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Wednesday, March 11, 2020

व्रत-उपवास क्यों शुरु किए गए , व्रत-उपवास के चमत्कारिक स्वास्थ्य लाभ,

    <<<<<<< व्रत-उपवास क्यों शुरु किए गए>>>>>>>>
हमारे ऋषि-मुनियों व मनीषियों ने दिवस,वार, तिथि व पर्व-त्यौहारों आदि को ध्यान में रखते हुए व्रत-उपवास की तिथियाँ निर्धारित कीं, ताकि लोग इन तिथियों में उपवास करके शरीर में विशेष ऊर्जा का संचय कर सकें और शरीर में पहुँचने वाले , निर्मित होने वाले विषैले तत्वों का शमन कर सकें तथा अपने शरीर को स्वस्थ बना सकें ।इसी कारण सदियों से हमारे भारत देश में व्रत-उपवास की परम्परा रही है।

व्रत-उपवास के अनेक लाभ हैं व इनके लौकिक व आध्यात्मिक प्रभाव हैं ।व्रत-उपवासों के लाभ प्राप्त  करने के लिए उचित सहनशक्ति को विकसित करना भी आवश्यक होता है।अपने आध्यात्मिक प्रभावों के कारण ही व्रत-उपवास को तप-साधना का एक अभिन्न अंग माना जाता है ।वैसे तो बहुत सारे व्रत-उपवास हैं, जो लौकिक कामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, लेकिन यदि इन व्रत-उपवासों के साथ निष्काम-निर्मल भावना जुड़ी हो तो इनका आध्यात्मिक लाभ भी व्यक्ति को मिलता है।

  व्रत-उपवास समान ही माने जाते हैं, लेकिन इनमें थोड़ी भिन्नता भी है। व्रत में संकल्प के साथ नियमावली होती है , हर व्रत के अलग नियम होते हैं, विधि-निषेध की प्रक्रियाएँ होती हैं,उनका पालन करना इसमें जरूरी होता है, लेकिन उपवास में केवल अन्न का त्याग होता है, परमात्मा का चिंतन होता है।उपवास का अर्थ है-- परमात्मा के समीप वास । व्रत की तरह इसमें कठोर नियमावली नहीं होती , इसलिए उपवास व्रत नहीं होता , लेकिन व्रत उपवास की तरह हो सकता है।

<<<<<<< व्रत-उपवास के चमत्कारिक स्वास्थ्य लाभ >>>>>>

आज समस्त विश्व में अनेक रोगों की वृद्धि हो रही है, इसलिए लोगों का ध्यान अब व्रत-उपवास की ओर जा रहा है।आज विश्व के अनेक वैज्ञानिक व्रत-उपवास के लाभों को लेकर निरंतर शोध-अध्ययन कर रहे हैं ।शोध-अध्ययनों के अनुसार-- निश्चित क्रम में उपवास करने से अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं ।

मूलतः व्रत-उपवास की परम्परा हमारे देश से ही शुरू हुई है ।आयुर्वेद में व्रत-उपवास की तरह ही लंघन एक चिकित्सा पद्धति है।लंघन में रोग और उम्र के अनुसार एक निश्चित समय सीमा के 
लिए किसी भी प्रकार के भोजन का त्याग किया जाता है ।इसका उद्देश्य शरीर में चयापचय क्रिया ( मेटाबाॅलिज्म) के दौरान उत्पन्न विषाक्त तत्वों का पाचन कर अग्नि तत्व की वृद्धि करना होता है।
लंघन की प्रक्रिया से सुस्ती व थकान दूर होती है, भूख-प्यास व नींद संतुलित होती है, मन शांत व प्रसन्नचित्त होता है।

व्रत-उपवास की प्रक्रिया से वसा की मात्रा घटती है , शर्करा नियंत्रित होती है और यकृत , वृक्क जैसे शरीर के अन्य अंगों से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं ।व्रत-उपवास से खान-पान की आदत में सुधार आता है व रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

व्रत-उपवास से पाचनशक्ति की क्रिया का सही रूप में संचालन होता है , शरीर की चयापचय क्रिया सुधरती है और आंतों की बीमारी में भी लाभ मिलता है।शोध अध्ययनों के अनुसार  -- व्रत-उपवासों से एलर्जी संबंधी बीमारियाँ भी ठीक होती हैं ।

जैसा कि सर्वविदित है कि व्रत-उपवास की परम्परा हमारे ऋषि-मुनियों के शोध-अध्ययनों के आधार पर ही विकसित हुई होगी।और हमारे शास्त्रों में ऐसे प्रमाण भी मिल जाएँगे इसलिए हम भारतीयों को शोध करने की जरूरत नहीं है , जरूरत है तो इस परम्परा का महत्व समझने की ; जो कि हमें हमारी प्राचीन संस्कृति से विरासत में मिली है ।बड़ा स्पष्ट है कि हमारा स्वास्थ्य हमारे आहार पर व आहार संबंधी आदतों पर ही निर्भर है।

