head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): March 2020

Sunday, March 29, 2020

स्वास्थ्य--- भोजन के छः स्वाद ( षड् रस), स्वाद कोशिकाएँ, मीठा , नमकीन, खट्टा , कड़वा, तीखा व कसैला, स्वादों में छिपा स्वस्थ जीवन का रहस्य

    <<<<<<< भोजन के छः स्वाद ( षड् रस ) >>>>>>>
  संसार में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं, उन सभी में कुछ न कुछ स्वाद है ।स्वाद , रंग व आकार-प्रकार के आधार पर ही खाद्य पदार्थों की पहचान होती है ।भोजन में अगर स्वाद की बात की जाए तो उसमें मुख्य रूप से  छः स्वाद ( षड् रस ) हैं ।ये षड् रस हैं-- मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, तीखा व कसैला ।

                     इन रसों से ही भोजन में स्वाद आता है , लेकिन इन स्वाद के रसों में से भी लोग प्रायः किसी एक रस को अधिक पसंद करने लगते हैं ।किसी को मीठा पसंद होता है, तो किसी को नमकीन स्वाद , किसी को खट्टा अधिक पसंद होता है तो किसी को तीखा।कम लोग ही ऐसे होते हैं, जो कड़वा व कसैला स्वाद पसन्द करते हैं ।

स्वादिष्ट भोजन सबको अच्छा लगता है ।विभिन्न खाद्य पदार्थों व फलों में ऐसा स्वाद होता है , जो याद रहता है, उसे याद करते ही मुँह में पानी भर आता है और उसे खाने का, उसका स्वाद फिर से लेने का मन करता है।भोजन अगर स्वादिष्ट है तो व्यक्ति उसे बड़े चाव से , पूरे मन से ग्रहण करता है लेकिन भोजन स्वादिष्ट नहीं है तो वह उसे बेमन से आधा-अधूरा ही खा पाता है।

    <<<<< स्वाद कोशिकाएँ और उनका काम >>>>>>>

हमारे मुँह में करीब दस हजार स्वाद-कोशिकाएँ होती हैं ।ये अधिकतर छोटे उभारों के रूप में जीभ पर और उसके किनारों पर मौजूद होती हैं ।नमकीन व मीठे स्वाद की स्वाद-कोशिकाएँ जीभ के अग्रभाग में, खट्टे की जीभ के दोनों किनारों पर और कड़वे की जीभ के पिछले भाग पर होती हैं ।जब मुँह में खाने का टुकड़ा रखा जाता है तो उसमें मौजूद रसायन स्वाद-कोशिकाएँ को सचेतकर देते हैं व उनके माध्यम से स्वाद का संदेश मस्तिष्क तक पहुँचा देते हैं ।महिलाओं में स्वाद-कोशिकाएँ अधिक संख्या में होती हैं ।

 ●● मीठा स्वाद---------  मीठे पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा व पानी काफी मात्रा में होते हैं ।ये शरीर के सात प्रमुख घटक -- प्लाज्मा, रक्त, वसा , माँसपेशियों , हड्डियों, मज्जा और प्रजनन द्रव्य के निर्माण में उपयोगी हैं ।मीठे का स्वाद -- दूध, क्रीम, घी, साबुत अनाज , चावल, गेहूँ, पके फलों, सब्जियों जैसे-- गाजर, शकरकन्द आदि में घुला होता है ये खाद्य पदार्थ हमारे ऊतकों को पोषण प्रदान करते हैं, तंत्रिकाओं को शान्त कर मन अच्छा करते हैं ।ये त्वचा और बाल के विकास के लिए भी अच्छे होते हैं ।

मीठा भोजन ठंडा व भारी होता है तथा कफ बढ़ाता है ।ज्यादा मीठा खाने से जल्दी थकान , भारीपन, भूख कम लगना , अपच जैसी समस्याएँ हो सकती हैं ।अधिक मात्रा में मीठे का सेवन करने से शरीर में विटामिन और मिनरल की कमी हो जाती है ।विशेषज्ञों के अनुसार-- अधिक शक्कर हाइपरटेंशन को जन्म देती है ।अधिक मीठा खाने और दाँतों की भलीप्रकार सफाई न करने से दाँतों को नुकसान होता है ।

●●● नमकीन स्वाद------- नमक हमारे भोजन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है ।इसके बिना न खाने में स्वाद आता है और न ही शरीर ढंग से काम कर पाता है ।ऊतकों में चिकनाई बनाए रखने और पाचन तंत्र को सुचारु रखने के लिए भी नमक का प्रयोग आवश्यक है।यह तंत्रिका तंत्र , माँसपेशियों की गति और कोशिकाओं में पोषक तत्वों के परिवहन के लिए भी जरूरी है।आजकल कोल्ड स्टोरेज में रखे जाने वाले खाद्य पदार्थ, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ व फास्टफूड का सेवन बढ़ गया है , जिनमें सोडियम अधिक होता है, जो कि नमक का ही घटक है।

नमक आवश्यक है लेकिन आवश्यकता से अधिक नमक का सेवन हानिकारक भी हो सकता है।भोजन में नमक की अधिक मात्रा लेने से यह रक्तकोशिकाओं से नमी खींच लेता है , जिससे हाईब्रडप्रेशर का खतरा बढ़ जाता है ।खाने में अधिक नमक हो तो यह छोटी आँत से रक्त में मिलकर रक्त को खारा कर सकता है , जिससे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हो सकती हैं । अतः हम कह सकते हैं कि नमक जरूरी भी है लेकिन अत्यधिक नमक के नुकसान भी हैं ।

