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Monday, December 7, 2020

गीता जयन्ती, श्री मद्भगवद्गीता एक विलक्षण ग्रन्थ, गीता की विचारधारा

                ●●●●  गीता जयन्ती ●●●●
मार्गशीष शुक्ल एकादशी के दिन देश में गीता जयन्ती पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है । स्वयं भगवान् की अभिव्यक्ति का एक मात्र ग्रंथ है -- श्री मद्भगवद्गीता ।इसी महाग्रंथ के अवतरण को ' गीता जयंती ' रूप से अभिहित किया जाता है ।

आकाश की नीलिमा में सूर्य की लालिमा घुलने लगी थी ।वायु अपनी मंदगति में शीतलता प्रवाहित कर रही थी । एक ओर महासेनापति, परम पराक्रमी अपराजेय गंगापुत्र भीष्म के नेतृत्व में कौरवों का सैन्य दल खड़ा था ।दूसरी ओर सेनापति धृष्टद्युम्न के साथ पांडव सेना थी ।पांडव सेना के साथ पार्थसारथी, पार्थ के रथ की डोर थामे अपने द्वारा ही रची इस महायुद्ध लीला पर मंद-मंद मुस्करा रहे थे ।  

मार्गशीष शुक्ल एकादशी थी इसी मोक्षदायनी एकादशी के दिन  मध्मयाह्न काल में अभिजीत मुहूर्त में महाभारत के युद्ध के मैदान में  भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने ईश्वरीय रूप में प्रतिष्ठित होकर अर्जुन को श्री मद्भगवद्गीता का दिव्य उपदेश दिया था ।

इस दिन हमारे देश के मनीषी व विद्वान श्रीमद्भगवद्गीता के प्रेरणादायक प्रसंगों पर प्रकाश डालते हैं जिनसे जिज्ञासु लोग ज्ञान लाभ अर्जित करते हैं । अनेक धार्मिक व साहित्यिक संस्थाओं में इस दिन महत्वपूर्ण आयोजन किए जाते हैं ।
       
        ●●●श्री मद्भगवद्गीता एक विलक्षण ग्रन्थ●●●

श्री मद्भगवद्गीता एक ऐसा विलक्षण ग्रन्थ है, जिसका आज तक न कोई पार पा सका, न पार पाता है, न पार पा सकेगा और न पार पा ही सकता है ।गहरे उतरकर बार-बार इसका अध्ययन-मनन करने पर नित्य नए-नए विलक्षण भाव प्रकट होते रहते हैं ।परम व चरम अनुभव का शास्त्र है गीता ।आवश्यकता है , इसे उस रूप में ग्रहण करने की, अपने जीवन में धारण करने की ।

श्री मद्भगवद्गीता साक्षात् भगवान् के श्री मुख से निःसृत परम रहस्यमयी दिव्य वाणी है ।इसमें स्वयं भगवान् ने अर्जुन को निमित्त बनाकर मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए उपदेश दिया है ।इस छोटे से ग्रन्थ में भगवान् ने अपने हृदय के बहुत ही विलक्षण भाव भर दिए हैं ।विश्व साहित्य में श्री मद्भगवद्गीता का अद्वितीय स्थान है ।

भगवान् अनन्त हैं, उनका सब कुछ अनन्त है, फिर उनके मुखारविन्द से निकली हुई गीता के भावों का अन्त आ ही कैसे सकता है ।भगवान् की वाणी बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों की वाणी से भी श्रेष्ठ है ; क्योंकि भगवान ऋषि-मुनियों के भी आदि हैं ।भगवान् स्वयं कहते हैं-- 'अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ' ( गीता 10 , 2 ) ।

गीता उपनिषदों का सार है, पर वास्तव में गीता की बात उपनिषदों से भी विशेष है । वेद भगवान् के निःश्वास हैं और गीता भगवान् की वाणी है ।निःश्वास तो स्वाभाविक होते हैं, पर गीता भगवान् ने योग में स्थित होकर कही है ।अतः वेदों की अपेक्षा भी गीता विशेष है ।