आज सभी देशों में मोटापा , डारबिटीज, हृदय रोग , कैंसर से लेकर बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियाँ एक बड़ी जनसँख्या को अपनी गिरफ्त में ले रही हैं, ऐसे में व्रत-उपवास की महत्ता की चर्चा जोरों पर है ।इंटरनेट पर भी व्रत-उपवास की महत्ता का प्रचार हो रहा है।सभी देशों के लोग इसका फायदा उठा रहे हैं ।

अमेरिका स्थित नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजिंग की न्यूरोसाइंस लेबोरेट्री के प्रमुख और जाॅन हाॅपकिन्स विश्वविद्यालय में न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर मार्क मैटसन पिछले कई वर्षों से इस विषय पर शोधकार्य कर रहे हैं ।उनके अनुसार-- उपवास करने से हृदय, माँसपेशियाँ , आँत और शरीर के अन्य अंग बेहतर ढंग से कार्य कर पाते हैं और इससे मस्तिष्क की कार्यशक्ति भी बढ़ती है ।

      <<<<<<<<<<प्रोफेसर मार्क के अनुसार>>>>>>>>>>

 उपवास के दौरान ऊर्जा की खपत कम होने से मस्तिष्क, बढ़ती उम्र के साथ तंत्रिका तंत्र ( नर्वस सिस्टम) से संबंधित रोगों को रोकने में सफल होता है।इससे याददाश्त बढ़ती है और मन प्रसन्न रहता है , इससे अल्जाइमर और पार्किंसन जैसे याददाश्त संबंधित रोगों को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।वर्षों से जारी अपने प्रयोगों के आधार पर प्रोफेसर मार्क ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि प्रति सप्ताह दो दिन का उपवास किया जाए तो इससे मस्तिष्क  के हिप्पोकैम्पस क्षेत्र की क्षमता में सुधार आता है, जिसका मुख्य संबंध हमारी स्मृति क्षमता से है।

                          व्रत-उपवास से मस्तिष्क की कोशिकाओं में एमिलाॅयड प्लेक एकत्र नहीं हो पाता।यह एमिलाॅयड प्लेक एक प्रकार का प्रोटीन है , जो अल्जाइमर के मरीजों में पाया जाता है ।प्रोफेसर मार्क के अनुसार, तंत्रिका तंत्र के सशक्त होने से व्यक्ति में अवसाद जैसी समस्याएँ नहीं होतीं ।इसके साथ व्रत-उपवास समूचे मस्तिष्कीय क्रियाकलापों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं ।

विशेषज्ञों के अनुसार, हर कोई व्रत नहीं रख सकता , जैसे -- गर्भवती महिलाएँ, बच्चों को दुग्धपान कराने वाली महिलाएँ, कुपोषित व्यक्ति, हृदय एवं ऐसी अन्य बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति, मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति ।यदि हमें कोई रोग है तो व्रत रखने के लिए अपने डाॅक्टर से परामर्श लेना चाहिए ।

जैसा कि व्रत का एक अर्थ है - नियंत्रण इसलिए व्रत-उपवासों में आहार संयम प्रमुख है जैसे व्रतों में सादा नमक नहीं लिया जाता ।जो लोग बिना नमक के नहीं रह सकते , वे सेंधा नमक ग्रहण करते हैं ।जल, फल, फलों का रस , नीबू- पानी आदि का इसमें भरपूर सेवन किया जाता है ।व्रत में चीनी या गुड़ को ग्रहण करने की एक सीमा है ।जो लोग अस्वाद व्रत रखते हैं, वे नमक, चीनी दोनों का ही त्याग कर देते हैं ।अलग-अलग व्रत के अलग-अलग विधान होते हैं ।किसी में केवल फलाहार करते हैं, तो किसी में एक समय भोजन करते हैं ।

                       व्रत-उपवास का यदि हमें संपूर्ण लाभ लेना है तो हमें उचित खान-पान के साथ , सही आहार- विहार का भी ध्यान रखना चाहिए ।व्रत-उपवास में सभी तरह के आहार सम्मिलित हैं, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक । शारीरिक आहार में खान-पान का संयम करना चाहिए ।मानसिक आहार में हमें अच्छे विचारों को ग्रहण करना चाहिए ।भावनात्मक आहार में शुभ-भावों को ग्रहण करना चाहिए और अशुभ भावों का त्याग करना चाहिए ।आध्यात्मिक आहार में प्रार्थना, मंत्रजप ,ध्यान, उपासना आदि को ग्रहण करना चाहिए ।

व्रत-उपवासों के लाभों को समझते हुए हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार इन्हें अपने जीवन में अपनाना चाहिए ।जिससे हमें आध्यात्मिक लाभ  व स्वास्थ्य लाभ दोनों ही प्राप्त हों और जीवन में सुख-शान्ति प्राप्त हो।
    

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