●●● खट्टा स्वाद---------- भोजन में खटाई का स्वाद मुँह में अनायास ही पानी ले आता है ।मीठे की तरह खटाई के भी लोग बहुत शौकीन होते हैं ।इमली, आँवला, अचार, नीबू, संतरा , दही, सिरका जैसी खट्टी चीजें लोगों को बहुत अच्छी लगती हैं ।खट्टा भोजन भूख बढ़ाता है और पाचक रसों का स्राव बढ़ाकर पाचनतंत्र को ठीक रखता है,ऊतकों को पोषण देता है और लवणों के अवशोषण में मदद करता है ।खट्टे खाद्य पदार्थ शरीर को ऊर्जा देते हैं और शरीर में अम्लता को बनाए रखते हैं ।इसके अतिरिक्त खट्टे खाद्य पदार्थ ऊतकों की सफाई भी करते हैं ।

जब लम्बी बीमारी के बाद मुँह का स्वाद बिगड़ जाता है तो खट्टा खाने से स्वाद-कोशिकाओं में नई जान आती है।खट्टा भोजन दिल के लिए भी अच्छा होता है।आँवला, नीबू, संतरा सभी लाभदायक हैं ।खट्टे खाद्य पदार्थ गर्मियों के ताप में आराम पहुँचाता है , इसलिए गर्मियों में खट्टा खाने की सलाह दी जाती है ।आयुर्वेद के अनुसार, जिनके शरीर में खून की कमी होती है , उन्हें खट्टा खाने का अधिक मन करता है लेकिन ज्यादा खट्टा खाने के भी नुकसान हैं ।ज्यादा मात्रा में खट्टा भोजन करने से शरीर शिथिल हो जाता है, इससे त्वचा रोग अधिक होते हैं ।खट्टे पदार्थों के अधिक सेवन से प्यास लगती है , एसिडिटी होने पर इससे नुकसान पहुँचता है और इसकी अधिकता पित्त व कफ बढ़ाती है।

●●● कड़वा स्वाद --------- कड़वा स्वाद भी लोगों को पसन्द होता है ।एक कहावत है -- अच्छी दवा का स्वाद कड़वा होता है।कड़वा स्वाद भले ही ज्यादातर लोगों को पसन्द नहीं होता लेकिन कड़वे स्वाद के भोजन में कई एमीनो एसिड , विटामिन और मिनरल होते हैं, जो दिमाग को तरोताजा करते हैं ।कड़वे खाद्य पदार्थ ऊतकों से विषैले पदार्थों को बाहर निकालते हैं ।इससे यकृत स्वस्थ रहता है।कड़वे खाद्य पदार्थों में मुख्य रूप से करेला, मैथी दाना, गहरी हरी पत्तेदार सब्जियाँ शामिल हैं ।

कड़वा भोजन अधिक मात्रा में एक साथ नहीं खाया जा सकता लेकिन इसकी थोड़ी मात्रा ही हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।कड़वा भोजन भी अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे शरीर में पानी की कमी हो सकती है।स्वास्थ्य के लिए स्वाद सभी लाभदायक हैं लेकिन अत्यधिक मात्रा किसी भी स्वाद की न होकर संतुलन होना चाहिए ।

●●● तीखा स्वाद ---------- भोजन में स्वाद का तीखा होना भी लोगों को अच्छा लगता है ।इसलिए भोजन को तीखा बनाने के लिए कई तरह के मसालों का प्रयोग किया जाता है, जैसे-- काली मिर्च, सफेद गोल मिर्च, पिप्पली, सोंठ, लोंग, कश्मीरी मिर्च व हरी मिर्च आदि।ये मसाले शरीर के लिए सेहतमंद नुस्खे की तरह होते हैं ।

तीखे स्वाद ( मसाले )  रक्त को साफ करते हैं, प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाते हैं और शरीर में ऐंटीबाॅडी की मात्रा बढ़ाकर शरीर को बाहरी रोगाणुओं से बचाते हैं ।तीखा भोजन मांसपेशियों के दर्द को भी कम करता है।आयुर्वेद में त्रिकटु ( काली मिर्च, सोंठ , पिप्पली ) के सेवन का बहुत महत्व है, इससे सर्दी, जुकाम, कफ, खाँसी आदि में बहुत आराम मिलता है।

ज्यादा तीखा भोजन स्वाद-कोशिकाओंको नुकसान पहुँचाता है।प्याज, लहसुन, मिर्च आदि अधिक मात्रा में खाने से साँस की बदबू की समस्या बढ़ जाती है ।मसाले गरम होते हैं, ये शरीर के ताप को बढ़ा देते हैं, जिससे अनिद्रा की समस्या हो सकती है ।अधिक तीखा भोजन करने से एसिडिटी आदि की समस्या हो सकती है।

●●● कसैला स्वाद---------- कसैलापन भी भोजन का एक स्वाद है , जिसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।ज्यादातर कच्चे फल कसैले स्वाद के होते हैं, इसके अलावा कुछ फलों व सब्जियों में कसैलापन स्वभावतः होता है।उदाहरण के लिए आँवला, कैथ, कच्चा केला , अनार, जामुन आदि में भरपूर कसैलापन होता है।इसके अलावा नाशपाती, शलजम, भिंडी, तुलसी आदि का स्वाद भी कसैला होता है।

           कसैला स्वाद हमारे शरीर से अधिक पसीना निकालने में लाभकारी है।ऐसा भोजन पानी का अवशोषण करके ऊतकों को ठोस बनाता है, लेकिन अत्यधिक मात्रा में कसैला भोजन भी नहीं करना चाहिए ।

<<<<<<<  स्वादों में छिपा स्वस्थ जीवन का रहस्य >>>>>>>>

स्वाद का हमारी जीभ से ही नहीं, बल्कि हमारी सेहत से भी गहरा रिश्ता है ।हर तरह के स्वाद का हमारे शरीर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है ।उदाहरण के लिए, मीठा स्वाद मन अच्छा करता है, कड़वा स्वाद वजन कम करता है।खट्टा स्वाद दिमाग तेज करता है और तीखा स्वाद शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, इसलिए हमारे जीवन में हर स्वाद का स्थान व महत्व होता है।इन स्वादों को ग्रहण करने में मात्रा व संतुलन जरूरी है ।

