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Monday, March 9, 2020

मंत्र जपयोग क्या है , मंत्र जप की दो श्रेणियाँ , शुद्धता की भावना से मंत्र जप, मंत्र जप से आंतरिक शक्तियों का जागरण ।

    
              <<<<<<<<< मंत्र जप क्या है >>>>>>>>
वस्तुतः जप अचेतन मन को जाग्रत करने की एक वैज्ञानिक विधि है। भगवान  के नाम या किसी मंत्र की पुनरावृत्ति को ही जप कहा गया है।आध्यात्म साधना जगत में आगे बढ़ने के लिए जपयोग का सहारा लिया जाता है।वस्तुतः जप एक यौगिक क्रिया है, जिसका अर्थ होता है - किसी मंत्र की पुनरावृत्ति ( बार-बार बोलना) करते रहना ।शब्द व्युत्पत्ति के अनुसार जप, किसी मन्त्र की पुनरावृत्ति एवं उस पर मनन को कहते हैं,जो साधक को आध्यात्म के चरम पर पहुँचाने के योग्य बनाता है।

विश्व के सभी धर्मों में जप को महत्व दिया गया है एवं इसे मनुष्य को चरम उद्देश्य प्राप्त कराने वाला अमोघ शस्त्र कहा गया है।समस्त मानव जाति के लिए जपयोग वरदान स्वरुप है।जिसके द्वारा मनुष्य कभी न कभी प्रेरणा ग्रहण करेगा और बंधन मुक्त होकर व्यक्तिगत जीवन में शांति एवं सामाजिक जीवन में श्रेय- सम्मान का अधिकारी बनेगा ।

मंत्र जप मशीन की तरह यंत्रवत् नहीं किया जाता, वरन् उस मंत्र में छिपे गूढ़ तत्व एवं भावनाओं-प्रेरणाओं पर ध्यानपूर्वक मनन करते हुए किया जाता है और तदनुरूप अपने गुण ,कर्म, स्वभाव एवं चिंतन व व्यवहार को ढाला जाता है।ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं ने जपयोग को ईश्वर का पूर्ण ज्ञान प्रदान करने वाला तथा ईश्वर से संबंध स्थापित करने के लिए सर्वोत्तम माध्यम बतलाया है।

     <<<<<<<< मंत्र जप की दो श्रेणियाँ>>>>>>>>>

मंत्र शास्त्र के अनुसार मंत्र जप की दो श्रेणियाँ हैं-- सकाम और निष्काम ।सकाम जप किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।इसमें विधि-विधान का पालन करते हुए निर्धारित जप किया जाता है; जब कि निष्काम जप में ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।यदि निस्वार्थ भाव से जप किया जाता है तो उसे निष्काम जप कहते हैं ।आत्मोन्नति के लिए निष्काम जप करना ही श्रेष्ठ है ।यह विशुद्ध रूप से समर्पण का भाव है।मंत्र जप में समय पवित्र स्थान, शांत वातावरण एवं बाह्य शुचिता आदि का विशेष महत्व है।
      <<<<<  शुद्धता की भावना से मंत्र जप >>>>>>

जप करते समय साधक को स्वयं में पूर्ण शुद्धता का भाव रखना चाहिए ।शांत, एकांत एवं स्वच्छ स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठकर आलस्य, अनिच्छा, मानसिक उद्विग्नता अवस्था को त्यागकर योगाभ्यास की तरह जप करना चाहिए ।मंत्र जप के समय यह भावना रखनी चाहिए कि वह बहुत शक्तिशाली है तथा उसे शक्ति प्रदान कर रहा है।

प्रतिदिन निश्चित संख्या में इष्ट मंत्र का जप करते रहने से वह हमारी प्रार्थना का एक अंग बन जाता है। प्रार्थनापूर्वक जप करने से मानसिक तनाव भी कम होता है।जप करते समय मानसिक रूप से सतर्क एवं सजग रहना अति आवश्यक है ।मंत्र संरचना, उसकी ध्वनि लहरी व उनके अंदर निहित देवतत्व पर ध्यान केन्द्रित करने से असीम आनंद एवं सुख की अनुभूति होती है एवं साधक के लिए मुक्ति का, ऋद्धि-सिद्ध का द्वार खुलता है।

 <<<<< मंत्र जप से आंतरिक शक्तियों का जागरण >>>>>>

एक ही मंत्र की नियमित, अविरल पुनरावृत्ति करते रहने से अंग-अवयवों में विशेष प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं और मन आध्यात्मिक शक्ति से भर जाता है।यही शक्ति साधक की आंतरिक शक्तियों का जागरण करने में सहायक होती है।मंत्रजप की महिमा से सभी धर्मशास्त्र ओत-प्रोत हैं ।

मंत्र विज्ञान के अनुसार प्रत्येक मंत्र में अदृश्य शक्तियाँ एवं देवतत्व सन्निहित होते हैं , जो हमारी साधारण ग्रहण शक्ति से परे हैं ।श्रद्धा विश्वास एवं इच्छा शक्ति के द्वारा जब उन पर चोट की जाती हे तो ये अदृश्य शक्तियाँ उभरकर सामने आती हैं और मंत्र जाग्रत हो जाता है ।जब मंत्र जाग्रत हो जाता है तो उसकी गुप्त शक्तियाँ साधक के सामने आ जाती हैं ।

विश्वविद्यालय थियोसोफिस्ट लेड वीटर , एनी बेसेंट आदि मनीषियों ने भी अपनी-अपनी कृतियों में मंत्रों की महत्ता स्वीकारते हुए कहा है कि ' मंत्र ' वर्णों के साधारण संग्रह से पूर्णतया भिन्न है।सर जाॅन वुडरफ ने अपनी प्रसिद्ध कृति - ' गारलैंड ऑफ लेटर्स ' में लिखा है कि मंत्र शब्दों की विशेष रचना में गुह्य अर्थ एवं दिव्य शक्तियाँ होती हैं जो जपकर्ता को दिव्य शक्तियों का पुंज बना देती हैं अर्थात जपकर्ता की आंतरिक शक्तियों को जाग्रत कर देती हैं ।

मंत्रजप में मंत्रों का वर्गीकरण उनके मूल  उत्पत्ति स्थान से भी किया गया है ।वेदों में प्रयुक्त हुए मंत्र-- वैदिक, पुराणों में प्रयुक्त हुए मंत्र-- पौराणिक, तंत्रशास्त्रों में प्रयुक्त हुए मंत्र-- तांत्रिक या शाबर कहे गए हैं तथा कालांतर में सिद्ध महात्माओं द्वारा उद्धृत मंत्र -- लौकिक कहकर पुकारे गए हैं ।कुछ मंत्र स्वतः ही जाग्रत या सिद्ध होते हैं और कुछ मंत्रों को जाग्रत करने के लिए निर्दिष्ट साधना करनी पड़ती है ।ये सभी प्रक्रियाएँ जपयोग के अन्तर्गत ही आती हैं ।

हमारी भारतीय संस्कृति में जपयोग को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।जप योग किसी भी पद्धति से किया जाय , इसकी महत्ता असीम है।जप योग से जपकर्ता के व्यक्तित्व में परिवर्तन आने के साथ-साथ उसके जीवन में सिद्धियों का अवतरण भी होता है और साथ ही उसका मन स्वस्थ, स्वच्छ व निर्मल बनता है।इसलिए आध्यात्मिक साधकों को अपनी अन्य यौगिक प्रक्रियाओं के साथ नियमित जपयोग का अभ्यास करना चाहिए ।

जप योग से परमेश्वर की निकटता की अनुभूति होती है।



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