सभी दर्शन गीता के अंतर्गत हैं, पर गीता किसी दर्शन के अंतर्गत नहीं है ।दर्शन शास्त्र में जगत् क्या है ? जीव क्या है और ब्रह्म क्या है - यह अध्ययन किया जाता है लेकिन गीता अध्ययन नहीं अपितु अनुभव कराती है ।गीता में किसी मत का आग्रह नहीं है , प्रत्युत केवल जीव के कल्याण का ही आग्रह है ।

       श्री मद्भगवद्गीता में भगवान् साधक को समग्र की ओर ले जाते हैं ।सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, द्विभुज, चतुर्भुज,   समस्त्रभुज आदि सब रूप समग्र परमात्मा के ही अंतर्गत हैं ।किसी की भी उपासना करें, सम्पूर्ण उपासनाएँ समग्र रूप के अंतर्गत आ जाती हैं ।सम्पूर्ण दर्शन समग्र रूप के अंतर्गत आ जाते हैं ।अतः सब कुछ परमात्मा के ही अंतर्गत है , परमात्मा के सिवाय किंचित् मात्र भी कुछ नहीं है - इसी भाव में सम्पूर्ण गीता है ।गीता का तात्पर्य वासुदेवः सर्वम है ।

गीता समग्र को मानती है , इसीलिए गीता का आरम्भ और अन्त शरणागति में हुआ है ।शरणागति से ही समग्र की प्राप्ति होती है ।भगवान् श्रीकृष्ण समग्र हैं-- 'अशंसयं समग्रं माम् ' ( गीता 7 , 1 )
गीता समग्र की वाणी है, इसलिए गीता में सब कुछ है ।जो जिस दृष्टि से गीता को देखता है, गीता उसको वैसी ही दीखने लगती है ।

     ●●● श्री मद्भगवद्गीता की विचारधारा ●●●

श्रीमद्भगवद्गीता की विचारधारा व्यापक है ।गीता में सगुण के प्रति अखंड श्रद्धा है तो निर्गुण के ज्ञान की विधि भी है ।एक ओर जहाँ इसमें योगरूपी गूढ़तम विज्ञान है तो दूसरी ओर व्यावहारिक जीवन के संदेश भी हैं ।स्वयं भगवान् कृष्ण की भी विविध भंगिमाएँ हैं ।वे कहीं ऋषि रूप में उपदेष्टा हैं, कहीं मित्र रूप में सलाहकार, कभी गुरू रूप में कठोर हो जाते हैं तो कभी भगवत् रूप में शरण प्रदान करते हैं ।कभी परम आत्मीय रूप में भक्ति भाव जगाते हैं तो विराट दर्शन भी दिखाते हैं ।

श्रीमद्भगवद्गीता किसी पंथ का निर्माण नहीं करती , यह तो वह महाद्वार है, जिससे समस्त आध्यात्मिक सत्य और अनुभूति के जगत की झाँकी मिलती है और इस झाँकी में परम दिव्य धाम में स्वयं योगेश्वर भगवान् के दिव्य दर्शन मिलते हैं ।गीता के ज्ञान में इतनी व्यापकता है कि इसे जिस रूप में धारण करना चाहें, वहीं नवीन ज्ञान का उदय होता है ।

श्रीमद्भगवद्गीता  शोधार्थी के लिए अक्षय स्रोत है , किंकर्तव्यविमूढ़ के लिए सही दिशा है , रोगी के लिए चिकित्सा है, मानसिक विकल के लिए परम मनोविज्ञान है। श्री मद्भगवद्गीता बौद्धिक पिपाशा के लिए शीतल निर्झर तो संवेदनशील हृदय की शुद्ध संवेदना है ।समाज के लिए धर्मशास्त्र है तो राष्ट्र के लिए नीतिशास्त्र, कर्मशील के लिए कर्म , ज्ञानी के लिए शास्वत ज्ञान तो भक्त के लिए स्वयं भगवान् है गीता ।जिस दृष्टि से लाभ लेना चाहें, मार्गदर्शन चाहें, मिल जाता है ।

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