हालाँकि स्वास्थ्य के लिए सभी स्वाद जरूरी है , लेकिन किसी एक स्वाद की अधिकता हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है।अतः यदि हमें अपने स्वाद को बढ़ाने के साथ-साथ स्वाद में छिपे स्वस्थ जीवन के रहस्य को पाना है तो अपने सभी प्रकार के स्वादों में एक संतुलन लाना होगा , इनमें एक सामंजस्य स्थापित करना होगा और कभी-कभी अस्वाद भोजन करके उसमें छिपे स्वाद को भी ग्रहण करना होगा।

अस्वाद भोजन यानी ऐसा भोजन जिसे पकाने में नमक, शक्कर व अन्य मसालों का इस्तेमाल न किया गया हो । ऐसे भोजन में जो स्वाद होता है, वह प्राकृतिक होता है।ऐसा अस्वाद भोजन हमारे मन पर संयम करने में सहायक होने के साथ-साथ हमारी स्वाद की ग्रहणशीलता को भी बढ़ाता है।
 सभी स्वादों में संतुलन बनाना अच्छे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।अतः बचपन से ही भोजन में सभी तरह के स्वादों का उचित संतुलन होना जरूरी है।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।





Friday, March 13, 2020

वृक्ष- भारतीय संस्कृति में वृक्ष जीवंत देव स्वरूप। बरगद, पीपल, अशोक, नीम , बिल्व, आम, केला, आँवला, तुलसी आदि वृक्षों की प्रमुख विशेषताएँ।

    <<<<< भारतीय संस्कृति में वृक्ष जीवंत देव स्वरूप >>>>>
भारतीय संस्कृति में विशिष्ट पर्वों पर वृक्षों की विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है ।हमारी संस्कृति में वृक्षों को जीवंत देवस्वरूप माना गया है ।इसलिए भारत में ऐसे पर्व, व्रत व त्यौहार विशिष्ट तिथियों में आते हैं, जिनमें किसी विशेष पौधे या वृक्ष की पूजा की जाती है ।हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के संतुलन पर बहुत ध्यान दिया इसीलिए उन्होंने विभिन्न वृक्षों के महत्व को समझकर उनकी पूजा के विधान आरंभ किए।इसके द्वारा मानव जाति वृक्षों की उपयोगिता समझे और प्रकृति में संतुलन बनाए रखे।भगवान श्रीकृष्ण श्री मद्भगवद्गीता में अपनी विभूतियों की चर्चा के क्रम में स्वयं कहते हैं-- 'अश्वस्थः सर्ववृक्षाणां' अर्थात वृक्षों में मैं पीपल वृक्ष हूँ ।

 हर छोटा पौधा और हर  वृक्ष अपने आप में महत्वपूर्ण है ।सभी का भारतीय संस्कृति में विशिष्ट स्थान है।उन्हीं में से कुछ देवतुल्य, पूजनीय वृक्षों की प्रमुख विशेषताएँ-- 

● वटवृक्ष यानी बरगद का वृक्ष--- पराशर मुनि ने ' वट मूले तपोवासा ' कहकर वटवृक्ष की पवित्रता के बारे में बताया है-- समूची सृष्टि में एकमात्र वटवृक्ष ही है, जिसमें त्रिदेवों ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का सम्मिलित वास है।वटवृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, इसलिए इसे बोधिवृक्ष भी कहते हैं ।यह बहुत विशाल होता है।वटवृक्ष के नीचे ही भगवान शिव समाधि लगाते हैं, इसलिए इस वृक्ष को भगवान शिव का प्रतीक-पर्याय भी समझा जाता है।वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने सत्यवान को यमराज के पाश से मुक्त किया था।इसलिए वटसावित्री व्रत में        सुहागिन महिलाएँ वटवृक्ष की पूजा करती हैं और अपने पति के दीर्घायु, स्वस्थ जीवन की मनोकामनाएँ करती हैं  ।

● पीपल वृक्ष-- पीपल वृक्ष में अनेक देवी देवताओं का वास माना गया है इसलिए यह देववृक्षों की श्रेणी में आता है।सोमवती अमावस्या यानी सोमवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ने पर लोग पीपल वृक्ष की पूजा करते हैं , जल व सामग्री अर्पण करते हुए 108 बार परिक्रमा करते हैं ।सभी तरह के वृक्षों में पीपल ही एकमात्र ऐसा वृक्ष है , जिसमें कीड़े नहीं लगते ।पीपल का वृक्ष सबसे अधिक ऑक्सीजन देता है ।यही कारण है कि हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को काटना वर्जित माना गया है ।

● अशोक वृक्ष-- अशोक वृक्ष के बारे में कहा जाता है कि 'जो शोक निवारे सो अशोक' ।इस वृक्ष का महत्व इसलिए भी है ; क्योंकि माता सीता ने अपने सबसे कष्टकर व दुखद पलों में रावण की नगरी में अशोक वाटिका को ही अपना आश्रय स्थल बनाया था और उसी पेड़ के नीचे उन्होंने अपना समय बिताया था।ऐसी मान्यता है कि घर में अशोक वृक्ष लगाने से वास्तुदोष भी समाप्त हो जाते हैं ।

