।इस दिन घर के हर कोने को प्रकाशित किया जाता है, ताकि लक्ष्मी माँ की कृपा बनी रहे, सुख-समृद्धि में वृद्धि हो।

दीपावली के पर्व में माँ लक्ष्मी के साथ भगवान गणपति व माँ सरस्वती का पूजन के पीछे यह मर्म है कि हम सद्बुद्धि व विवेक धारण करें तभी हम पर माँ लक्ष्मी की कृपा बरसेगी।सद्बुद्धि व विवेक के साथ हमें धन का सदुपयोग करना चाहिए ।लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती इनका सम्मिलित पूजन वैदिक परम्परा का भी प्रतीक है । अर्थ का उपार्जन धर्मपरायण होकर ही करना चाहिए, इसीलिए श्री की प्रतीक माँ लक्ष्मी , सद्बुद्धि की प्रतीक माँ सरस्वती एवं विवेक के प्रतीक भगवान गणेश का साथ-साथ पूजन किया जाता है ।इस दिन शुभ-लाभ की कामना की जाती है ।

4 ● गोवर्धन पूजा---- दीपावली के दूसरे दिन ( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) गोवर्धन पूजा की जाती है, इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है ।गोवर्धन का अर्थ है -- गौ वंश में वृद्धि ।इसदिन गायों की पूजा की जाती है एवं गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की प्रतिमूर्ति  बनाकर पूजन किया जाता है तथा गोवर्धननाथ जी को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट का भोग लगाया जाता है ।यह दिन विशेष रूप से गोवंश व अन्न की समृद्धि के लिए है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब इन्द्र ने भारी वर्षा से वृजवासियों को भयभीत करने का प्रयास किया, तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उँगली पर उठाकर सभी वृजवासियों को इन्द्र के कोप से बचा लिया, तब से इन्द्र देवता की जगह गोवर्धन पर्वत ( गोवर्धन गिरधारी) की पूजा का विधान शुरु हो गया, तभी से यह परंपरा आज भी जारी है।

5 ● -- गोवर्धन पूजा के अगले दिन ( कार्तिक शुक्ल द्वितीया ) को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है ।इस दिन बहनें अपने भाइयों के स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए पूजा-अर्चना करती हैं ।भाइयों का तिलक करती हैं । इस तरह पाँच दिन चलने वाला यह त्यौहार स्वास्थ्य, समृद्धि, प्रकाश के अवतरण, गोवंश, अन्न समृद्धि व रिश्तों की प्रगाढ़ता का संदेश देते हैं ।
 
●●● भारी क्षमता वाले बम-पटाखे नुकसानदायक ●●●

परिवर्तन ही जीवन का नियम है , इसलिए समय के साथ-साथ हमारे त्यौहार मनाने की शैली में भी परिवर्तन हो रहे हैं ।पहले दीपावली पर सिर्फ दिए ही जलाए जाते थे बाद में कुछ पटाखे, फुलझड़ी आदि चलन में आ गए व सर्वत्र बिजली के उपकरणों से सजावट होने लगी ।

लेकिन आज के समय में दीपावली पर सब जगह बहुत भारी क्षमता के बम-पटाखे फोड़े जाते हैं वे भी पूरी रात भर, जो कि हमारे पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए अत्यंत नुकसानदायक होते हैं ।
जिनसे ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है।पटाखों से बहुत शोर ही नहीं होता, बल्कि पटाखे जलने से हानिकारक गैसें भी वायुमंडल में घुल जाती हैं ।बच्चों व वृद्ध जनों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है ।

पटाखों से इतना जनजीवन प्रभावित होता है, तो ऐसी परंपराओं को बन्द कर देना चाहिए और यह याद रखना चाहिए कि दीपावली प्रकाश का त्यौहार है , विस्फोटों का नहीं ।दीपावली मनाते समय हमें पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा ।दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है जब मानव के अंतर्मन में संवेदनाओं, सद्भावनाओं के दीप जल उठें।

        सर्वत्र हो सद्भावना, पूरी हो सब शुभकमना
                    सब एक हों,सब नेक हों 
           जगमग दिए जगमग दिए जगमग दिए ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।


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