भारतीय संस्कृति में विशिष्ट पर्वों पर वृक्षों की विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है ।हमारी संस्कृति में वृक्षों को जीवंत देवस्वरूप माना गया है ।इसलिए भारत में ऐसे पर्व, व्रत व त्यौहार विशिष्ट तिथियों में आते हैं, जिनमें किसी विशेष पौधे या वृक्ष की पूजा की जाती है ।हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के संतुलन पर बहुत ध्यान दिया इसीलिए उन्होंने विभिन्न वृक्षों के महत्व को समझकर उनकी पूजा के विधान आरंभ किए।इसके द्वारा मानव जाति वृक्षों की उपयोगिता समझे और प्रकृति में संतुलन बनाए रखे।भगवान श्रीकृष्ण श्री मद्भगवद्गीता में अपनी विभूतियों की चर्चा के क्रम में स्वयं कहते हैं-- 'अश्वस्थः सर्ववृक्षाणां' अर्थात वृक्षों में मैं पीपल वृक्ष हूँ ।
हर छोटा पौधा और हर वृक्ष अपने आप में महत्वपूर्ण है ।सभी का भारतीय संस्कृति में विशिष्ट स्थान है।उन्हीं में से कुछ देवतुल्य, पूजनीय वृक्षों की प्रमुख विशेषताएँ--
● वटवृक्ष यानी बरगद का वृक्ष--- पराशर मुनि ने ' वट मूले तपोवासा ' कहकर वटवृक्ष की पवित्रता के बारे में बताया है-- समूची सृष्टि में एकमात्र वटवृक्ष ही है, जिसमें त्रिदेवों ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का सम्मिलित वास है।वटवृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, इसलिए इसे बोधिवृक्ष भी कहते हैं ।यह बहुत विशाल होता है।वटवृक्ष के नीचे ही भगवान शिव समाधि लगाते हैं, इसलिए इस वृक्ष को भगवान शिव का प्रतीक-पर्याय भी समझा जाता है।वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने सत्यवान को यमराज के पाश से मुक्त किया था।इसलिए वटसावित्री व्रत में सुहागिन महिलाएँ वटवृक्ष की पूजा करती हैं और अपने पति के दीर्घायु, स्वस्थ जीवन की मनोकामनाएँ करती हैं ।
● पीपल वृक्ष-- पीपल वृक्ष में अनेक देवी देवताओं का वास माना गया है इसलिए यह देववृक्षों की श्रेणी में आता है।सोमवती अमावस्या यानी सोमवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ने पर लोग पीपल वृक्ष की पूजा करते हैं , जल व सामग्री अर्पण करते हुए 108 बार परिक्रमा करते हैं ।सभी तरह के वृक्षों में पीपल ही एकमात्र ऐसा वृक्ष है , जिसमें कीड़े नहीं लगते ।पीपल का वृक्ष सबसे अधिक ऑक्सीजन देता है ।यही कारण है कि हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को काटना वर्जित माना गया है ।
● अशोक वृक्ष-- अशोक वृक्ष के बारे में कहा जाता है कि 'जो शोक निवारे सो अशोक' ।इस वृक्ष का महत्व इसलिए भी है ; क्योंकि माता सीता ने अपने सबसे कष्टकर व दुखद पलों में रावण की नगरी में अशोक वाटिका को ही अपना आश्रय स्थल बनाया था और उसी पेड़ के नीचे उन्होंने अपना समय बिताया था।ऐसी मान्यता है कि घर में अशोक वृक्ष लगाने से वास्तुदोष भी समाप्त हो जाते हैं ।
● नीम वृक्ष-- नीम का वृक्ष भी अत्यन्त उपयोगी है , इसकी पत्तियाँ कड़वी जरूर होती हैं, लेकिन कई तरह की चिकित्सा में उपयोगी होती हैं ; क्योंकि इसकी पत्तियों में रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता होती है।इस वृक्ष को माता शीतला व माँ दुर्गा का वृक्ष माना जाता है ।इसे नीमारी देवी के नाम से भी पुकारा जाता है।प्रायः देवी के मन्दिरों में इसका रोपण करना शुभ माना जाता है व इसका विधिवत् पूजन भी होता है।आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में चेचक निकलने पर नीम के पेड़ का पूजन व इसकी पत्तियों का उपयोग चेचक के दाग हटाने में किया जाता है ।
● बिल्व वृक्ष-- बिल्व वृक्ष के महत्व से सभी परिचित हैं ।बिल्वपत्र भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उन्हें बिल्वपत्र चढ़ाए जाते हैं ।बिल्वपत्र की महिमा का वर्णन करने वाला 'बिल्वाष्टकम' स्रोत भी है, जिसमें इसके आध्यात्मिक गुणों का वर्णन है।बिल्ववृक्ष में लगने वाला बेल का फल भी पेट संबधित रोगों के निवारण में बहुत उपयोगी है।मान्यता है कि -- माँ सती ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक हरिद्वार स्थित बिल्वकेश्वर महादेव में बिल्वपत्रों से भगवान की पूजा अर्चना की थी।