● नीम वृक्ष-- नीम का वृक्ष भी अत्यन्त उपयोगी है , इसकी पत्तियाँ कड़वी जरूर होती हैं, लेकिन कई तरह की चिकित्सा में उपयोगी होती हैं ; क्योंकि इसकी पत्तियों में रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता होती है।इस वृक्ष को माता शीतला व माँ दुर्गा का वृक्ष माना जाता है ।इसे नीमारी देवी के नाम से भी पुकारा जाता है।प्रायः देवी के मन्दिरों में इसका रोपण करना शुभ माना जाता है व इसका विधिवत् पूजन भी होता है।आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में चेचक निकलने पर नीम के पेड़ का पूजन व इसकी पत्तियों का उपयोग चेचक के दाग हटाने में किया जाता है ।

● बिल्व वृक्ष-- बिल्व वृक्ष के महत्व से सभी परिचित हैं ।बिल्वपत्र भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उन्हें बिल्वपत्र चढ़ाए जाते हैं ।बिल्वपत्र की महिमा का वर्णन करने वाला 'बिल्वाष्टकम' स्रोत भी है, जिसमें इसके आध्यात्मिक गुणों का वर्णन है।बिल्ववृक्ष में लगने वाला बेल का फल भी पेट संबधित रोगों के निवारण में बहुत उपयोगी है।मान्यता है कि -- माँ सती ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक हरिद्वार स्थित बिल्वकेश्वर महादेव में बिल्वपत्रों से भगवान की पूजा अर्चना की थी।

● आम वृक्ष-- आम का वृक्ष सभी को अत्यन्त प्रिय है।आम को फलों का राजा कहा जाता है ।हवन आदि में आम की लकड़ी का प्रयोग होता है।मांगलिक कार्यों में, कलश स्थापन में, वंदनवार बनाने में आम्र पत्तियों का उपयोग होता है ।जब आम के वृक्षों में बौर आ जाते हैं, तो उनकी मनमोहक सुगन्ध से वातावरण महक उठता है और फिर कोयल भी स्वयं को कूजने से नहीं रोक पाती ।आम के फल बहुत उपयोगी होते हैं व विविध प्रकार से भारतीय संस्कृति में इनका प्रयोग किया जाता है ।

 ● केला वृक्ष-- केले के पेड़ में भगवान विष्णु व देवगुरु वृहस्पति का वास माना जाता है, इसलिए प्रायः लोग वृहस्पति वार के दिन केले के पेड़ का पूजन करते हैं । श्री  सत्यनारायण कथा में भगवान सत्यनारायण का दरबार केले के पत्तों से सजाया जाता है।इसके पत्ते बहुत बड़े होते हैं ।दक्षिण भारत में केले के पत्तों में पारंपरिक रूप से भोजन करने का विधान है।केले का फल तो सभी को पसन्द होता ही है।

 ●  आँवला वृक्ष-- आँवले का पेड़ अत्यन्त पूजनीय माना गया है ।वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया-- अक्षय तृतीया व कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी -- अक्षय नवमी के नाम से जानी जाती है और इस दिन आँवले के पेड़ की विशेष रूप से पूजा होती है और इसकी छाँह में भोजन पकाकर ग्रहण किया जाता है ।इसी तरह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी, आमलकी एकादशी के नाम से जानी जाती है और यह वृक्ष भगवान विष्णु का अत्यन्त प्रिय है , ऐसी मान्यता है।आँवले के औषधीय गुणों से सभी परिचित हैं और इसके तरह-तरह के प्रयोगों से भी परिचित हैं ।इस वृक्ष के पूजन के अनेक आध्यात्मिक लाभ हैं ।

● तुलसी वृक्ष--  भारतीय परिवेश में हर घर में तुलसी का पौधा अनिवार्य रूप से होता है।तुलसी महा औषधि है।हमारी परंपरा में नियमित तुलसी पूजा का विधान है।हरिप्रिया तुलसी के बिना पंचामृत पूर्ण नहीं होता ।इसकी रोग निवारक व पर्यावरण शुद्धि की क्षमता से हम सभी अच्छी तरह से परिचित हैं ।

इस तरह इन देववृक्षों से भारतीय संस्कृति बड़ी गहराई से जुड़ी हुई है और इनके ही सान्निध्य व संपर्क में रहकर यह इतनी सुविकसित भी हुई है ।प्राचीनकाल से ही रोगों के निवारण में इन वृक्ष- वनस्पतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

● भारतीय संस्कृति में वृक्षों का ग्रहों और नक्षत्रों से भी सम्बन्ध माना गया है ।  नवग्रहों से सम्बंधित वृक्ष ~~~~~
जैसे --- सूर्यग्रह -- बेलवृक्ष , चंद्रग्रह -- पलाश वृक्ष, मंगल ग्रह-- खैर वृक्ष, बुध ग्रह-- अपामार्ग वृक्ष, वृहस्पति ग्रह-- पीपल वृक्ष, शुक्र ग्रह -- गूलर वृक्ष, शनि ग्रह -- शमी वृक्ष व मदार वृक्ष, राहु ग्रह -- दूर्वा व चंदन वृक्ष, केतु ग्रह -- कुशा व अश्वगंधा से सम्बंधित वृक्ष हैं ।