● आम वृक्ष-- आम का वृक्ष सभी को अत्यन्त प्रिय है।आम को फलों का राजा कहा जाता है ।हवन आदि में आम की लकड़ी का प्रयोग होता है।मांगलिक कार्यों में, कलश स्थापन में, वंदनवार बनाने में आम्र पत्तियों का उपयोग होता है ।जब आम के वृक्षों में बौर आ जाते हैं, तो उनकी मनमोहक सुगन्ध से वातावरण महक उठता है और फिर कोयल भी स्वयं को कूजने से नहीं रोक पाती ।आम के फल बहुत उपयोगी होते हैं व विविध प्रकार से भारतीय संस्कृति में इनका प्रयोग किया जाता है ।
● केला वृक्ष-- केले के पेड़ में भगवान विष्णु व देवगुरु वृहस्पति का वास माना जाता है, इसलिए प्रायः लोग वृहस्पति वार के दिन केले के पेड़ का पूजन करते हैं । श्री सत्यनारायण कथा में भगवान सत्यनारायण का दरबार केले के पत्तों से सजाया जाता है।इसके पत्ते बहुत बड़े होते हैं ।दक्षिण भारत में केले के पत्तों में पारंपरिक रूप से भोजन करने का विधान है।केले का फल तो सभी को पसन्द होता ही है।
● आँवला वृक्ष-- आँवले का पेड़ अत्यन्त पूजनीय माना गया है ।वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया-- अक्षय तृतीया व कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी -- अक्षय नवमी के नाम से जानी जाती है और इस दिन आँवले के पेड़ की विशेष रूप से पूजा होती है और इसकी छाँह में भोजन पकाकर ग्रहण किया जाता है ।इसी तरह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी, आमलकी एकादशी के नाम से जानी जाती है और यह वृक्ष भगवान विष्णु का अत्यन्त प्रिय है , ऐसी मान्यता है।आँवले के औषधीय गुणों से सभी परिचित हैं और इसके तरह-तरह के प्रयोगों से भी परिचित हैं ।इस वृक्ष के पूजन के अनेक आध्यात्मिक लाभ हैं ।
● तुलसी वृक्ष-- भारतीय परिवेश में हर घर में तुलसी का पौधा अनिवार्य रूप से होता है।तुलसी महा औषधि है।हमारी परंपरा में नियमित तुलसी पूजा का विधान है।हरिप्रिया तुलसी के बिना पंचामृत पूर्ण नहीं होता ।इसकी रोग निवारक व पर्यावरण शुद्धि की क्षमता से हम सभी अच्छी तरह से परिचित हैं ।
इस तरह इन देववृक्षों से भारतीय संस्कृति बड़ी गहराई से जुड़ी हुई है और इनके ही सान्निध्य व संपर्क में रहकर यह इतनी सुविकसित भी हुई है ।प्राचीनकाल से ही रोगों के निवारण में इन वृक्ष- वनस्पतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
● भारतीय संस्कृति में वृक्षों का ग्रहों और नक्षत्रों से भी सम्बन्ध माना गया है । नवग्रहों से सम्बंधित वृक्ष ~~~~~
जैसे --- सूर्यग्रह -- बेलवृक्ष , चंद्रग्रह -- पलाश वृक्ष, मंगल ग्रह-- खैर वृक्ष, बुध ग्रह-- अपामार्ग वृक्ष, वृहस्पति ग्रह-- पीपल वृक्ष, शुक्र ग्रह -- गूलर वृक्ष, शनि ग्रह -- शमी वृक्ष व मदार वृक्ष, राहु ग्रह -- दूर्वा व चंदन वृक्ष, केतु ग्रह -- कुशा व अश्वगंधा से सम्बंधित वृक्ष हैं ।
● सत्ताइस नक्षत्रों से सम्बंधित वृक्ष ~~~~~
अश्विनी नक्षत्र-- कुचला वृक्ष । भरणी नक्षत्र-- आँवला वृक्ष।
कृतिका नक्षत्र-- गूलर वृक्ष । रोहिणी नक्षत्र-- जामुन वृक्ष ।
मृगशिरा नक्षत्र-- खदिर वृक्ष । आद्रा नक्षत्र-- शीशम वृक्ष ।
पुनर्वसु नक्षत्र-- बाँस वृक्ष । पुष्य नक्षत्र-- पीपल वृक्ष ।
अश्लेषा नक्षत्र-नागकेशर वृक्ष।मघा नक्षत्र-- बरगद वृक्ष ।
पूर्वाफाल्गुनीनक्षत्र--पलाश वृक्ष।उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र- पाठा वृक्ष।
हस्त नक्षत्र-- रीठा वृक्ष । चित्रानक्षत्र-- बिल्व पत्र ।
स्वाति नक्षत्र-- अर्जुन वृक्ष । विशाखा नक्षत्र-- कटाई वृक्ष ।
अनुराधा नक्षत्र- मौलश्री वृक्ष । ज्येष्ठा -- चीड़ वृक्ष ।
मूल नक्षत्र -- साल वृक्ष । पूर्वाषाढ़ानक्षत्र-- जलवेतस वृक्ष ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र--कटहल वृक्ष।श्रवण नक्षत्र-- मदार वृक्ष ।
धनिष्ठा नक्षत्र-- शमी वृक्ष । शतभिषा नक्षत्र -- कदंब वृक्ष ।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र- आम वृक्ष।उत्तराभाद्रपद नक्षत्र-- नीम वृक्ष ।
रेवती नक्षत्र-- महुआ वृक्ष ।
ये सभी वृक्ष वनस्पतियाँ औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इनमें से अधिकांश को हम जानते हैं व इनके फल-फूल और पत्तियों का उपयोग भी करते हैं ।
वृक्ष हमारे लिए सदा ही सम्माननीय हैं ।आज प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए बहुत जरूरी है कि हम वृक्षों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए इनके पोषण व संरक्षण का दायित्व उठाएँ और अपनी प्रकृति को समृद्ध बनाएँ ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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