● सत्ताइस  नक्षत्रों से सम्बंधित वृक्ष ~~~~~
अश्विनी नक्षत्र-- कुचला वृक्ष । भरणी नक्षत्र-- आँवला वृक्ष। 
कृतिका नक्षत्र-- गूलर  वृक्ष  । रोहिणी नक्षत्र-- जामुन वृक्ष ।
मृगशिरा नक्षत्र-- खदिर वृक्ष । आद्रा  नक्षत्र--  शीशम वृक्ष ।
पुनर्वसु नक्षत्र--  बाँस वृक्ष    । पुष्य  नक्षत्र--   पीपल वृक्ष ।
अश्लेषा नक्षत्र-नागकेशर वृक्ष।मघा  नक्षत्र--   बरगद वृक्ष ।
पूर्वाफाल्गुनीनक्षत्र--पलाश वृक्ष।उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र- पाठा वृक्ष।
हस्त नक्षत्र--    रीठा वृक्ष    ।   चित्रानक्षत्र-- बिल्व पत्र   ।
स्वाति नक्षत्र-- अर्जुन वृक्ष  ।     विशाखा नक्षत्र-- कटाई वृक्ष ।
अनुराधा नक्षत्र- मौलश्री वृक्ष ।    ज्येष्ठा -- चीड़ वृक्ष  । 
मूल नक्षत्र  --  साल वृक्ष  । पूर्वाषाढ़ानक्षत्र-- जलवेतस वृक्ष ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र--कटहल वृक्ष।श्रवण नक्षत्र-- मदार वृक्ष ।
धनिष्ठा नक्षत्र-- शमी वृक्ष  । शतभिषा नक्षत्र -- कदंब वृक्ष ।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र- आम वृक्ष।उत्तराभाद्रपद नक्षत्र-- नीम वृक्ष ।
रेवती नक्षत्र-- महुआ वृक्ष ।
ये सभी वृक्ष वनस्पतियाँ औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इनमें से अधिकांश को हम जानते हैं व इनके फल-फूल और पत्तियों का उपयोग भी करते हैं ।

वृक्ष हमारे लिए सदा ही सम्माननीय हैं ।आज प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए बहुत जरूरी है कि हम वृक्षों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए इनके पोषण व संरक्षण का दायित्व उठाएँ और अपनी प्रकृति को समृद्ध बनाएँ ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

Wednesday, March 11, 2020

व्रत-उपवास क्यों शुरु किए गए , व्रत-उपवास के चमत्कारिक स्वास्थ्य लाभ,

    <<<<<<< व्रत-उपवास क्यों शुरु किए गए>>>>>>>>
हमारे ऋषि-मुनियों व मनीषियों ने दिवस,वार, तिथि व पर्व-त्यौहारों आदि को ध्यान में रखते हुए व्रत-उपवास की तिथियाँ निर्धारित कीं, ताकि लोग इन तिथियों में उपवास करके शरीर में विशेष ऊर्जा का संचय कर सकें और शरीर में पहुँचने वाले , निर्मित होने वाले विषैले तत्वों का शमन कर सकें तथा अपने शरीर को स्वस्थ बना सकें ।इसी कारण सदियों से हमारे भारत देश में व्रत-उपवास की परम्परा रही है।

व्रत-उपवास के अनेक लाभ हैं व इनके लौकिक व आध्यात्मिक प्रभाव हैं ।व्रत-उपवासों के लाभ प्राप्त  करने के लिए उचित सहनशक्ति को विकसित करना भी आवश्यक होता है।अपने आध्यात्मिक प्रभावों के कारण ही व्रत-उपवास को तप-साधना का एक अभिन्न अंग माना जाता है ।वैसे तो बहुत सारे व्रत-उपवास हैं, जो लौकिक कामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, लेकिन यदि इन व्रत-उपवासों के साथ निष्काम-निर्मल भावना जुड़ी हो तो इनका आध्यात्मिक लाभ भी व्यक्ति को मिलता है।

  व्रत-उपवास समान ही माने जाते हैं, लेकिन इनमें थोड़ी भिन्नता भी है। व्रत में संकल्प के साथ नियमावली होती है , हर व्रत के अलग नियम होते हैं, विधि-निषेध की प्रक्रियाएँ होती हैं,उनका पालन करना इसमें जरूरी होता है, लेकिन उपवास में केवल अन्न का त्याग होता है, परमात्मा का चिंतन होता है।उपवास का अर्थ है-- परमात्मा के समीप वास । व्रत की तरह इसमें कठोर नियमावली नहीं होती , इसलिए उपवास व्रत नहीं होता , लेकिन व्रत उपवास की तरह हो सकता है।

<<<<<<< व्रत-उपवास के चमत्कारिक स्वास्थ्य लाभ >>>>>>

आज समस्त विश्व में अनेक रोगों की वृद्धि हो रही है, इसलिए लोगों का ध्यान अब व्रत-उपवास की ओर जा रहा है।आज विश्व के अनेक वैज्ञानिक व्रत-उपवास के लाभों को लेकर निरंतर शोध-अध्ययन कर रहे हैं ।शोध-अध्ययनों के अनुसार-- निश्चित क्रम में उपवास करने से अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं ।

मूलतः व्रत-उपवास की परम्परा हमारे देश से ही शुरू हुई है ।आयुर्वेद में व्रत-उपवास की तरह ही लंघन एक चिकित्सा पद्धति है।लंघन में रोग और उम्र के अनुसार एक निश्चित समय सीमा के 
लिए किसी भी प्रकार के भोजन का त्याग किया जाता है ।इसका उद्देश्य शरीर में चयापचय क्रिया ( मेटाबाॅलिज्म) के दौरान उत्पन्न विषाक्त तत्वों का पाचन कर अग्नि तत्व की वृद्धि करना होता है।
लंघन की प्रक्रिया से सुस्ती व थकान दूर होती है, भूख-प्यास व नींद संतुलित होती है, मन शांत व प्रसन्नचित्त होता है।

व्रत-उपवास की प्रक्रिया से वसा की मात्रा घटती है , शर्करा नियंत्रित होती है और यकृत , वृक्क जैसे शरीर के अन्य अंगों से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं ।व्रत-उपवास से खान-पान की आदत में सुधार आता है व रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

व्रत-उपवास से पाचनशक्ति की क्रिया का सही रूप में संचालन होता है , शरीर की चयापचय क्रिया सुधरती है और आंतों की बीमारी में भी लाभ मिलता है।शोध अध्ययनों के अनुसार  -- व्रत-उपवासों से एलर्जी संबंधी बीमारियाँ भी ठीक होती हैं ।

जैसा कि सर्वविदित है कि व्रत-उपवास की परम्परा हमारे ऋषि-मुनियों के शोध-अध्ययनों के आधार पर ही विकसित हुई होगी।और हमारे शास्त्रों में ऐसे प्रमाण भी मिल जाएँगे इसलिए हम भारतीयों को शोध करने की जरूरत नहीं है , जरूरत है तो इस परम्परा का महत्व समझने की ; जो कि हमें हमारी प्राचीन संस्कृति से विरासत में मिली है ।बड़ा स्पष्ट है कि हमारा स्वास्थ्य हमारे आहार पर व आहार संबंधी आदतों पर ही निर्भर है।

आज सभी देशों में मोटापा , डारबिटीज, हृदय रोग , कैंसर से लेकर बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियाँ एक बड़ी जनसँख्या को अपनी गिरफ्त में ले रही हैं, ऐसे में व्रत-उपवास की महत्ता की चर्चा जोरों पर है ।इंटरनेट पर भी व्रत-उपवास की महत्ता का प्रचार हो रहा है।सभी देशों के लोग इसका फायदा उठा रहे हैं ।

अमेरिका स्थित नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजिंग की न्यूरोसाइंस लेबोरेट्री के प्रमुख और जाॅन हाॅपकिन्स विश्वविद्यालय में न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर मार्क मैटसन पिछले कई वर्षों से इस विषय पर शोधकार्य कर रहे हैं ।उनके अनुसार-- उपवास करने से हृदय, माँसपेशियाँ , आँत और शरीर के अन्य अंग बेहतर ढंग से कार्य कर पाते हैं और इससे मस्तिष्क की कार्यशक्ति भी बढ़ती है ।

      <<<<<<<<<<प्रोफेसर मार्क के अनुसार>>>>>>>>>>

 उपवास के दौरान ऊर्जा की खपत कम होने से मस्तिष्क, बढ़ती उम्र के साथ तंत्रिका तंत्र ( नर्वस सिस्टम) से संबंधित रोगों को रोकने में सफल होता है।इससे याददाश्त बढ़ती है और मन प्रसन्न रहता है , इससे अल्जाइमर और पार्किंसन जैसे याददाश्त संबंधित रोगों को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।वर्षों से जारी अपने प्रयोगों के आधार पर प्रोफेसर मार्क ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि प्रति सप्ताह दो दिन का उपवास किया जाए तो इससे मस्तिष्क  के हिप्पोकैम्पस क्षेत्र की क्षमता में सुधार आता है, जिसका मुख्य संबंध हमारी स्मृति क्षमता से है।

                          व्रत-उपवास से मस्तिष्क की कोशिकाओं में एमिलाॅयड प्लेक एकत्र नहीं हो पाता।यह एमिलाॅयड प्लेक एक प्रकार का प्रोटीन है , जो अल्जाइमर के मरीजों में पाया जाता है ।प्रोफेसर मार्क के अनुसार, तंत्रिका तंत्र के सशक्त होने से व्यक्ति में अवसाद जैसी समस्याएँ नहीं होतीं ।इसके साथ व्रत-उपवास समूचे मस्तिष्कीय क्रियाकलापों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं ।

विशेषज्ञों के अनुसार, हर कोई व्रत नहीं रख सकता , जैसे -- गर्भवती महिलाएँ, बच्चों को दुग्धपान कराने वाली महिलाएँ, कुपोषित व्यक्ति, हृदय एवं ऐसी अन्य बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति, मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति ।यदि हमें कोई रोग है तो व्रत रखने के लिए अपने डाॅक्टर से परामर्श लेना चाहिए ।

जैसा कि व्रत का एक अर्थ है - नियंत्रण इसलिए व्रत-उपवासों में आहार संयम प्रमुख है जैसे व्रतों में सादा नमक नहीं लिया जाता ।जो लोग बिना नमक के नहीं रह सकते , वे सेंधा नमक ग्रहण करते हैं ।जल, फल, फलों का रस , नीबू- पानी आदि का इसमें भरपूर सेवन किया जाता है ।व्रत में चीनी या गुड़ को ग्रहण करने की एक सीमा है ।जो लोग अस्वाद व्रत रखते हैं, वे नमक, चीनी दोनों का ही त्याग कर देते हैं ।अलग-अलग व्रत के अलग-अलग विधान होते हैं ।किसी में केवल फलाहार करते हैं, तो किसी में एक समय भोजन करते हैं ।

                       व्रत-उपवास का यदि हमें संपूर्ण लाभ लेना है तो हमें उचित खान-पान के साथ , सही आहार- विहार का भी ध्यान रखना चाहिए ।व्रत-उपवास में सभी तरह के आहार सम्मिलित हैं, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक । शारीरिक आहार में खान-पान का संयम करना चाहिए ।मानसिक आहार में हमें अच्छे विचारों को ग्रहण करना चाहिए ।भावनात्मक आहार में शुभ-भावों को ग्रहण करना चाहिए और अशुभ भावों का त्याग करना चाहिए ।आध्यात्मिक आहार में प्रार्थना, मंत्रजप ,ध्यान, उपासना आदि को ग्रहण करना चाहिए ।

व्रत-उपवासों के लाभों को समझते हुए हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार इन्हें अपने जीवन में अपनाना चाहिए ।जिससे हमें आध्यात्मिक लाभ  व स्वास्थ्य लाभ दोनों ही प्राप्त हों और जीवन में सुख-शान्ति प्राप्त हो।
    

Monday, March 9, 2020

मंत्र जपयोग क्या है , मंत्र जप की दो श्रेणियाँ , शुद्धता की भावना से मंत्र जप, मंत्र जप से आंतरिक शक्तियों का जागरण ।

    
              <<<<<<<<< मंत्र जप क्या है >>>>>>>>
वस्तुतः जप अचेतन मन को जाग्रत करने की एक वैज्ञानिक विधि है। भगवान  के नाम या किसी मंत्र की पुनरावृत्ति को ही जप कहा गया है।आध्यात्म साधना जगत में आगे बढ़ने के लिए जपयोग का सहारा लिया जाता है।वस्तुतः जप एक यौगिक क्रिया है, जिसका अर्थ होता है - किसी मंत्र की पुनरावृत्ति ( बार-बार बोलना) करते रहना ।शब्द व्युत्पत्ति के अनुसार जप, किसी मन्त्र की पुनरावृत्ति एवं उस पर मनन को कहते हैं,जो साधक को आध्यात्म के चरम पर पहुँचाने के योग्य बनाता है।

विश्व के सभी धर्मों में जप को महत्व दिया गया है एवं इसे मनुष्य को चरम उद्देश्य प्राप्त कराने वाला अमोघ शस्त्र कहा गया है।समस्त मानव जाति के लिए जपयोग वरदान स्वरुप है।जिसके द्वारा मनुष्य कभी न कभी प्रेरणा ग्रहण करेगा और बंधन मुक्त होकर व्यक्तिगत जीवन में शांति एवं सामाजिक जीवन में श्रेय- सम्मान का अधिकारी बनेगा ।

मंत्र जप मशीन की तरह यंत्रवत् नहीं किया जाता, वरन् उस मंत्र में छिपे गूढ़ तत्व एवं भावनाओं-प्रेरणाओं पर ध्यानपूर्वक मनन करते हुए किया जाता है और तदनुरूप अपने गुण ,कर्म, स्वभाव एवं चिंतन व व्यवहार को ढाला जाता है।ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं ने जपयोग को ईश्वर का पूर्ण ज्ञान प्रदान करने वाला तथा ईश्वर से संबंध स्थापित करने के लिए सर्वोत्तम माध्यम बतलाया है।

     <<<<<<<< मंत्र जप की दो श्रेणियाँ>>>>>>>>>

मंत्र शास्त्र के अनुसार मंत्र जप की दो श्रेणियाँ हैं-- सकाम और निष्काम ।सकाम जप किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।इसमें विधि-विधान का पालन करते हुए निर्धारित जप किया जाता है; जब कि निष्काम जप में ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।यदि निस्वार्थ भाव से जप किया जाता है तो उसे निष्काम जप कहते हैं ।आत्मोन्नति के लिए निष्काम जप करना ही श्रेष्ठ है ।यह विशुद्ध रूप से समर्पण का भाव है।मंत्र जप में समय पवित्र स्थान, शांत वातावरण एवं बाह्य शुचिता आदि का विशेष महत्व है।
      <<<<<  शुद्धता की भावना से मंत्र जप >>>>>>

जप करते समय साधक को स्वयं में पूर्ण शुद्धता का भाव रखना चाहिए ।शांत, एकांत एवं स्वच्छ स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठकर आलस्य, अनिच्छा, मानसिक उद्विग्नता अवस्था को त्यागकर योगाभ्यास की तरह जप करना चाहिए ।मंत्र जप के समय यह भावना रखनी चाहिए कि वह बहुत शक्तिशाली है तथा उसे शक्ति प्रदान कर रहा है।

प्रतिदिन निश्चित संख्या में इष्ट मंत्र का जप करते रहने से वह हमारी प्रार्थना का एक अंग बन जाता है। प्रार्थनापूर्वक जप करने से मानसिक तनाव भी कम होता है।जप करते समय मानसिक रूप से सतर्क एवं सजग रहना अति आवश्यक है ।मंत्र संरचना, उसकी ध्वनि लहरी व उनके अंदर निहित देवतत्व पर ध्यान केन्द्रित करने से असीम आनंद एवं सुख की अनुभूति होती है एवं साधक के लिए मुक्ति का, ऋद्धि-सिद्ध का द्वार खुलता है।

 <<<<< मंत्र जप से आंतरिक शक्तियों का जागरण >>>>>>

एक ही मंत्र की नियमित, अविरल पुनरावृत्ति करते रहने से अंग-अवयवों में विशेष प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं और मन आध्यात्मिक शक्ति से भर जाता है।यही शक्ति साधक की आंतरिक शक्तियों का जागरण करने में सहायक होती है।मंत्रजप की महिमा से सभी धर्मशास्त्र ओत-प्रोत हैं ।

मंत्र विज्ञान के अनुसार प्रत्येक मंत्र में अदृश्य शक्तियाँ एवं देवतत्व सन्निहित होते हैं , जो हमारी साधारण ग्रहण शक्ति से परे हैं ।श्रद्धा विश्वास एवं इच्छा शक्ति के द्वारा जब उन पर चोट की जाती हे तो ये अदृश्य शक्तियाँ उभरकर सामने आती हैं और मंत्र जाग्रत हो जाता है ।जब मंत्र जाग्रत हो जाता है तो उसकी गुप्त शक्तियाँ साधक के सामने आ जाती हैं ।

विश्वविद्यालय थियोसोफिस्ट लेड वीटर , एनी बेसेंट आदि मनीषियों ने भी अपनी-अपनी कृतियों में मंत्रों की महत्ता स्वीकारते हुए कहा है कि ' मंत्र ' वर्णों के साधारण संग्रह से पूर्णतया भिन्न है।सर जाॅन वुडरफ ने अपनी प्रसिद्ध कृति - ' गारलैंड ऑफ लेटर्स ' में लिखा है कि मंत्र शब्दों की विशेष रचना में गुह्य अर्थ एवं दिव्य शक्तियाँ होती हैं जो जपकर्ता को दिव्य शक्तियों का पुंज बना देती हैं अर्थात जपकर्ता की आंतरिक शक्तियों को जाग्रत कर देती हैं ।

मंत्रजप में मंत्रों का वर्गीकरण उनके मूल  उत्पत्ति स्थान से भी किया गया है ।वेदों में प्रयुक्त हुए मंत्र-- वैदिक, पुराणों में प्रयुक्त हुए मंत्र-- पौराणिक, तंत्रशास्त्रों में प्रयुक्त हुए मंत्र-- तांत्रिक या शाबर कहे गए हैं तथा कालांतर में सिद्ध महात्माओं द्वारा उद्धृत मंत्र -- लौकिक कहकर पुकारे गए हैं ।कुछ मंत्र स्वतः ही जाग्रत या सिद्ध होते हैं और कुछ मंत्रों को जाग्रत करने के लिए निर्दिष्ट साधना करनी पड़ती है ।ये सभी प्रक्रियाएँ जपयोग के अन्तर्गत ही आती हैं ।

हमारी भारतीय संस्कृति में जपयोग को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।जप योग किसी भी पद्धति से किया जाय , इसकी महत्ता असीम है।जप योग से जपकर्ता के व्यक्तित्व में परिवर्तन आने के साथ-साथ उसके जीवन में सिद्धियों का अवतरण भी होता है और साथ ही उसका मन स्वस्थ, स्वच्छ व निर्मल बनता है।इसलिए आध्यात्मिक साधकों को अपनी अन्य यौगिक प्रक्रियाओं के साथ नियमित जपयोग का अभ्यास करना चाहिए ।

जप योग से परमेश्वर की निकटता की अनुभूति होती है।



Tuesday, March 3, 2020

नया सीखते रहने की आदत से जीवन को महकाएँ।

   <<<<नया सीखते रहने की आदत से जीवन को महकाएँ>>>>  
हममें से हरेक की एक दिनचर्या होती है , और ज्यादातर हम उसे ही अपनाते हैं और हम इस दिनचर्या के इतने आदी हो जाते हैं कि कुछ नया सीखने की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।

प्रतिदिन हमारे जीवन में एक ही तरह की दिनचर्या, एक ही तरह की बातें, वही चिंता , वही शिकायतें और वही पुराने विचार।क्या यही हमारा जीवन है ? जिसमें कुछ नयापन नहीं, कुछ रचनात्मकता नहीं ।

हमें हमारी इस सोच से बाहर निकलना होगा , जीवन की इस निर्धारित दिनचर्या में कुछ नया करना होगा।हमें अपने हर दिन को नए रंगों से भरना होगा और यह तभी संभव होगा, जब हम अपने जीवन में नएपन की खोज करेंगे।

यह सच है कि हमारे जीवन का हरपल बहुमूल्य है, वर्तमान का हर पल कीमती है, परंतु हम इसकी कीमत नहीं समझ पाते हैं ।हम यह सोच ही नहीं पाते कि हमें हमारे जीवन की राहें बहुत कुछ दे सकती हैं, यदि हम समय का सदुपयोग करते हुए कुछ नया सीखने में अपना मन लगाएँ ।

हम समय को यूँ ही जाने देते हैं और दूसरों को जैसा करते हुए देखते हैं वैसा ही करने लगते हैं ।जीवन का हर पल हमें कुछ सिखाता है यदि हम उससे सीखने का प्रयास करें, नया सीखने की कोशिश करें और अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करें ।आज की जीवनशैली में तनाव बहुत हैं, ऐसे में कुछ नया-नया सीखने में अपने मन को लगाकर तनाव से  मुक्ति पाने में भी सहायता मिलती है।

भगवान सभी को इस धरती पर कोई न कोई गुण देकर ही भेजता है बस हम सब अपनी उस क्षमता को पहचानकर विविध रूप से तराशें और स्वयं को साबित करें ।भले ही हम अपनी रुचि के अनुसार एक कार्य करें, लेकिन एकाग्रता के साथ और पूरा मन लगाकर करें, जैसे--- चित्रकार अपनी चित्रकारी में, संगीत कार अपने संगीत में, साहित्यकार अपने साहित्य में एवं कवि अपनी कविता में विविधता तलाशें और नवीनता लाएँ ।

जीवन का हर पल हमें कुछ सिखाता है, यदि हम उससे सीखने का प्रयास करें, कुछ नया सीखने की कोशिश करें और अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करें ।हर दिन कुछ नया सीखने की चाहत ही हमारी संभावनाओं को विस्तार देती है, हमारे जीवन को विविधता के रंगों से रंगती है। हरपल कुछ नया सीखने की प्रक्रिया से हमारे मस्तिष्क की सुप्त क्षमताएँ जाग्रत होने लगती हैं ।

जो संघर्ष करते हैं, विविधताएँ तलाशते हैं, नयापन खोजते हैं वही अपने जीवन में अनगिनत उपलब्धियाँ हासिल करते हैं ।अपने जीवन को ऊँचाइयों पर ले जाते हैं । जब हम जटिलताओं और चुनौतियों को स्वीकारते हैं तो हमारी जिंदगी भी खुशियों से महक सकती है , फूलों की तरह खिल सकती है ।

साधारण और असाधारण व्यक्ति में इतना ही फर्क है कि साधारण व्यक्ति सामान्य जीवन जीता है ; जबकि असाधारण व्यक्ति सामान्य जीवन विशेष ढंग से जीता है और उसके लिए हर पल कीमती होता है इसी कारण उसके जीवन का हर पल उपलब्धियों से भरा होता है।

यदि हमें अपने जीवन को महकाना है , ताजगी से सराबोर करना है तो समय को व्यर्थ न गँवाते हुए कुछ नया सीखने की कोशिश करें ।यही नया करने की आदत हमें अनगिनत उपलब्धियों का उपहार दे सकती है।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।